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क्या गोल्ड लोन नियमों का बैंक कर रहे हैं पालन? RBI ने इंटरनल ऑडिटर्स से मांगा जवाब

इंटरनल ऑडिटर्स की रिपोर्ट्स के आधार पर रिजर्व बैंक की सुपरवाइजरी टीमें नॉन-कंप्लायंस लेंडर्स के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कर सकती हैं.
NDTV Profit हिंदीविश्वनाथ नायर
NDTV Profit हिंदी10:30 AM IST, 07 Mar 2025NDTV Profit हिंदी
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क्या बैंक गोल्ड लोन नियमों का सख्ती से पालन कर रहे हैं? ये जानने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के इंटरनल ऑडिटर्स से कहा है कि वो पता करें कि क्या बैंक 30 सितंबर, 2024 से गोल्ड लोन रेगुलेशंस का अनुपालन कर रहे हैं या नहीं.

मामले की जानकारी रखने वाले दो बैंकर्स के मुताबिक, रेगुलेटर नियामक ने कई लेंडर्स के प्रमुखों के साथ व्यक्तिगत बैठकें की हैं, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि गोल्ड लोन पर कड़ी निगरानी रखने के उसके निर्देश का पालन किया जाए.

RBI ने पर्याप्त समय दे दिया है!

रेगुलेटेड लेंडर्स से उम्मीद की गई थी कि वो 30 सितंबर, 2024 के सर्कुलर का कंप्लायंस 31 दिसंबर, 2024 से पहले सबमिट करेंगे. तब से, रिजर्व बैंक इंटरनल ऑडिटर्स से इन कंप्लायंस रिपोर्ट्स के वेरिफिकेशन की मांग कर रहा है. एक निजी बैंक के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि चूंकि इंटरनल ऑडिटर्स, बैंक के भीतर इंडिपेंडेंट रूप से काम करते हैं. इसलिए उन्हें रेगुलेटर बिजनेस एक्टिविटी से बाहर रखा जाता है, इसलिए वे कंप्लायंस पर अपनी स्पष्ट राय देने में सक्षम होंगे.

इंटरनल ऑडिटर्स की रिपोर्ट्स के आधार पर रिजर्व बैंक की सुपरवाइजरी टीमें नॉन-कंप्लायंस लेंडर्स के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कर सकती हैं. एक बैंक के अधिकारी ने बताया कि रेगुलेटर को लगता है कि उसने बैंकों को 30 सितंबर को हाईलाइट किए गए सभी मुद्दों का अनुपालन करने के लिए पर्याप्त समय दे दिया है.

सरकारी बैंक के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि अगर लेंडर्स छह महीने के भीतर उचित अनुपालन करने में असमर्थ हैं, तो कार्रवाई की जानी चाहिए. इस बैंकर ने कहा कि बैंकों ने पहले ही कुछ जोखिम मापदंडों को कड़ा कर दिया है, जिसमें फंड के अंतिम उपयोग पर कड़ी निगरानी करना भी शामिल है. बैंक ये भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि गिरवी रखे गए सोने का बेहतर मूल्य तय करने के लिए उनके पास बेहतर जांच व्यवस्था हो.

RBI को इस सिलसिले में सवाल भेजे गए हैं, अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.

ओनरशिप की जांच करना जरूरी

इनमें से दो बैंकर्स ने बताया, जबकि सभी कर्जदाताओं को पहले से ही गिरवी रखे गए सोने को स्वीकार करने से पहले उसके स्वामित्व की जांच करना जरूरी, वे आमतौर पर उधारकर्ता से दस्तखत किया हुआ घोषणापत्र लेते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वतंत्र रूप से ओनरशिप को वेरिफाई करना चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि उधारकर्ताओं के पास हमेशा जरूरी पेपरवर्क नहीं होता है.

बैंक्स आमतौर पर उधारकर्ता से KYC पेपर और एक दस्तखत किया हुआ स्टेटमेंट मांगते हैं कि वे इस आभूषण के असली मालिक हैं. अगर बाद में स्वामित्व पर विवाद होता है, तो बैंक उधारकर्ता के विवरण के साथ धोखाधड़ी के मामले के रूप में ज्वेलरी को स्थानीय पुलिस को सौंप देते हैं.

30 सितंबर को रिजर्व बैंक ने बैंकों और NBFC में गोल्ड लोन कारोबार को पर सख्ती करते हुए एक सर्कुलर जारी किया था. सर्कुलर में, रेगुलेटर ने कहा कि अपनी हालिया जांच पड़ताल में उसने इन बैंकों में ऑपरेशनल कमियों को देखा है. इसमें बैंकों की लापरवाही और एंड यूज मॉनिटरिंग की कमी, लोन टू वैल्य रेश्यो की कमजोर निगरानी और रिस्क वेटेज का गलत इस्तेमाल शामिल है.

गोल्ड लोन पोर्टफोलियो पर कड़ी निगरानी

रिजर्व बैंक ने अपने सर्कुलर में कहा था कि इसलिए सभी SE (supervised entities) को सलाह दी जाती है कि वे गोल्ड लोन पर अपनी नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रथाओं की व्यापक समीक्षा करें, ताकि इस सलाह में बताई गई कमियों सहित अन्य कमियों की पहचान की जा सके और समयबद्ध तरीके से उचित उपाय शुरू किए जा सकें.

इसके अलावा, रेगुलेटर ने कहा कि गोल्ड लोन पोर्टफोलियो पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए, खास तौर पर पोर्टफोलियो में जब बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हो रही हो. रिजर्व बैंक ने आउटसोर्स गतिविधियों और थर्ड पार्टी सर्विस प्रोवाइडर्स पर बेहतर नियंत्रण की भी उम्मीद जताई.

जनवरी में बैंकों की ओर से गोल्ड ज्वेलरी के बदले दिए गए लोन में पिछले साल की तुलना में 77% की ग्रोथ हुई और ये 1.78 लाख करोड़ रुपये हो गया. रिजर्व बैंक के मंथली सेक्टोरल डेटा के मुताबिक ये बैंकों के बीच सबसे तेजी से बढ़ने वाला लोन है.

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