भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने निष्क्रिय खातों (Inoperative Accounts) और बैंकों में जमा लावारिस जमा राशि (Unclaimed Deposits) को क्लासिफाई और मैनेज करने के लिए संशोधित दिशानिर्देश (Revised Guidelines) जारी किए हैं.
RBI ने कहा कि बैंकों में जमा पड़ी लावारिस राशि, सही दावेदारों तक पहुंचे, इसके लिए नई गाइडलाइंस जारी की गई है, जो 1 अप्रैल से लागू होंगी.
केंद्रीय बैंक के अनुसार, बैंकों को उनके यहां किसी भी जमा खाते में 10 साल या उससे अधिक समय से पड़ी राशि को RBI के जमाकर्ता शिक्षा और जागरुकता कोष (Depositor Education and Awareness Fund) में ट्रांसफर करना आवश्यक है.
बैंकों को सालाना उन खातों की समीक्षा करनी होगी, चाहिए जहां एक साल या ज्यादा समय से ग्राहक ने कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया है.
अगर ऐसा होता है तो बैंकों को खाताधारकों यानी ग्राहकों को इस बारे में लिखित तौर पर सूचना देनी होगी.
ग्राहक अगर निष्क्रियता का कारण बताते हुए जवाब दाखिल करते हैं तो बैंकों को एक और वर्ष के लिए खाता को चालू श्रेणी में रखना होगा. यानी अगले एक साल तक वो खाते को निष्क्रिय नहीं करार दे सकते.
यदि संबंधित ग्राहक लिखित सूचना का जवाब नहीं देते हैं तो तो बैंक को तुरंत खाताधारक या नॉमिनी के एड्रेस/ठिकाने की जांच करनी चाहिए.
फ्रॉड यानी धोखाधड़ी के खतरों को कम करने के लिए निष्क्रिय खातों को अलग करना महत्वपूर्ण है.
फिर से सक्रिय किए गए खातों में लेनदेन की निगरानी कम से कम 6 महीने तक नियमित रूप से की जानी चाहिए. ये काम उच्च अधिकारियों के जिम्मे हो.
बैंकों को वीडियो KYC सहित सभी शाखाओं (Branches) में निष्क्रिय खातों को सक्रिय करने के लिए अपने KYC अपडेट करने की सुविधा देनी चाहिए.
ED, कोर्ट, ट्रिब्यूनल्स और अन्य कानूनी एजेंसी के आदेश पर फ्रीज किए गए खातों को KYC प्रक्रिया के बाद ही फिर से सक्रिय किया जा सकेगा.
KYC डॉक्युमेंट्स जमा करने के बाद बैंक को खाताधारकों को उनके खाते की स्थिति के बारे में सूचित करना जरूरी होगा.
बैंक किसी भी निष्क्रिय खाते में न्यूनतम शेष राशि नहीं बनाए रखने पर फाइन चार्ज नहीं कर सकते हैं.
फ्रॉड से बचाव के लिए, बैंकों को किसी भी निष्क्रिय खाते में किसी तरह के डेबिट ट्रांजैक्शन की अनुमति तब तक नहीं देनी चाहिए जब तक कि इसमें ग्राहक का रोल न हो.
गाइडलाइन्स में कहा गया है कि बैंक, ट्रांजैक्शन की संख्या और अमाउंट पर प्रतिबंध के साथ रिएक्टिवेशन पर कूलिंग-ऑफ पीरियड लगाने पर भी विचार कर सकते हैं.
बैंकों को सरकारी योजनाओं के तहत DBT (Direct Benefit Transfer) के लिए उपयोग किए जाने वाले निष्क्रिय खातों को अलग रखना होगा. और इसके लिए 1 साल की सीमा नहीं बल्कि 2 साल की सीमा होगा. 2 साल से अधिक समय तक संचालन न होने पर ही इन खातों को 'निष्क्रिय' कहा जाएगा.
केंद्रीय बैंक ने कहा कि बैंकों को निष्क्रिय खातों और अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स को सक्रिय करने के बारे में जागरूक करने के लिए नियमित रूप से जन जागरूकता और वित्तीय साक्षरता अभियान चलाना चाहिए. RBI ने कहा, बैंकों को ये सुनिश्चित करना होगा कि निष्क्रिय खातों से संबंधित ग्राहकों के डेटा लीक न हों.