ADVERTISEMENT

इंफ्रा लोन पर प्रस्‍तावित RBI के सख्‍त प्रावधानों पर कैसी राहत चाहते हैं बैंक, क्‍या हैं उम्‍मीदें?

NDTV Profit ने जिन बैंकर्स से बात की, उन्होंने फाइनेंसिंग पर 5% के फ्लैट प्रोविजन को बहुत ज्‍यादा बताया.
NDTV Profit हिंदीविश्वनाथ नायर, मिमांसा वर्मा
NDTV Profit हिंदी03:48 PM IST, 08 May 2024NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी

इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर लोन को लेकर RBI की प्रस्‍तावित सख्‍ती में छूट की मांग की जा रही है. अधिकारियों के अनुसार, बैंक उन नियमों में छूट चाहते हैं, जिनके तहत इंफ्रा प्रोजेक्‍ट्स की फाइनेंसिंग के लिए ज्यादा प्रोविजनिंग को अलग करना जरूरी होगा.

RBI के ड्राफ्ट के अनुसार, इंफ्रा लोन के मामले में बैंकों को प्रोजेक्‍ट के कंस्‍ट्रक्‍शन के दौरान लोन अमाउंट का 5% अलग से रखना होगा, जबकि मौजूदा नियमों के मुताबिक, इस रकम को 0.4% तक रखा जाता है. केंद्रीय बैंक ने 3 मई को ये ड्राफ्ट जारी किया है और 15 जून तक इस पर राय मांगी है.

प्रस्‍तावित नियमों के अनुसार, प्रोजेक्‍ट के चालू हो जाने पर इसे घटा कर 2.5% किया जा सकता है, जबकि प्रोजेक्‍ट के नेट पॉजिटिव कैश इनफ्लो तक पहुंचने और बकाया राशि का 20% चुकाने के बाद इसे 1% तक कम किया जा सकेगा.

क्‍या उम्‍मीद जता रहे एक्‍सपर्ट्स?

एक इंफ्रा फाइनेंस कंपनी के अधिकारी के मुताबिक, हायर स्‍टैंडर्ड एसेट प्रोविजनिंग के चलते प्रोजेक्‍ट फाइनेंस लोन के लिए ब्‍याज दरों में 150 बेसिस प्‍वाइंट्स यानी डेढ़ परसेंट की बढ़ोतरी हो सकती है.

एक बड़े सरकारी लेंडर के बैंकर ने कहा, 'बैंकों की मांग है कि हाई-रेटेड प्रोजेक्‍ट्स के लिए कैटगरी या ग्रेड आधारित प्रावधान की आवश्यकता लागू की जाए. लगभग जीरो डिफॉल्‍ट रिस्‍क वाले सरकारी प्रोजेक्‍ट्स के लिए, प्रावधान मौजूदा व्‍यवस्‍था की तरह 0.4% पर बना रह सकता है.'

बैंकर ने पहचान न जाहिर करने की शर्त पर NDTV Profit को बताया कि AAA-रेटेड प्रोजेक्‍ट्स के लिए प्रोविजन 1% और अन्य प्रोजेक्‍ट्स के लिए 5% किया जा सकता है.

उन्‍होंने कहा, बैंक इस मामले पर RBI के साथ चर्चा में सरकार से समर्थन मांग सकते हैं. NDTV Profit ने जिन बैंकर्स से बात की, उन्होंने 5% के फ्लैट प्रोविजन को बहुत ज्‍यादा बताया.

'कट-ऑफ पर स्‍पष्‍टीकरण हो'

लोन की री-स्‍ट्रक्‍चरिंग के मामले में RBI ने एक पुराने सर्कुलर (जून 2019) में 1,500 करोड़ रुपये से कम के लोन अकाउंट्स को डिफॉल्‍ट के बाद मैनडेटरी रिजॉल्‍यूशन प्रोसेस से छूट दी थी. जबकि मौजूदा सर्कुलर में इस संबंध में कट-ऑफ का कोई जिक्र नहीं है.

लेंडर्स इस बात पर स्पष्टीकरण चाहते हैं कि क्या ये कट-ऑफ, प्रोजेक्‍ट फाइनेंस लोन पर भी लागू होगा. ऐसा न होने पर माइक्रो, स्‍मॉल और मीडियम एंटरप्राइज लोन्‍स को तकनीकी चूक पर मजबूरन रिजॉल्‍यूशन प्रोसेस का सामना करना पड़ सकता है.

मैक्वेरी के एनालिस्‍ट सुरेश गणपति ने 7 मई की एक रिपोर्ट में कहा, 'किसी प्रोजेक्ट से कमाई शुरू होने में आम तौर पर 6-7 साल लग जाते हैं और इसलिए बैंकों को प्रोविजनिंग चार्ज के रूप में लोन अमाउंट का 2.5% से 5% के बीच बोझ सहना होगा. इससे इकोनॉमी भी प्रभावित होगी.

इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का कदम

बैंक वर्तमान में ड्राफ्ट गाइडलाइन्‍स के प्रभाव की समीक्षा में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर इंडियन बैंक्स एसोसिएशन को सख्‍त प्रावधानों में ढील के लिए RBI से संपर्क करने की उम्‍मीद है.

बैंक, लोन एसेट्स के नेट प्रेजेंट वैल्‍यू के कैल्‍कुलेशन पर भी स्पष्टीकरण मांगेंगे, क्योंकि उन्हें मौजूदा कर्जदारों/देनदारों के साथ लोन एग्रीमेंट की शर्तों पर फिर से बातचीत करनी होगी.

इसके अलावा, RBI ने बाहरी जोखिमों के चलते कमर्शियल ऑपरेशन शुरू करने की तारीख को एक वर्ष और इंटरनल रिस्‍क की स्थिति में इंफ्रा प्रोजेक्‍ट्स के लिए 2 साल तक की मोहलत तय की है.

RBI ने कहा, 'तय कारणों से किसी भी प्रोजेक्‍ट के लिए DCCO का डेफरमेंट इंफ्रा प्रोजेक्‍ट्स के लिए 3 साल और नॉन-इंफ्रा प्रोजेक्‍ट्स के लिए 2 साल से अधिक नहीं होगा.'

केयरएज रेटिंग्‍स और बर्नस्‍टीन की राय

केयरएज रेटिंग्स का मानना ​​है कि कमर्शियल ऑपरेशन शुरू होने की तारीख पर ये क्‍लॉज सख्‍त है, क्‍योंकि मुकदमेबाजी के मामलों को सुलझाने के लिए ज्‍यादा समय चाहिए होता है. इसके लिए बैंकों द्वारा ऐसे एक्सपोजर के री-क्‍लासिफिकेशन और कार्यान्‍वयन (Implementation Phase) के दौरान कर्ज लेने की कॉस्‍ट बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है.

बर्नस्टीन रिसर्च ने एक नोट में कहा, 'यदि प्रोजेक्‍ट समय पर पूरा हो जाता है और क्‍वालिटी अच्‍छी रहती है तो प्रावधान लागू नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन कम प्रॉफिटैबिलिटी, ग्रोथ को प्रभावित करेगी. कारण कि ग्रोथ फेज में बुक वैल्यू एक्रेशन गंभीर रूप से प्रभावित होगी.'

क्‍या छोटे बैंकों को चेताना चाहता है RBI?

इंडस्‍ट्री लॉबी ग्रुप के एक अधिकारी के अनुसार, फंड की लागत बढ़ाने के अलावा, ये नियम बैंक की प्रॉफिटैबिलिटी को प्रभावित कर सकते हैं, क्रेडिट लागत बढ़ा सकते हैं और लोन देने की प्रक्रिया को अव्‍यवहारिक बना सकते हैं.

अधिकारी ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, 'ये स्‍पष्‍ट नहीं है कि RBI क्‍यों ऐसा सख्‍त नियम लाना चाहता है. हालांकि ऐसा लगता है कि वो छोटे बैंकों को इंफ्रा लोन बांटने से रोकना चाहता है, क्‍योंकि इसमें रिस्‍क बहुत है.

मैक्वेरी के गणपति ने कहा, ऐसे समय में जब इकोनॉमी में प्रोजेक्‍ट फाइनेंस और पूंजीगत खर्च में सुधार हो रहा है, ये नियम आगे चलकर कैपेक्‍स फंडिंग को रोकेंगे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT