RBI ने गुरुवार को भारतीय बैंकों में लिक्विडिटी के बेहतर प्रबंधन के लिए नए नियमों वाला ड्राफ्ट सर्कुलर पेश किया है. इस फ्रेमवर्क में बैंकों द्वारा रिटेल डिपॉजिट्स के बेतहाशा बंटवारे पर लगाम लगाई जाएगी.
RBI ने कहा, 'हाल के सालों में बैंकिंग में तेजी से बदलाव आया है. तकनीक के उपयोग से बैंक ट्रांसफर और विड्रॉल्स अब तुरंत हो जाते हैं, लेकिन इससे जोखिम भी बढ़ा है, जिसका जरूरी प्रबंधन किया जाना जरूरी है.'
दरअसल RBI ने अपने सुझाव के तहत रन ऑफ फैक्टर को कुछ प्रतिशत बढ़ाने का सुझाव दिया है. लेंडर्स तब रनऑफ महसूस कर सकते हैं, जब डिपॉजिटर्स बैंकों में जमा के बजाए ज्यादा रिटर्न वाले दूसरे इन्वेस्टमेंट करने लगते हैं, जिससे बैंकों की कुल कैपिटल घट जाती है.
अप्रैल में RBI गवर्नर शक्तिकांता दास ने LCR (लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो) में बदलाव करने का सुझाव दिया था, ताकि जोखिम को कम किया जा सके. ऐसा करने के लिए बैंकों को ज्यादा मात्रा में हाई क्वालिटी लिक्विड एसेट्स (HQLA) मेंटेन करने होंगे, जिनमें कैश, RBI में जमा धन और केंद्र सरकार के बॉन्ड्स शामिल होते हैं.
नए प्रस्तावित फ्रेमवर्क के तहत बैंकों को नीचे लिखे सुझाव दिए गए हैं, ताकि जरूरत से ज्यादा रिटेल डिपॉजिट के विड्रॉल्स से बचा जा सके.
इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सर्विसेज से होने वाले डिपॉजिट के लिए RBI ने 5% के अतिरिक्त रनऑफ फैक्टर का प्रस्ताव दिया है.
इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग में स्थायी रिटेल डिपॉजिट में 10% रनऑफ फैक्टर होना चाहिए, जबकि अपेक्षाकृत तौर पर कम स्थायी डिपॉजिट्स में 15% रनऑफ फैक्टर होना चाहिए.
नॉन फाइनेंशियल स्माल बिजनेस कस्टमर्स द्वारा उपलब्ध कराई गई अनसिक्योर्ड होलसेल फंडिंग को रिटेल डिपॉजिट्स की तरह ही माना जाना चाहिए.
लेवल-1 का हाई लिक्विडिटी एसेट मानी जाने वाली सरकारी सिक्योरिटीज को उस वैल्यू से जयादा नहीं माना जाना चाहिए, जो उनकी मौजूदा मार्केट वैल्यू है.
इस तरह की सिक्योरिटीज में मार्टिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी और लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी के तहत जरूरी कटौती होनी चाहिए.
विश्लेषकों की मानें तो अगर इन प्रस्तावित नियमों को औपचारिक तौर पर मान लिया जाता है, तो भारतीय बैंकिंग सिस्टम के लिए लिक्विडिटी और भी कठोर हो जाएगी. इस प्रस्तावित मसौदे को 1 अप्रैल 2025 से लागू करने का सुझाव दिया गया है.
मार्च 2023 में अमेरिका स्थित सिलिकॉन वैली बैंक को लिक्विडिटी का गंभीर संकट झेलना पड़ा था. ये स्थिति बड़ी संख्या में इसके डिपॉजिटर्स द्वारा बैंक से अपने फंड निकालने के बाद बनी थी. इसके चलते बैंक तुरंत बंद हो गया और बैंकिंग व्यवस्था में भरोसा भी कम हुआ. इसका असर दूसरे बैंकों पर भी हुआ.
रेटिंग एजेंसी ICRA के मुताबिक, मार्च 2024 तक बैंकों का लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो 130% है. अगर RBI द्वारा प्रस्तावित नए नियम लागू होते हैं, तो लिक्विडिटी कवर रेश्यो (LCR) 10-15% और गिर जाएगा.
ICRA के मुताबिक अगर LCR में 10% की गिरावट आती है, तो सिस्टम लेवल पर 4 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त HQLAs (High Quality Liquidity Assets) की जरूरत होगी.
वहीं IIFL सिक्योरिटीज ने एक नोट में कहा, 'LCR रेश्यो के बढ़ने से हमें बैंकों पर ये असर पड़ने का अनुमान है 1) SLR डिमांड में इजाफा और लोन टू डिपॉजिट रेश्यो में कमी 2) एसेट यील्ड में कमी 3) रिटले डिपॉजिट कंपटीशन और डिपॉजिट ब्याज दरों के बढ़ने का अनुमान 4) कम NIMs (Net Interest Margin) 5) G-Sec बॉन्ड यील्ड में कमी.'
वहीं बर्नस्टीन रिसर्च का मानना है कि होलसेल फंडेड बैंकों की तुलना में रिटेल डिपॉजिट में ज्यादा साझेदारी रखने वाले बैंक में LCR पर ज्यादा असर देखने को मिल सकता है.'