सरकारी बैंक यूनियनों के आंदोलनों ने इन बैंकों में कर्मचारियों की कमी का मुद्दा एक बार फिर गर्मा दिया है.
11 नवंबर को अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी एसोसिएशन (All India Bank Employee Association-AIBEA) ने इस मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक खत लिखा था. इस खत में 12 सरकारी बैंकों के अधिकारियों ने सरकार से गुजारिश की थी कि वो बैंकों के मैनेजमेंट को उनकी मैनपावर पॉलिसी (Manpower Policy) की दोबारा जांच (Re-Examin) करने के लिए कहें और पर्याप्त मात्रा में स्टाफ मुहैया कराएं.
अधिकारियों के सरकारी बैंकों को छोड़कर जाने, कर्मचारियों की कमी और खराब होते काम के माहौल की वजह से कुछ ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया. AIBEA के एक सदस्य ने पहचान नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि कर्मचारियों की संख्या लगातार गिर रही है, लोगों के ऊपर काम का बोझ बढ़ रहा है, यही सरकारी बैंकों में सभी मुद्दों की जड़ है.
सरकारी बैंकों की बीते 6 साल (FY18–FY23) की सालाना रिपोर्ट बताती है कि कर्मचारियों की संख्या में गिरावट के संकेत मिले हैं और हर कर्मचारी पर काम का बोझ बढ़ा है.
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ने और पार्टनरशिप में आई तेजी से सरकारी बैंकों ने अपने वर्कफोर्स में कमी देखी है, जिसमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), बैंक ऑफ बड़ौदा, सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं. जबकि पंजाब नेशनल बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में मिला-जुला ट्रेंड देखने को मिला है, जहां कुछ जगह तो कर्मचारियों की संख्या घटी है, लेकिन कुछ जगहों पर बढ़ी भी है.
वेंचुरा सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च विनीत बोलिंजकर का कहना है कि कर्मचारियों की संख्या में आ रही इस कमी की एक बड़ी वजह बैंकिंग सेक्टर में तेजी से बढ़ता ऑटोमेशन हो सकता है. इसकी वजह से बैकेंड वर्क में कर्मचारी घटे हैं और बैंक के कुल मैनपावर में कमी आई है.
31 जुलाई को लोकसभा में एक लिखित जवाब में, वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने कहा कि हर सरकारी बैंक में वर्कफोर्स की जरूरत उस बैंक की ओर से बिजनेस की जरूरतों, गतिविधियों को बढ़ाने और अचानक किसी के नौकरी छोड़कर चले जाने जैसी कई वजहों को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है. उन्होंने कहा कि FY 2019–2023 के दौरान कुल 78,367 स्टाफ का रिक्रूटमेंट क्लर्क और सब-ऑर्डिनेट कैडर के लिए किया गया.
इसके पहले 31 दिसंबर, 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सरकारी बैंकों में स्टाफ की कमी की बात को लिखित जवाब में साफ मना कर चुकी हैं. उन्होंने कहा था सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से मिली जानकारियों के मुताबिक 1.12.2021 तक, स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या के मुकाबले 95% कर्मचारी कार्यरत हैं. जो भी पद खाली हैं उनका छोटा अनुपात काफी हद तक रिटायरमेंट और दूसरी सामान्य वजहों से नौकरी छोड़ने के लिए जिम्मेदार हैं.
दौलत कैपिटल के हेड ऑफ इक्विटी एंड रिसर्च अमित खुराना का कहना है कि मैनपावर में कमी को लेकर शिकायतें हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है, हायरिंग नहीं हो रही है क्योंकि अब इसकी जरूरत नहीं है. टेक्नोलॉजी ने कई काम अपने हाथ में ले लिए हैं.
क्वेस कॉर्प के वर्कफोर्स मैनेजमेंट के प्रेसिडेंट लोहित भाटिया का कहना है कि PSU बैंकों के कंसोलिडेशन के साथ ही, जो पूंजी NPA संकट के बाद लगाई गई थी, वो भी डिजिटाइजेशन की लहर लेकर आई. कई बैंकों के बैक-एंड वर्क जो कि पहले मैनुअली किए जाते थे, टेक्लोनॉजी का सहारा लेने लगे. इसलिए अब इस वर्कफोर्स की जरूरत नहीं रह गई थी. इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में, भारत में डिजिटल पेमेंट नेटवर्क जिस तरह से बढ़ा है वो काफी बड़ा है, उन्होंने कहा, फिजिकल लेन-देन में काफी गिरावट आई है.
टीमलीज सर्विसेज के वाइस प्रेसिडेंट और बिजनेस हेड कृष्णेंदु चटर्जी इस बात से सहमत हैं, वो कहते हैं कि लोन देने की दिशा में भारी दबाव की वजह से बैंक अपनी सब्सिडियरी कंपनियों या पार्टनर्स के साथ काम कर रहे हैं. ये पार्टनर्स अब सीधे ही बैंकों के साथ काम कर रहे हैं और उनकी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं. इसलिए, मुख्य बैंकों में हायरिंग की जरूरत अब काफी कम हो गई है, और किसी थर्ड पार्टी के पास जाने पर भी उन्हें कई तरह से मदद मिलती है.
अमित खुराना का कहना है कि बैंकों की बुक्स बढ़ रही है, और बिजनेस भी.
चटर्जी का कहना है कि बिजनेस मेट्रिक्स की दिशा में बदलाव आए हैं, इसलिए प्रति कर्मचारी बिजनेस भी बढ़ा है. ये कर्मचारियों को मिलने वाला इंसेंटिव और ईनाम ही है जो उन्हें ज्यादा काम करने के लिए प्रेरित कर रहा है.
क्वेस कॉर्प के भाटिया कहते हैं कि फिनटेक में तेजी को देखते हुए नौकरियों की पसंद में भी एक जबरदस्त बदलाव आया है. उनका कहना है कि ये टैलेंट की कमी नहीं, बल्कि सभी सेगमेंट में टैलेंट की डिमांड बंट गई है. एक सीमित टैलेंट पूल के साथ अब ऑप्शन अनगिनत हैं. पहले लोग सरकारी बैंकों में इसलिए आते थे कि उन्हें नौकरी में स्थिरता मिलेगी और सुरक्षा मिलेगी, लेकिन अब प्राइवेट प्लेयर्स उनकी पसंद बन रहे हैं, क्योंकि वो उन्हें अच्छी सैलरी और इंसेंटिव्स देते हैं.