जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, वैसे ही मुंबई में गर्मी ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. इसके साथ ही धारावी में पानी की किल्लत बढ़ रही है. आपको बता दें कि मुंबई की इस बड़ी झुग्गी बस्ती में तीन से चार दिनों तक पानी आता ही नहीं है. पानी की ठीक सप्लाई नहीं है इसलिए टैंकरों पर निर्भरता ज्यादा है, जिससे एक तरफ लोगों पर आर्थिक दबाव बनता है और दूसरी तरफ सेहत के लिए भी सही नहीं रहता.
90 फीट रोड पर रहने वाले निजाम खान ने बताया कि 'हमारे घरों का करीब 70% हिस्सा पानी के बर्तनों से भरा रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पानी की सप्लाई कुछ घंटों के लिए ही रहती है. इस पानी पर कम से कम 5 परिवार निर्भर हैं. पाइपलाइनें जहां से पीने का पानी आता है वो ज्यादातर लीक हैं. साथ ही ये नालियों के पास से गुजरती हैं. पानी का प्रेशर तो कम है ही, साथ में टैंकर माफिया और परेशान करते हैं. कई सालों से हम ऐसे ही रह रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि जल्दी से यहां विकास हो. और हमें भी बाकि मुंबई के लोगों जैसे साफ और रेगुलर पानी मिल सके.'
आपको बता दें कि एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में पानी भांडुप जलाशय से आता है. सुबह 6 बजे से रात 10 के बीच कभी भी सात वार्डों में एक बार पानी आता है. हालांकि पिछले दिनों अनधिकृत जल कनेक्शन भी बढ़े हैं, जिससे पानी का प्रेशर कम हो रहा है, साथ में रेगुलरेटी भी कम हुई है. सोर्स के अनुसार यहां करीब 50% कनेक्शन अवैध हैं. और इनकी वजह से सही कनेक्शन वालों को पानी नहीं मिल पा रहा है. जबकि MHADA, SRA और प्राइवेट बिल्डिंग को रेगुलर बिल BMC से मिलता है.
धारावी में कई इलाकों के लोगों ने ऐसे ही शिकायत की है. सुनीता देवी जो राजीव गांधी नगर में रहतीं हैं, बतातीं हैं कि पानी का प्रेशर तो एक मजाक है. पानी बहता नहीं बस टपकता है. टैंकर माफिया एक तरफ तुरंत पैसे मांगते हैं, वहीं दूसरी तरफ पानी की किल्लत के समय ज्यादा चार्ज करते हैं. प्रशासन को इनके ऊपर कार्यवाई करनी चाहिए.
आपको बता दें कि 10 हजार लीटर के टैंकर की कीमत 800 से 2,000 तक होती है. लेकिन गर्मियों के मौसम में ये कीमत 5 हजार रुपये तक पहुंच जाती है. मुस्लिम नगर के निवासी ने कहा, 'हमें ये सोचना पड़ता है कि पानी लें या फिर जरूरी सामान. और ये हर दिन की कहानी है'
पानी के साथ प्रदूषण एक और गंभीर समस्या है. Waterwalla, एक सोशल संस्था जो स्लम में काम करती है, उन्होने यहां लीक और बैक्टीरिया के प्रदूषण को नोट किया है. उनकी रिपोर्ट से पता चलता है कि खराब बुनियादी ढांचे की वजह से यहां गंदगी, बदबू, खतरनाक बैक्टीरिया जैसे E. coli मौजूद है.
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के एक्सपर्ट ने बताया है कि छोटी गलियां, घनी आबादी की वजह से पीने के पानी और सीवर की लाइनें एक साथ हैं. जिससे यहां रहने वालों को दूषित पानी से होने वाली बीमारियों का खतरा है.
नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर काम हो रहा है. पर यहां रहने वालों का मानना है कि पूरी तरह से विकास ही इस समस्या का हल है.माटुंगा लेबर कैंप की महिमा जायसवाल कहती हैं कि 'हम साफ पीने का पानी, ताजी हवा और अच्छा जीवन चाहते हैं, ये जीने के लिए जरूरी हैं, इन्हें कभी लक्जरी नहीं मानना चाहिए.