पिछले साल की ही बात है. 27 जनवरी 2023 को अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने अपनी फ्लैगशिप कंपनी अदाणी एंटरप्राइजेज का FPO यानी फॉलो ऑन पब्लिक जारी किया था. ये फुल सब्सक्राइब भी हो गया था, लेकिन 20,000 करोड़ रुपये जुटाने के बावजूद उन्होंने सारे पैसे लौटाने का फैसला लिया. कंपनी ने FPO वापस ले लिया.
ये वो दौर था, जब अमेरिकी शॉर्ट सेलर ने अदाणी ग्रुप पर गलत आरोप लगाए थे. उस वक्त कंपनी के शेयर लगातार नीचे जा रहे थे. गौतम अदाणी के 20,000 करोड़ रुपये लौटाने के उस फैसले ने न केवल निवेशकों, बल्कि पूरे उद्योग जगत को चौंका दिया था.
उस फैसले को गौतम अदाणी नैतिकता के नाते सही ठहराते हैं. सोमवार को 32वीं AGM में एक बार फिर से उन्होंने उस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि किसी भी तरह की चुनौती अदाणी ग्रुप की नींव कमजोर नहीं कर सकती.
खैर बीता साल इतिहास बन चुका है, अदाणी ग्रुप के पाक-साफ होने पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग चुकी है और इसके बाद ग्रुप की कंपनियों ने कई माइलस्टोन क्रिएट किए हैं.
गौतम अदाणी के जीवन पर केंद्रित किताब 'Gautam Adani: Reimagining Business in India and the World' में RN भास्कर ने उनकी कई खूबियों पर लिखा है. इसी में एक जगह वो लिखते हैं,
गौतम अदाणी, पब्लिक से तब तक पैसा उगाहना (Fund Raising) पसंद नहीं करते, जब तक कि कंपनी मुनाफा न देने लगे. यही बात उन्हें देश के बाकी उद्योगपतियों से लग करते हैं, जो पहले पब्लिक से पैसे जुटाते हैं, फिर कंपनी बनाते हैं और उसके बाद जरूरी मंजूरियां लेते हैं.
अदाणी ग्रुप की कंपनियों की प्रमाणिकता की कसौटी तैयार करने में इस खूबी का बड़ा योगदान रहा और इसने उन्हें और उनकी कंपनियों को निवेशकों का चहेता बना दिया.
गौतम अदाणी ऐसी नीतियां अपनाते हैं, जो दूसरों को जोखिम में नहीं डालती. जब कारोबार से जुड़ा कोई फैसला गलत दिखने लगता है, तो वे निवेशकों के सामने ऐसे दूसरे अवसर रखते हैं, जिनसे नुकसान की भरपाई हो सके.
गौतम अदाणी की दूसरी बड़ी खूबी 'रिश्ता बनाने और सहेजकर रखने' की है. RN भास्कर लिखते हैं, 'गौतम अदाणी जब किसी डील में हाथ डालते हैं तो पीछे नहीं हटते और अपने पार्टनर्स को कभी दबाने की कोशिश नहीं करते. अगर कोई पार्टनर जाना चाहता है तो पहले वे उसे रोकने का प्रयास करते हैं, नहीं रुकने पर वे जाने देते हैं.'
अदाणी-विल्मर डील का जिक्र करते हुए भास्कर लिखते हैं कि शायद ही ऐसा कोई मौका रहा होगा, जिसमें उन्होंने पार्टनर को जबरन कुछ करने को कहा होगा. जनवरी 1999 में अदाणी-विल्मर (50:50) डील हुई, उसके बाद से उन्होंने कभी हावी होने का प्रयास नहीं किया. ये कंपनी देश के टॉप 5 FMCG कंपनियों में से एक है.
राजनीतिक संबंधों को लेकर गौतम अदाणी पर भले ही बातें बनाई जाती रही हैं, लेकिन उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर देश और समाज को आगे बढ़ाने के लिए हर सरकार में अपने प्रोजेक्ट पूरे किए. NDA शासित और कांग्रेस शासित राज्यों के अलावा, ओडिशा में BJD सरकार, पश्चिम बंगाल में TMC की सरकार, केरल में लेफ्ट की सरकार में उन्होंने कई प्रोजेक्ट्स पूरे किए, जिनका शानदार परिचालन हो रहा है.
RN भास्कर के मुताबिक, संबंध बनाने और संबंधों को सहेजने में उन्हें महारत हासिल है. इजरायल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, तंजानिया और ऑस्ट्रेलिया में ग्रुप का पोर्ट्स कारोबार फैला है, जबकि वियतनाम, मलेशिया और फिलीपींस में भी कुछ प्रोजेक्ट्स लाइनअप हैं.
गौतम अदाणी दूसरों की तरक्की में रुकावट नहीं बनते और न ही अपनी कंपनियों के साथ कंपटीशन से रोकते हैं. RN भास्कर के मुताबिक, गौतम अदाणी अपने कंपटीटर्स का रास्ता रोकने की बजाय, खुद ज्यादा मेहनत करके उनसे आगे निकलने में यकीन रखते हैं. कई बार वे इसके लिए बड़े खतरे भी उठाते हैं.
भास्कर ने मुंद्रा पोर्ट का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे गौतम अदाणी ने बंदरगाहों को रेल नेटवर्क से जोड़ने के उद्देश्य से अपनी अलग रेल लाइन बिछाने के लिए सरकार को राजी किया था. जाहिर है इसका फायदा उन्होंने अकेले नहीं उठाया. उनका ये कदम देश की नीतियों के लिए बड़ा बदलाव साबित हुआ.
जब किसी बिजनेस घराने के हित, राष्ट्रीय हित यानी देश के विकास से जुड़ते हैं, तब उससे होने वाली तरक्की को कोई नहीं रोक सकता. गौतम अदाणी इस बात पर पूरा यकीन रखते हैं. पोर्ट, एग्री, लॉजिस्टिक्स से लेकर डिफेंस सेक्टर तक ये बात लागू होती है और अदाणी ग्रुप भी इनमें सहभागी है.
इंफ्रा और रीन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में गौतम अदाणी की भविष्य की योजनाएं राष्ट्रीय हितों और विकास के साथ तालमेल बिठाकर आगे बढ़ रही हैं. उनकी ये समझदारी भी उन्हें दूसरे उद्योगपतियों से अलग करती हैं.
गौतम अदाणी निष्पक्षता के साथ काम करने में यकीन रखते हैं. यहां तक कि किसी शेयरहोल्डर की हिस्सेदारी खरीदने के मामले में वो मार्केट प्राइस से ज्यादा पेमेंट करते हैं. इसका बड़ा उदाहरण मुंद्रा पोर्ट के मामले में दिखा था, जब उन्होंने गुजरात सरकार से पोर्ट में हिस्सेदारी, खरीदने की पेशकश की.
गुजरात सरकार में पोर्ट मामलों के सचिव रह चुके रिटायर्ड IAS, AD देसाई के मुताबिक, 'एक समय था, जब गुजरात में छोटे सरकारी पोर्ट ही हुआ करते थे. उस समय गौतम अदाणी ने सरकार के सामने अपना विजन रखा कि पोर्ट की संख्या बढ़ने से कैसे सरकारी खजाने की तस्वीर बदल सकती है.'
उनके विजन से प्रभावित होकर, राज्य सरकार मुंद्रा पोर्ट अपनी हिस्सेदारी कम करने को राजी हो गई. इसका फर्क कुछ ही वर्षों में दिखा. गुजरात में पोर्ट्स की क्षमता 24 मिलियन मीट्रिक टन (वर्ष 1996) से बढ़ कर 2012 में 280 MMT हो गई. आज देश के पूर्वी और पश्चिमी तट पर अदाणी पोर्ट्स (APSEZ) के कुल 13 बंदरगाह संचालित हो रहे हैं.
पत्रकार और लेखक RN भास्कर ने गौतम अदाणी पर केंद्रित अपनी किताब में उनके जीवन के तमाम पहलुओं पर विस्तार से बात की है. गौतम अदाणी पर 11 साल पहले एक और किताब लिख चुके हैं. 'गाैतम अदाणी: गेम चेंजर' नाम से उनकी ये किताब वर्ष 2013 में आई थी.
अदाणी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी 'अदाणी एंटरप्राइजेज' की 32वीं एनुअल जेनरल मीटिंग में गौतम अदाणी ने इंफ्रा, रीन्युएबल एनर्जी, सीमेंट, कॉपर समेत कई सेक्टर से जुड़ी बड़ी घोषणाएं की हैं.
आज उनका जन्मदिन भी है और उन्हें लगातार शुभकामनाएं भी मिल रही हैं. उनकी पत्नी और अदाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन प्रीति अदाणी ने भी उन्हें शुभकामनाएं देते हुए एक खास मैसेज शेयर किया है.
बहरहाल, एनुअल जेनरल मीटिंग में गौतम अदाणी ने जो फ्यूचर प्लान बताए, उनसे जाहिर है कि कंपनी की ग्रोथ का सीधा संबंध देश की ग्रोथ स्टोरी से है. अदाणी ग्रुप ने एशिया की सबसे बड़ी स्लम बस्ती की कायापलट का भी जिम्मा लिया है. वहीं, अदाणी फाउंडेशन, सामाजिक कार्यों में लगा है, जिससे जरूरतमंद लोगों की जिंदगियां बदल रही हैं.