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कच्‍चे तेल में तेजी से देश की इकोनॉमी को कितना है खतरा? इकोनॉमिस्ट से समझें...

भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है और महंगा आयात चालू खाते के घाटे को बढ़ा सकता है.
NDTV Profit हिंदीपल्लवी नाहाटा
NDTV Profit हिंदी03:07 PM IST, 29 Sep 2023NDTV Profit हिंदी
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इकोनॉमी पर दबाव के बावजूद कच्चे तेल में तेजी का भारत की मैक्रो इकोनॉमी (Macro Economic) पर ज्यादा बुरा असर पड़ने की आशंका नहीं है. हालांकि देश में महंगाई का एक बड़ा कारण पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें हैं, जिसे ऑयल मार्केटिंग कंपनियां कंज्यूमर पर डाल देती हैं, लेकिन इसके बावजूद महंगाई पर कच्चे तेल की कीमतों का असर कम रहने की उम्मीद है. कच्चे तेल में तेजी के असर को इकोनॉमिस्ट से समझते हैं...

अंतरराष्ट्रीय बाजार में 28 सितंबर को ब्रेंट क्रूड 97 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया, जो नवंबर 2022 के बाद सबसे अधिक है.

बैंक ऑफ बड़ौदा की इकोनॉमिस्ट दीपानविता मजूमदार ने कहा, 'कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से होने वाले मैक्रो-इकोनॉमिक खतरे घरेलू महंगाई की स्थिति पर निर्भर हैं. यानी अगर घरेलू महंगाई ज्यादा रही तो महंगे कच्चे तेल का मैक्रो इकोनॉमिक असर ज्यादा व्यापक होगा. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि भारत कच्चे तेल के सबसे बड़ा आयातकों में एक है, ऐसे में कच्चे तेल में तेजी के बुरे असर से इनकार नहीं किया जा सकता. कच्चे तेल में तेजी का उल्टा असर हमारे व्यापार संतुलन पर भी पड़ता है'.

भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है और महंगा आयात चालू खाते के घाटे को भी बढ़ा सकता है. साथ ही इकोनॉमी की रफ्तार को भी कम कर सकता है. हालांकि कुछ ऐसे फैक्टर भी हैं, जो इकोनॉमी को सहारा देते हैं.

कच्चा तेल और चालू खाता घाटा

दीपानविता ने कहा कि अगर 80-85 डॉलर प्रति बैरल को आधार बना लिया जाए तो कीमतों में 10% के तेजी से इंपोर्ट बिल 15 अरब डॉलर बढ़ जाएगा, जोकि GDP के 0.4% के बराबर होगा. उन्होंने कहा कि 'इसका चालू खाते घाटे (CAD) पर पड़ेगा और ये बढ़ जाएगा , यही नहीं इससे रुपये पर दबाव बन सकता है.'

IDFC फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, 'हमने FY24 में चालू खाते घाटे (Current Account Deficit) के अनुमान को 1.8% से बढ़ाकर GDP का 1.9% कर दिया है, जिसमें FY24 के बाकी महीनों के लिए कच्चे तेल की औसत कीमत लगभग 90 डॉलर प्रति बैरल रखी गई है.'

गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि उनके अनुमान में तेल की ऊंची कीमतों के अलावा मजबूत घरेलू मांग को भी शामिल किया गया है. मजबूत घरेलू मांग के चलते कच्चे तेल और सोने के अलावा दूसरी सभी चीजें का इंपोर्ट भी बढ़ेगा.

निर्मल बंग इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के अर्थशास्त्री टेरेसा जॉन ने कहा कि, 'लेकिन पिछले साल, कच्चे तेल की कीमतें कई महीनों तक 100 डॉलर से ज्यादा थी, इसके अलावा दूसरी कमोडिटीज के दाम भी बढ़े हुए थे, लेकिन इसके बावजूद चालू खाता घाटा GDP के लगभग 2% पर था. CAD को ज्यादा नहीं बढ़ने देने में IT सहित सर्विसेज के निर्यात से मदद मिली थी.'

टेरेसा जॉन ने ये भी कहा कि, 'जब तक पूरे कारोबारी साल के लिए कच्चे तेल का औसत भाव 100 डॉलर से ऊपर नहीं जाता, CAD 3% या उससे ऊपर नहीं जाएगा और मैक्रो इकोनॉमी की स्थिरता पर जोखिम भी नहीं दिखेगा.'

ऊंचे कच्चे तेल का रुपये पर असर

गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि, 'छोटी अवधि में कच्चे तेल में तेजी और US बॉन्ड की यील्ड बढ़ने से डॉलर की मजबूती से रुपये पर दबाव बना रहेगा.'

उन्होंने ये कहा कि अगर हर महीने का औसतन व्यापार घाटा 20 अरब डॉलर से ज्यादा रहता है, और सर्विसेज के एक्सपोर्ट में कुछ कमी आती है तो चालू खाता घाटा बढ़ सकता है और इससे छोटी अवधि में डॉलर का भाव 83.50 तक जा सकता है'

गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि रिजर्व बैंक ने रुपये की कमजोरी को रोकने के लिए कुछ हस्तक्षेप भी किया है, ताकी कमजोर रुपए के बुरे असर को कम किया जा सके.

उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में रुपए में कुछ मजबूती आ सकती है. उनके मुताबिक अगर सरकारी बॉन्ड्स में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (FPI) आता है, तो मार्च 2024 तक USD-INR की ट्रेडिंग रेंज 83.50 से 81.50 के बीच रहने की उम्मीद है.

कच्चे तेल का महंगाई पर असर

CPI बास्केट में पेट्रोल और इससे जुड़े प्रोडक्ट्स का वेटेज 2.4% है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव के बावजूद, खुदरा कीमतें कुछ समय से स्थिर बनी बनी हुई हैं.

दीपानविता मजूमदार ने कहा, 'मौजूदा माहौल में हम मानते हैं, जब खाद्य कीमतें ऊंची हैं, अगर तेल की कीमत का झटका लगातार नहीं लगेगा तो घरेलू बाजार में खुदरा कीमतों में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है.'

उनके अनुमान के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में 10% की बढ़ोतरी का CPI पर 0.15% के बराबर का सीधा असर पड़ेगा. मजूमदार ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को अगर कंज्यूमर तक पास किया जाता है को चालू वित्त वर्ष में CPI की 5.5% की बेसलाइन 0.25-0.35% बढ़ सकती है.

WPI बास्केट की बात करें तो इस पर प्रभाव ज्यादा स्पष्ट है, क्योंकि कच्चे तेल से संबंधित प्रोडक्ट्स का वेटेज यहां 7.3% है. मजूमदार के अनुसार, तेल की कीमतों में मौजूदा स्तर से 10% की बढ़ोतरी होने से लगभग 1% का रिस्क हो सकता है.

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