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RBI Governor Exclusive: महंगाई, शेयर बाजार, बैंक और रेट कट..RBI गवर्नर के साथ सबसे बेबाक इंटरव्यू

महंगाई हमारी रेंज में है. भारत की ग्रोथ की गति अच्छी है. फाइनेंशियल सेक्टर, चाहे वो बैंकिंग सेक्टर हो या NBFC सेक्टर हो, ये आज ज्यादा मजबूत, स्थिर और स्वस्थ है, जितना आज से 5 साल पहले हुआ करते थे.
NDTV Profit हिंदीमोहम्मद हामिद
NDTV Profit हिंदी05:02 PM IST, 20 Aug 2024NDTV Profit हिंदी
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NDTV Profit को दिए साल के सबसे बड़े और एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांता दास ने कहा कि ब्याज दरें कब कम होंगी, इसे लेकर अभी कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है, भले ही महंगाई 4% के नीचे आ चुकी है. NDTV ग्रुप के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के साथ इस बेहद बेबाक इंटरव्यू में रिजर्व बैंक गवर्नर ने कोविड चुनौतियों से लेकर बैंकिंग, ग्रोथ, पॉलिसी जैसे तमाम मुद्दों पर खुलकर चर्चा की.

रिजर्व बैंक गवर्नर बात की शुरुआत कोविड से भारत के उबरने की सक्सेस स्टोरी से की. उन्होंने कहा कि भारत ने कोविड की चुनौतियों और उसके बाद आई कई चुनौतियों को बहुत बेहतर तरीके से संभाला है, चाहे वो यूक्रेन की जंग हो और इसके बाद पूरी दुनिया कें सेट्रल बैंकों ने जिस तरह से मॉनिटरी सख्तियां शुरू की और सभी ने ब्याज दरों को एक साथ बढ़ाना शुरू कर दिया था.

गवर्नर ने कहा - मैंने मॉनिटरी पॉलिसी में खुद भी कहा था कि पिछले 5-6 साल का समय एक बहुत बड़े उतार-चढ़ाव का दौर था. पहले कोविड, फिर कोविड की दूसरी वेव, डेल्टा वेव और जियो पॉलिटिकल चुनौतियां, जो कि अभी तक चल रही है.ये जियो पॉलिटिकल नहीं बल्कि जियो इकोनॉमिक क्राइसिस भी है, क्योंकि व्यापार को लेकर बाधाएं आने लगीं, गुड्स और सर्विसेज के मूवमेंट पर बहुत सारी पाबंदियां लगने लगीं.

बाजार का भरोसा लौटाने की चुनौती थी 

शक्तिकांता दास आगे कहते हैं कि इस बीच भारत सरकार और रिजर्व बैंक के बीच जो तालमेल रहा, जिसे हम फिस्कल मॉनिटरी को-ऑर्डिनेटेड अप्रोच वो बहुत बढ़िया रहा. साल 2018 में जब मैं रिजर्व बैंक में आया था तो IL&FS संकट के बाद वित्तीय मार्केट काफी मुश्किलों से गुजर रहा था, हमारी मुख्य चुनौती यही थी कि कैसे बाजार में विश्वास लौटाएं और लिक्विडिटी डालें. हम जब इससे उबर ही रहे थे तो मार्च 2020 से कोविड शुरू हो गया, अगले दो साल काफी चुनौतीपूर्ण रहे. हमने करीब 100 से ज्यादा कदम उठाए.

उन्होंने कहा कि दो साल के कोविड की वजह से पूरी दुनिया के लिए 'आउटपुट लॉस' रहा. कई अर्थव्वस्थाओं की GDP घटी, कई देशों की इकोनॉमी निगेटिव हो गई, ये लॉस परमामेंट रहा. लेकिन इस संकट से हम जिस तरह से निकलकर बाहर आए, वो बहुत शानदार है. क्योंकि अगर आप हमारी वित्तीय स्थिति संकट के दौर से पहले और आज हम जहां खड़े और पिछले साल कहां थे, तो आप पाएंगे कि भारत की अर्थव्यवस्था और फाइनेंशियल सेक्टर बहुत मजबूती के साथ इनसे उबरा है.

भारत का पिछले तीन साल में सालाना ग्रोथ रेट 8% से ज्यादा रहा है, इस साल का RBI का अनुमान है कि 7.2% रहेगा. यूक्रेन जंग के बाद महंगाई 7.8% पहुंच गई थी, अभी महंगाई 3.5% है. महंगाई हमारी रेंज में है और भारत की ग्रोथ की गति भी अच्छी है. फाइनेंशियल सेक्टर, चाहे वो बैंकिंग सेक्टर हो या NBFC सेक्टर हो, आज ज्यादा मजबूत, स्थिर और स्वस्थ है, जितना आज से 5-6 साल पहले हुआ करते थे.

'ब्याज दरों में कटौती पर थोड़ा संयम रखना होगा'

महंगाई को लेकर हमारी अप्रोच है कि ये 4% के आस-पास रहे. जुलाई में महंगाई 3.5% हो गई थी, इसका मतलब ये नहीं कि समस्या खत्म हो गई है, ये बेस इफेक्ट की वजह से है. रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि हमें यकीन होना चाहिए कि महंगाई 4% के आस-पास ही रहेगी, न कि बस एक बार 4% के नीचे चली जाए तो हम ब्याज दर में कटौती कर दें, ये पॉलिसी के स्तर पर बहुत बड़ी भूल होगी. हमें संयम रखना होगा, हमें अभी थोड़ी और दूरी तय करनी है.

जहां तक ग्रोथ का सवाल है, अभी इस साल हमें 7.2% का अनुमान लेकर चल रहे हैं. भारत 2024-25 में सबसे तेजी से बढ़ती हुई इकोनॉमी रहेगी. मेरी नजर में हमने ग्रोथ का ज्यादा त्याग नहीं किया है. ग्रोथ स्थिर है और लचीला है.

गवर्नर ने कहा कि महंगाई को हमें और कम करना चाहिए, सब्जियों के दाम और फूड आइटम्स को निकाल दें और फिर कहें कि महंगाई कम हो गई, तो आप एक आम जनता के नजरिये से सोचिए, अगर फूड प्राइसेज ज्यादा हैं, तो ये भरोसेमंद नहीं रहेगा. लोग ये कहेंगे कि मेरा खर्चा तो ज्यादा हो रहा है, RBI कैसे कह रही है कि महंगाई कम हो गई है. इसलिए फूड इंफ्लेशन, हेडलाइन इंफ्लेशन में एक बहुत बड़ा हिस्सा है.

RBI गवर्नर ने समझाया कि अभी जो हमारा कंजम्पशन बास्केट है, उसमें फूड इंफ्लेशन का हिस्सा 46% है. तो मान लीजिए कि एक साधारण परिवार है, तो उसका 50% हिस्सा तो खाने की लागत में जाता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि फूड इंफ्लेशन को मन में रखें और ब्याज दरों को कब कम करेंगे ये भविष्य के आंकड़ों पर निर्भर करता है.

उन्होंने कहा कि फिलहाल हमको ये विश्वास है कि महंगाई कम हो रही है, 4% के आस-पास पहुंच जाना चाहिए, लेकिन इस साल का औसत हमने 4.5% दिया है, अभी बहुत सारी अनिश्चतताएं है. पहले से गाइडेंस देकर हम लोगों को कंफ्यूज नहीं करना चाहते हैं.

2047 तक विकसित भारत बनने का रास्ता 

2047 तक भारत विकसित कैसे बनेगा, क्या चुनौतियां है और उसे हासिल करने के लिए जो हाई ग्रोथ रेट चाहिए उसे कैसे हासिल किया जाएगा, इस पर रिजर्व बैंक गवर्नर का कहना है कि सबसे पहले तो हमें कीमतों की स्थिरता पर ध्यान देना होगा, यानी महंगाई को 4% के इर्द-गिर्द रखना होगा. क्योंकि कीमतों में अगर स्थिरता रही तो ये लोगों के अंदर विश्वास पैदा करेगा, लोगों के हाथों की खरीद क्षमता बढ़ेगी और लोगों के पास खरीदने के लिए ज्यादा पैसा होगा. शक्तिकांता दास ने कहा कि अगर प्राइस स्टेबिलिटी रही तो इससे इन्वेस्टर कॉन्फिडेंस भी बहुत बढ़ता है, यानी ग्रोथ के लिए सबसे बड़ा सपोर्ट कीमतों में स्थिरता से ही आता है.

दूसरी चीज फाइनेंशियल स्टेबिलिटी है. बैंकों और NBFCs की सेहत अच्छी होनी चाहिए, साथ ही पूरे फाइेंशियल सेक्टर की सेहत भी अच्छी होना जरूरी है, जरूरत से ज्यादा लीवरेज नहीं होना चाहिए. इसके बाद तमाम दूसरी आर्थिक गतिविधियां आती हैं.

कई रिफॉर्म्स किए, कई करने बाकी

शक्तिकांता दास ने बताया कि पिछले कुछ सालों में ढेरों रिफॉर्म्स किए गए हैं, जिसमें मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क भी एक सबसे बड़ा स्ट्रक्चरल रिफॉर्म है. IBC कोड भी एक बड़ा रिफॉर्म है. इसके अलावा कई तरह की पहल की गई है, जैसे - मेक इन इंडिया, PLI स्कीम है, जिसने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बहुत मदद की है.

गवर्नर ने कहा कि कई सारे रिफॉर्म्स किए गए हैं और कई सारे रिफॉर्म्स को किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य स्तर पर बहुत सारे रिफॉर्म्स करने की जरूरत है. उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि एग्रीकल्चर मार्केट सेक्टर, एग्रीकल्चरल सप्लाई चेन सेक्टर, लेबर सेक्टर में रिफॉर्म्स करने की जरूरत है.

शक्तिकांता दास ने कहा कि भारत में इनोवेशन, स्टार्टअप्स, फिनटेक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और रोजगार के ढेरों मौके यहां बन रहे हैं. उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर सेक्टर में आउटपुट को बढ़ाना चाहिए, हालांकि हमने एग्री सेक्टर में तरक्की की है, लेकिन एग्रीकल्चरल प्रोडक्टिविटी और आउटपुट में हम काफी सुधार ला सकते हैं.

शक्तिकांता दास ने कहा कि ग्लोबल मार्केट्स में भारत का सर्विसेज सेक्टर का एक्सपोर्ट दुनिया में अपनी पहचान बना रहा है. मैन्युफैक्चरिंग में हमें और अच्छा करना होगा.

अंत में, एक्सपोर्ट मार्केट में भारत को अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी, हमारे पास आज जो भी मौके हैं उनका इस्तेमाल करते हुए ग्लोबल वैल्यू चेन का एक बड़ा हिस्सेदार बनना होगा. भारत ने अबतक अच्छा किया है, लेकिन आगे हमें और अच्छा करने की जरूरत है.

बैंकों का घटता डिपॉजिट ग्रोथ बड़ी परेशान

बैंकों के घटते डिपॉजिट ग्रोथ को लेकर रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि जहां तक बैंकिंग सेक्टर का सवाल है, बीते 5-6 साल के दौरान रिजर्व बैंक का प्रयास रहा है कि बैंकों, NBFCs का गवर्नेंस स्टैंडर्ड, रिस्क मैनेजमेंट स्किल, कंप्लायंस कल्चर को हमने काफी प्राथमिकता दी है, और मुझे ये बताते हुए खुशी हो रही है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर में ओवरऑल गवर्नेंस स्टैंडर्ड, रिस्क मैनेजमेंट स्टैंडर्ड बीते कुछ साल में काफी हद तक सुधरा है. ये एक बड़ा बदलाव है कि जिसे आंकड़ों से नहीं मापा जा सकता, इसके लिए बैंकों को बधाई देना चाहता हूं.

शक्तिकांता दास ने कहा कि ये टेक्नोलॉजी का जमाना है, युवा पीढ़ी महत्वाकांक्षी होती है, वो किसी दूसरे मार्केट की तरफ आकर्षित होती है, जिसमें कुछ गलत नहीं है. अगर युवा शेयर मार्केट में जा रहा है, इंश्योरेंस प्रोडक्ट खरीद रहा है, म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर रहा है, तो ये अच्छी बात है, ऐसा होना चाहिए, लेकिन हमारा बैंकों से सिर्फ ये कहना है कि इसे आप सावधानीपूर्वक मॉनिटर करिए, अभी कोई समस्या नहीं है, लेकिन आगे जाकर एक बड़ी लिक्विविडी की समस्या खड़ी हो सकती है.

मतलब डिपॉजिट और क्रेडिट ग्रोथ के बीच जो गैप है बढ़ता रहता है तो ये लिक्विडटी की समस्या पैदा करेगा. इसलिए बैंकों को लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है. बैंकों को क्रेडिट और डिपॉजिट ग्रोथ में एक बैलेंस लाना चाहिए.

कई बैंकों ने इंफ्रा बॉन्ड्स जारी किए

शक्तिकांता दास ने बताया कि बीते कुछ समय से एक अच्छी बात हुई है कि कई बैंकों ने इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स जारी करके पैसे जुटा रहे हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स की अच्छी बात ये है कि ये डिपॉजिट नहीं होते हैं इसलिए इनके लिए कुछ भी रिजर्व रखने की जरूरत नहीं होती है और ये लंबी अवधि के लिए होते हैं.

उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी की वजह से क्रेडिट ग्रोथ और क्रेडिट डिस्बर्समेंट में बहुत तेजी आई है. आज आप मोबाइल से लोन ले सकते हैं, लेकिन डिपॉजिट जमा आप फिजिकल तरीके से ही कर सकते हैं. इसलिए पिछली मॉनिटरी पॉलिसी में मैंने कहा था कि बैंकों को नए-नए डिपॉजिट प्रोडक्ट लेकर आना चाहिए, साथ ही बैंकों को अपने विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल करना चाहिए.

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