मोबाइल ऐप के जरिए इंस्टैंट लोन देने वाली फिनटेक कंपनियां इनकम टैक्स विभाग के जांच के दायरे में आ गई हैं. IT की इंटरनेशनल टैक्सेशन विंग ने करीब 40 फिनटेक कंपनियों को नोटिस भेजकर उनकी विदेशी पैरेंट कंपनियों को किए गए ऊंचे पेमेंट्स को लेकर सफाई मांगी है, साथ ही ये भी पूछा है कि इसे 'बिजनेस प्रॉफिट' के तौर पर क्यों नहीं देखा जाना चाहिए.
पिछले एक पखवाड़े में, धारा 133 (6) के तहत नोटिस जारी किए गए थे, जिसमें उनके लेन-देन की प्रकृति पर सवाल उठाया गया था क्योंकि विदेशी पैरेंट्स को भेजे गए पैसे को टेक्निकल सेवाओं या FTS के लिए भुगतान की गई फीस के रूप में दिखाया गया था.
IT विभाग के नोटिस में स्पष्टीकरण मांगा गया है कि फिनटेक के विदेशी पैरेंट कंपनियों को भेजे गए पैसों को "बिजनेस प्रॉफिट" के रूप में क्यों नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि लेनदेन की प्रकृति टेक्निकल सेवाओं के लिए दी गई फीस फीस नहीं लगती है.
आयकर विभाग इस बात की जांच कर रहा है कि क्या घरेलू शाखा के खर्चों के क्लेम को कम करने के लिए प्रॉफिट को भारत से पैरेंट देश में ट्रांसफर करने के लिए FTS के बहाने ऊंची कीमतों का भुगतान किया गया है. एक्सपर्ट का कहना है कि इसे FTS या रॉयल्टी मानने से भारतीय कंपनियों की कुल टैक्स देनदारी बदल जाएगी.
NDTV प्रॉफिट ने जारी किए गए इनमें से कुछ नोटिस की समीक्षा की है. फिनटेक को 30 दिसंबर तक निजी तौर पर या अपने प्रतिनिधियों के जरिए अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए कहा गया है.
इनकम टैक्स विभाग ने ग्राहकों से ली जा रीह ब्याज दर, उधारकर्ताओं के साथ लोन एग्रीमेंट और रिकवरी और डिफॉल्ट के तरीकों के बारे में पूरी डिटेल देने को कहा है. इसके अलावा, ये भी जानना चाहा है कि क्या संबंधित फिनटेक माइक्रोफाइनेंस लोन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से प्रमाणित हैं.
सूत्रों का कहना है कि अगर विभाग ने साबित कर दिया कि ये वास्तव में प्रॉफिट ट्रांसफर था, तो वो ये जांचने के लिए ट्रांसफर प्राइसिंग क्लॉज लागू करना चाहेंगे कि क्या अन्य कंपनियों के साथ समान लेन-देन के लिए 'आर्म्स लेंथ प्राइस' पर भुगतान किया गया था.
नोटिस में, विभाग ने इस बात पर भी जोर दिया है कि सेवाओं के लाइसेंस का लेनदेन, और मैनेजमेंट सर्विसेज का प्रतिपादन अंतरराष्ट्रीय लेनदेन था और इनसे होने वाली आय को आर्म-लेंथ मूल्य के आधार पर तय किया जाना चाहिए.
उदाहरण के लिए, अगर किसी भारतीय कंपनी ने अपनी विदेशी पैरेंट कंपनी को ज्यादा भुगतान किया है, या पैरेंट कंपनी से आय हासिल की है जो कि दर से कम है, तो अंतर को ठीक करने के लिए ट्रांसफर प्राइसिंग नियम लागू किए जाएंगे.
ये जांचने के लिए कि कोई लेन-देन जरूरतों को पूरा करता है या नहीं, रूल 'आर्म्स लेंथ प्राइस टेस्ट' कहलाते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है, तो ज्यादा भुगतान रद्द कर दिया जाता है, या कम भुगतान की उचित पहचान की जाती है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में सही टैक्स लिया गया है.