अदाणी-हिंडनबर्ग मामले (Adani Hindenburg Case) में मार्केट रेगुलेटर SEBI की ओर से कोटक बैंक की ब्रांच, K-इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड (K-India Opportunities Fund) - क्लास F और पांच दूसरी संस्थाओं को भेजे गए कारण बताओ नोटिस के बाद, अब जांच का रुख मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering Probe) की तरफ मुड़ सकता है.
NDTV Profit से बातचीत करते हुए एलायंस लॉ के मैनेजिंग पार्टनर आर एस लूना ने कहा कि - प्रॉबिशन ऑफ फॉडुलेंट एंड अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज (PFUTP) और इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप PMLA के तहत अपराध हैं और इसलिए SEBI के कारण बताओ नोटिस में आरोप लगाया गया है कि ऐसे उल्लंघन प्रवर्तन निदेशालय की ओर से PMLA के तहत कार्रवाई का आधार बन सकते हैं, हालांकि PMLA के तहत ऐसी किसी भी कार्रवाई की वैधता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसको साबित करने के लिए सबूत कितने पुख्ता हैं.
PMLA केवल तभी लागू किया जा सकता है जब कोई पूर्वनिर्धारित अपराध हो. क्रॉफर्ड बेली एंड कंपनी के सीनियर पार्टनर संजय आशेर ने NDTV प्रॉफिट से कहा कि इस पर अभी भी फैसला नहीं हुआ है और ये अब भी केवल एक अनुमान है और जांच चल रही है. उन्होंने कहा कि अगर SEBI फैसले के आधार पर कोई आदेश जारी करता है तो PMLA लागू किया जा सकता है.
SEBI का फैसला अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और विदेशी रेगुलेटर्स से रेगुलेटरी सहयोग लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है. लूना ने कहा कि विदेशी क्षेत्राधिकार वाली संस्थाओं के खिलाफ जांच करना कठिन काम है.
SEBI ने बीते दिन कई संस्थाओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. जिसमें नाथन एंडरसन, उनकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च, मार्क किंग्डन और किंग्डन कैपिटल की अगुवाई वाली उसकी संस्थाओं और K-इंडिया अपॉर्चुनिटीज फंड - क्लास F शामिल है, जो SEBI के साथ रजिस्टर्ड एक फंड है, जिसे कोटक महिंद्रा इंटरनेशनल लिमिटेड (कोटक बैंक की शाखा) मैनेज करती है.
SEBI के कारण बताओ नोटिस में SEBI एक्ट की धारा 12A की कई सब-सेक्शन और धोखाधड़ी और अनुचित तरीके से व्यापार करने के रोकथाम नियमों के तहत उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. SEBI अधिनियम और PFUTP के तहत उल्लंघन को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत 'अनुसूचित अपराध' की श्रेणी में रखा गया है.
SEBI और PFUTP के तहत अनुसूचित अपराधों (scheduled offence) को सरकार के खिलाफ किए गए अपराधों के रूप में रखा गया है, इन्हें 'विधेयात्मक अपराध' के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत मनी लॉन्ड्रिंग की कार्यवाही शुरू करने के लिए 'अनुसूचित अपराध' एक शर्त है.
मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की जांच ED यानी प्रवर्तन निदेशालय करता है, जो आरोप साबित होने पर अधिनियम की धारा 48 और धारा 49 के तहत कार्यवाही शुरू कर सकती है. मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत राज्य पुलिस, कस्टम्स, SEBI, CBI और NCB जैसी अन्य एजेंसियां भी अपने संबंधित कानूनों के तहत जांच कर सकती हैं.
लूना ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को विदेशी संस्थाओं के खिलाफ जांच करना मुश्किल होगा क्योंकि उसको क्षेत्राधिकार से जुड़ी रुकावटों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन वो SEBI के साथ रजिस्टर्ड संस्थाओं के खिलाफ जांच कर सकता है.
SEBI भी सेक्शन 24 के तहत जांच कर सकती है, जिसमें दोषी पाए जाने पर जेल का भी प्रावधान है. इस सेक्शन के तहत कड़े सबूत चाहिए होते हैं. लूना ने कहा, SEBI को अपने सबूतों से स्पेशल कोर्ट को संतुष्ट करना होगा.
संस्थाओं के पास अपराध स्वीकार किए बिना मामले को निपटाने का विकल्प भी है. लूना ने कहा, लेकिन ये एक अलग प्रक्रिया के जरिए किया जाएगा, जहां फैसले के तहत पार्टियां रेगुलेटर के सामने समझौते की शर्तों को मानेंगे, जो बदले में इसे हाई पावर्ड एडवाइजरी कमिटी के सामने पेश करेंगे.