आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का तेजी से डेवलपमेंट सभी उद्योगों में गेम-चेंजर रहा है. लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर चिंता भी है. AI मॉडल को प्रशिक्षित करने और चलाने के लिए बढ़ती एनर्जी डिमांड. जैसे-जैसे OpenAI के ChatGPT और चीन के डीपसीक-V3 AI मॉडल शोहरत प्राप्त कर रहे हैं. उनके संचालन के लिए आवश्यक एनर्जी कंजम्पशन ग्लोबल एनर्जी क्षेत्र पर बड़ा दबाव बना रही हैं. अमेरिका और चीन दोनों अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस महत्वाकांक्षा को तेजी से पूरा कर रहे हैं. सवाल ये है कि क्या एनर्जी सेक्टर इस ग्रोथ को बनाए रख सकता है और क्या डीपसीक कम एनर्जी वाला विकल्प प्रदान करता है?
ये भी एक प्रासंगिक सवाल है कि क्या डीपसीक का फ्री चैटबॉट ऐप, जो (डीपसीक-V3 नामक एक नए मॉडल पर आधारित था) ChatGPT, गूगल के Gemini, मस्क के Grok या Meta AI जैसे मल्टी-बिलियन-डॉलर प्लेटफॉर्म के बराबर है.
एनर्जी के लिए AI की भूख लगातार तेज होती जा रही है. जैसे-जैसे AI मॉडल विकसित होते जा रहे हैं. उनके डेटा सेंटर की जरूरतें भी बढ़ती जा रही है. गोल्डमैन सैक्स ग्लोबल अफेयर्स के प्रेसिडेंट जेरेड कोहेन ने CNBC से कहा, 'अगर आप क्लाउड वर्कलोड के लिए डेटा सेंटर और AI वर्कलोड के लिए डेटा सेंटर को देखें, तो AI वर्कलोड के लिए डेटा सेंटर को हाई डेंसिटी की आवश्यकता होती है. उन्हें एक कंसन्ट्रेटेड पावर सोर्स की आवश्यकता होती है और इसलिए विंड और सोलर जैसी इंटरमिटेंट पावर फिट नहीं बैठती हैं. कोहेन के मुताबिक, AI को बेस लोड पावर की आवश्यकता होती है. पावर सोर्स (जो निरंतर और स्थिर होते हैं) जैसे न्यूक्लियर, कोयला और प्राकृतिक गैस.
भारत में 275 TWh पावर 2.75 करोड़ घरों को पूरे साल बिजली देने के लिए पर्याप्त है. ये मानते हुए कि एक भारतीय घर की वार्षिक एनर्जी खपत 1,000 kWh है. AI सिस्टम का 24/7 नेचर इस एनर्जी आवश्यकता को पूरा करती है. इसका मतलब है कि जब आप AI मॉडल को काम पर लगाते हैं तो ये कभी भी खुद को बंद नहीं करता है. ये हमेशा सीखता रहता है, हमेशा आगे बढ़ता रहता है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई पावर कंजम्पशन के कारण होने वाला नुकसान स्पष्ट है. माइक्रोसॉफ्ट, जिसने ChatGPT निर्माता OpenAI में निवेश किया है और अपने प्रोडक्ट की पेशकश के केंद्र में जनरेटिव AI टूल को स्थान दिया है. इसने हाल ही में घोषणा की है कि डेटा सेंटर विस्तार के कारण 2020 से इसके CO2 उत्सर्जन में लगभग 30% की ग्रोथ हुई है.
2023 में गूगल का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी काफी अधिक था, जो 2019 से लगभग 50% अधिक था, ये मुख्य रूप से डेटा केंद्रों की एनर्जी कंजम्पशन से प्रेरित था.
पश्चिमी देशों में बढ़ते एनर्जी कंसर्न के बीच चीन का डीपसीक एक गेम-चेंजिंग AI मॉडल के रूप में उभर सकता है. ChatGPT जैसे पश्चिमी समकक्षों की तुलना में काफी कम ऊर्जा का उपयोग करता है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक, 'पूरे इंडस्ट्री में एनर्जी की बढ़ती मांग, मुख्य रूप से AI मॉडल को प्रशिक्षित करने और संचालित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले डेटा केंद्रों के निर्माण और संचालन से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में योगदान दे रही है.'
डीपसीक की एनर्जी एफिशिएंसी के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक लेस एडवांस चिप्स का उपयोग है. रिसर्च पेपर के मुताबिक, डीपसीक-V3 को ट्रेनिंग के लिए 2,788,000 GPU घंटे की आवश्यकता (836,400 kWh एनर्जी) थी.
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की टॉप कंपनियां आमतौर पर अपने चैटबॉट को ऐसे सुपरकंप्यूटर से ट्रेन करती हैं जो 16,000 या उससे अधिक चिप्स का उपयोग करते हैं. डीपसीक के इंजीनियरों ने कहा कि उन्हें केवल 2,000 Nvidia चिप्स की आवश्यकता थी.
अगर डीपसीक ने मौजूदा प्लेटफॉर्म जितना कुशल मॉडल बनाने के लिए कम चिप्स का उपयोग करने का तरीका खोज लिया है, तो इसका मतलब ये होगा कि इन मॉडलों को बनाने और चलाने के लिए कम एनर्जी की आवश्यकता होगी. इससे डीपसीक ग्रीन एनर्जी सोर्सेज के साथ अधिक कंपैटिबिलिटी बिठा सकता है.
AI सेक्टर में एनर्जी कंजप्शन आसमान छू रही है. इसलिए रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेज की मांग जोर पकड़ रही है. हालांकि, दुविधा ये है कि क्या AI कंपनियां वास्तव में विंड और सोलर जैसे इंटरमिटेंट एनर्जी सोर्सेज पर भरोसा कर सकती हैं.