'जब 20 करोड़ लोग समर्पण और सेवा भाव से जुटते हैं तो ये सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि आत्माओं का अनोखा संगम होता है. इसे मैं 'Spiritual economies of scale" कहता हूं. ये जितना बड़ा होता जाता है, ये उतना ही अधिक कुशल होता जाता है, न केवल भौतिक दृष्टि से बल्कि मानवीय और मानवता की दृष्टि से भी. ये शब्द हैं अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी के, जो उन्होंने भव्यता और आध्यात्म को समेटे हुए महाकुम्भ मेले के बारे में एक ब्लॉग में लिखा है.
गौतम अदाणी अभी पिछले दिनों ही महाकुम्भ गए थे. अपने ब्लॉग जिसका शीर्षक है 'Spiritual Infrastructure: How The Kumbh Inspires India's Leadership Story' में उन्होंने कुम्भ को देश की लीडरशिप स्टोरी से जोड़ा है. वो कहते हैं कि कुम्भ का विशाल मेला एक 'आध्यात्मिक बुनियादी ढांचा' है.
गौतम अदाणी अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि 'मानव हुजूम के विशाल परिदृश्य में, कुंभ मेले की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती. एक कंपनी के रूप में, हम इस वर्ष मेले में तल्लीनता से व्यस्त रहे- और, जब भी मैं इस विषय पर चर्चा करता हूं, तो मैं हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ हो जाता हूं. पूरे भारत में पोर्ट्स, एयरपोर्ट्स और एनर्जी नेटवर्क्स का निर्माण करने वाले व्यक्ति के रूप में, मैं जिसे "आध्यात्मिक बुनियादी ढांचा" कहता हूं, उसके इस शानदार प्रदर्शन से मैं खुद को हैरान पाता हूं - एक ऐसी ताकत जिसने हजार वर्ष तक हमारी सभ्यता को कायम रखा है.
गौतम अदाणी अपने ब्लॉग में लिखते हैं 'जब हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने कुम्भ मेले की व्यवस्था का अध्ययन किया, तो उन्हें इसकी विशालता पर आश्चर्य हुआ. लेकिन, एक भारतीय के रूप में, मैं कुछ गहरी बात देखता हूं: दुनिया की सबसे सफल पॉप-अप मेगासिटी केवल संख्याओं के बारे में नहीं है - ये शाश्वत सिद्धांतों के बारे में है जिसे हम अदाणी ग्रुप में अपनाने की कोशिश करते हैं.' इस पर गौर करिए, हर 12 साल में, न्यूयॉर्क से भी बड़ा एक अस्थायी शहर पवित्र नदियों के तट पर बनता है. कोई बोर्ड मीटिंग नहीं. कोई पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन नहीं. कोई वेंचर कैपिटल नहीं, बिल्कुल शुद्ध, भारतीय जुगाड़ जो सदियों से चली आ रही सीख से मिला है.
गौतम अदाणी ने कुम्भ लीडरशिप के तीन अविनाशी स्तंभ बताए हैं-
1- पैमाना केवल विशालता के बारे में नहीं
कुम्भ में, पैमाना केवल विशालता के बारे में नहीं है - ये प्रभाव के बारे में है. जब 20 करोड़ लोग समर्पण और सेवा भाव से जुटते हैं तो यह सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि आत्माओं का अनोखा संगम होता है. इसे मैं "पैमाने की आध्यात्मिक अर्थव्यवस्थाएं" कहता हूं. ये जितना बड़ा होता जाता है, यह उतना ही अधिक कुशल होता जाता है, न केवल भौतिक दृष्टि से बल्कि मानवीय और मानवता की दृष्टि से भी. सच्चा पैमाना मेट्रिक्स में नहीं मापा जाता है बल्कि एकता के क्षणों में मापा जाता है.
2. सस्टेनेबिलिटी से पहले सस्टेनेबल अच्छा था
ESG के बोर्डरूम में चर्चा का विषय बनने से बहुत पहले, कुम्भ मेले ने सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों का अभ्यास किया था. नदी में केवल जल का स्रोत नहीं, जीवन का प्रवाह है. इसे संरक्षित करना हमारे प्राचीन ज्ञान का प्रमाण है. वही नदी जो लाखों लोगों को मेजबानी करती है, कुंभ के बाद अपनी प्राकृतिक स्थिति में लौट आती है, जो लाखों श्रद्धालुओं को शुद्ध करती है और इस बात का भरोसा देती है कि वो धोई गई सभी अशुद्धियों को खुद साफ कर सकती है. प्रगति इसमें नहीं है कि हम पृथ्वी से क्या लेते हैं, बल्कि इसमें है कि हम इसे वापस कैसे देते हैं.
3- लीडरशिप आदेश देने में नहीं
गौतम अदाणी लिखते हैं कि सबसे शक्तिशाली पहलू? सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं बल्कि सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता में निहित है. कई अखाड़े, स्थानीय अधिकारी और स्वयंसेवक सद्भाव से काम करते हैं. ये सेवा के माध्यम से नेतृत्व है, न कि प्रभुत्व है. ये हमें सिखाता है कि बड़ा लीडर आदेश या नियंत्रण नहीं करते - वे दूसरों के लिए एक साथ काम करने और सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करते हैं. - सेवा साधना है, सेवा प्रार्थना है और सेवा ही परमात्मा है.
गौतम अदाणी बताते हैं कि कुम्भ ग्लोबल बिजनेस को क्या सिखाता है. वो ब्लॉग में लिखते हैं कि जैसा कि भारत का लक्ष्य 10 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनना है, कुम्भ मेला इस बारे में एक अंतर्दृष्टि देता है. मेला हर किसी का स्वागत करता है - साधुओं से लेकर CEO तक, गांव के लोगों से लेकर विदेशी पर्यटकों तक. ये उसका सर्वोत्तम उदाहरण है जिसे हम अदाणी में "Growth with Goodness" कहते हैं.
गौतम अदाणी लिखते हैं कि जबकि हम डिजिटल इनोवेशन पर गर्व करते हैं, कुम्भ आध्यात्मिक टेक्नोलॉजी - बड़े पैमाने पर मानव चेतना के प्रबंधन के लिए टाइम-टेस्टेड सिस्टम का प्रदर्शन करता है. ये सॉफ्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर उस युग में भौतिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जितना ही महत्वपूर्ण है, जहां सबसे बड़ा खतरा मानसिक बीमारी है!
जब मैं हमारे पोर्ट्स या सोलर कंपनियों से गुजरता हूं तो मैं अक्सर कुम्भ के सबक पर विचार करता हूं. हमारी प्राचीन सभ्यता ने केवल स्मारकों का निर्माण नहीं किया - इसने ऐसी जीवित प्रणालियां बनाईं जो लाखों लोगों का भरण-पोषण करती हैं. आधुनिक भारत में हमें यही उम्मीद रखनी चाहिए, न केवल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, बल्कि इकोसिस्टम का पोषण करना भी जरूरी है.
गौतम अदाणी कहते हैं कि मॉडर्न लीडर्स के लिए कुम्भ एक गहरा सवाल खड़ा करता है, क्या हम ऐसे संगठन बना सकते हैं जो न केवल वर्षों तक, बल्कि सदियों तक चलेंगे? क्या हमारे सिस्टम न केवल पैमाने को, बल्कि आत्मा को भी संभाल सकते हैं? AI, जलवायु संकट और सामाजिक विखंडन के युग में, कुम्भ के सबक पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हैं.
जैसे-जैसे भारत एक वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, हमें याद रखना चाहिए हमारी ताकत सिर्फ इस बात में नहीं है कि हम क्या बनाते हैं, बल्कि इसमें भी है कि हम क्या संरक्षित करते हैं. कुम्भ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह सस्टेनेबल सिविलाइजेशन का एक खाका है. ये मेरे लिए एक अनुस्मारक है कि वास्तविक पैमाना बैलेंस शीट में नहीं बल्कि मानव चेतना पर सकारात्मक प्रभाव में मापा जाता है.
कुम्भ में, हम भारत की सॉफ्ट पावर का सार देखते हैं - एक ऐसी शक्ति जो विजय में नहीं बल्कि चेतना में निहित है, प्रभुत्व में नहीं बल्कि सेवा में निहित है. भारत की असली ताकत उसकी आत्मा में निहित है, जहां विकास सिर्फ आर्थिक ताकत नहीं बल्कि मानवीय चेतना और सेवा का संगम है. कुंभ हमें यही सबक सिखाता है - कि सच्ची विरासत निर्मित संरचनाओं में नहीं है, बल्कि हमसे बनाई गई चेतना में है - और जो सदियों तक पनपती है.
इसलिए, अगली बार जब आप भारत की विकास कहानी के बारे में सुनें, तो याद रखें कि हमारी सबसे सफल परियोजना कोई विशाल पोर्ट या रीन्युएबल एनर्जी पार्क नहीं, ये एक आध्यात्मिक सभा है जो सदियों से सफलतापूर्वक चल रही है, संसाधनों को कम किए बिना या अपनी आत्मा खोए बिना लाखों लोगों की सेवा कर रही है.