सरकार ने विलय (Merger) से जुड़े कंपनीज लॉ (Companies Law) में कुछ बदलाव किए हैं. PTI की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद किसी फॉरेन होल्डिंग कंपनी और उसकी पूरे मालिकाना हक वाली सब्सिडियरी के बीच मर्जर के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से मंजूरी लेना जरूरी होगा. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनीज रूल्स, 2016 में ये संशोधन किए हैं.
नया नियम खास तौर पर भारत के बाहर बनी एक विदेशी हस्तांतरणकर्ता कंपनी या ट्रांसफर करने वाली कंपनी और भारत में बनी उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी कंपनी, ट्रांसफर होने वाली कंपनी से जुड़े विलय को लेकर बनाया गया है. ऐसे लेनदेन को अब आगे बढ़ने से पहले RBI की मंजूरी लेनी होगी
ऐसे मामलों को लेकर मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि दोनों कंपनियों को RBI से पहले मंजूरी लेनी होगी और भारतीय कंपनी को कंपनीज एक्ट के तहत सेक्शन 233 के प्रावधानों का भी पालन करना होगा. सेक्शन 233 कुछ कंपनियों के मर्जर से जुड़ा है.
नांगिया एंडरसन LLP में पार्टनर संदीप झुनझुनवाला ने कहा कि हालिया समय में रिवर्स फ्लिपिंग का ट्रेंड बहुत से न्यू ऐज स्टार्टअप्स के लिए नियम रहा है. देश के IPO मार्केट की मजबूती और ग्रोथ से निवेशकों को रिटर्न हासिल करने के लिए उपयुक्त एग्जिट स्ट्रैटजी मिलती है.
उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने एक नया सब-रूल जोड़ा है जिससे दोनों विदेशी कंपनी और उसकी पूरे मालिकाना हक वाली भारतीय सब्सिडियरी को अब मर्जर के मामले में पहले RBI से मंजूरी लेनी होगी.
झुनझुनवाला ने आगे कहा कि इसके अलावा भारतीय कंपनी को केंद्र सरकार में ऐसे भारत से जुड़े मर्जर से जुड़ी मंजूरी के लिए कंपनीज एक्ट 2013 के सेक्शन 233 और कंपनीज (कंप्रोमाइजेज, अरेंजमेंट्स एंड अमेल्गमेशन्स) रूल्स, 2016 के नियम 25 के मौजूदा प्रावधानों के तहत आवेदन देना होगा.