1 अप्रैल से नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के साथ, देश की अर्थव्यवस्था 2025-26 में 6.5% की दर से बढ़ सकती है, ये अनुमान है EY इकोनॉमी वॉच का.
रिपोर्ट में एक सोची समझी वित्तीय रणनीति की जरूरत पर जोर दिया गया है जो ह्यूमन कैपिटल डेवलपमेंट को सपोर्ट करे साथ ही लॉन्ग टर्म ग्रोथ के लिए वित्तीय विवेक बनाए रखे.
मार्च 2025 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष के लिए, रिपोर्ट ने रियल GDP ग्रोथ के 6.4% होने का अनुमान लगाया गया है। पिछले महीने नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने GDP ग्रोथ अनुमानों को संशोधित कर 2022-23 के लिए 7.6%, 2023-24 के लिए 9.2%, और 2024-25 के लिए 6.5% कर दिया था।
EY का कहना है कि NSO के पूरे साल के ग्रोथ अनुमान को पूरा करने के लिए, अर्थव्यवस्था को चौथी तिमाही में 7.6% बढ़ने की जरूरत होगी, जिसका मतलब है प्राइवेट कंजम्पशन एक्सपेंडिचर में 9.9% की बढ़ोतरी. हालांकि इस तरह की बढ़ोतरी हाल के वर्षों में नहीं देखी गई। रिपोर्ट में इन्वेस्टमेंट एक्सपेंडिचर को बढ़ाने का भी सुझाव दिया गया है, जिसमें सरकारी कैपिटल एक्सपेंडिचर अहम भूमिका निभाएगा।
प्राइवेट कैपिटल एक्सपेंडिचर कई तिमाहियों से कमजोर रहा है। पिछले हफ्ते, वित्त मंत्रालय ने इंडस्टीज से बाहरी जोखिमों का मुकाबला करने के लिए निजी निवेश को बढ़ाने का आग्रह किया और 2025-26 में विकास के लिए इसे एक प्रमुख बिंदु के तौर पर हाइलाइट किया.
रिपोर्ट में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर सरकार का खर्च बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया है, यह अनुमान लगाया गया है कि एजुकेश एक्सपेंडिटर्स को मौजूदा 4.6% से बढ़ाकर वित्तीय वर्ष 2048 तक GDP का 6.5% करना चाहिए, जबकि हेल्थ सर्विसेज पर खर्च को 2021 में 1.1% से बढ़ाकर 3.8% करना होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक फिस्कल रिस्ट्रक्चरिंग को चरणबद्ध तरीके करने से इन लक्ष्यों को विकास से समझौता किए बिना पूरा किया जा सकता है. यह सुझाव भी दिया गया है कि रेवेन्यू-टू-GDP रेश्यो को समय के साथ 21% से बढ़ाकर 29% करने से जरूरी संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित हो सकता है.
EY इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार, DK श्रीवास्तव ने कहा कि भारत के बदलते डेमोग्राफिक स्ट्रक्चर, जिसमें कामकाजी उम्र की आबादी बढ़ रही है, विकास, रोजगार, बचत और निवेश का एक सकारात्मक चक्र चला सकता है.
इसका लाभ उठाने के लिए, भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर खर्च को धीरे-धीरे बढ़ाने की जरूरत हो सकती है, साथ ही से निम्न-आय वाले राज्यों के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करना होगा।