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सातवें आसमान पर IPL की लोकप्रियता, लेकिन नहीं बढ़ रही है टीमों की कमाई; जानें पूरा गणित

टीमों की एक बड़ी इनकम का सोर्स सेंट्रल पूल होता है. इसका पैसा BCCI द्वारा तमाम स्त्रोतों से कलेक्ट किया जाता है और फिर सभी टीमों में बराबर बांट दिया जाता है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी01:34 PM IST, 28 Mar 2024NDTV Profit हिंदी
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भारत की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली लीग होने के बावजूद बीते चार साल से IPL टीमों की कमाई बढ़ती नहीं दिख रही है.

जाहिर है ब्रॉडकास्टर डील के चलते सेंट्रल पूल से मिलने वाले शेयर की कमाई इस दौरान स्थिर ही रही, लेकिन टीमों के रेवेन्यू में ग्रोथ ना होने की वजह स्पॉन्सरशिप, मर्चेंडाइज और टिकट सेल्स कमजोर होना है.

स्थिर सेंट्रल पूल

टीमों की एक बड़ी इनकम का सोर्स सेंट्रल पूल होता है. इसका पैसा BCCI द्वारा तमाम स्त्रोतों से कलेक्ट किया जाता है और फिर सभी टीमों में बराबर बांट दिया जाता है.

सेंट्रल पूल में सबसे बड़ा हिस्सा ब्रॉडकास्टिंग राइट्स की फीस का होता है. इसमें फिर स्पॉन्सरशिप फीस के साथ-साथ पुरानी और नई फ्रेंचाइजीज से मिली फीस भी शामिल होती है.

कुलमिलाकर इसमें जितना रेवेन्यू होता है, उसका लगभग आधा BCCI रख लेती है और 45% हिस्से को टीमों में बराबर बांट दिया जाता है. बचे हुए 5% को प्रदर्शन के आधार पर बांटा जाता है.

नॉन कोर रेवेन्यू

ब्रॉडकास्ट डील कोर रेवेन्यू स्ट्रीम होती हैं, जहां गारंटीड कैश इन्फ्लो है. लेकिन इसके अलावा फ्रेंचाइजीज के पास सप्लीमेंट्री रेवेन्यू स्ट्रीम्स भी होती हैं, जिनमें स्पॉन्सरशिप डील्स, टिकट सेल्स, मैच रिवार्ड्स होते हैं, जो इनके नॉन कोर रेवेन्यू का हिस्सा होते हैं.

आमतौर पर माना जाता है कि ये नॉन कोर रेवेन्यू समय के साथ ग्रोथ करेंगे. क्योंकि IPL की लोकप्रियता और कमर्शियलाइजेशन बढ़ता जा रहा है. कई टीमों ने जियो, बायजूज और हीरो मोटोकॉर्प के साथ कई सालों की स्पॉन्सरशिप डील साइन की हैं.

लीग की सफलता लगातार बढ़ रही है, दर्शकों की संख्या में उछाल आता जा रहा है, दुनिया का रुझान लीग की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद टीमों के रेवेन्यू 2020 के बाद स्थिर बने हुए हैं.

इसकी एक बड़ी वजह लीग का छोटा फॉर्मेट हो सकता है.

जेफरीज के मुताबिक, 'छोटे फॉर्मेट के चलते मैचों की संख्या कम होती है, जिससे स्टेडियम में टीमों को उतना रेवेन्यू नहीं मिल पाता, आखिर टीम के मर्चेंडाइज की बिक्री भी कम होती है. IPL टीमें ब्रॉडकास्टिंग और स्पॉन्सरशिप रेवेन्यू के मोर्चे पर अच्छा करती हैं, लेकिन मैचों के दिन होने वाली कमाई, ग्लोबल लीग से काफी कम होता है, आखिर IPL 2 महीने चलता है, जबकि फुटबॉल लीग सालभर चलती हैं.'

नॉन ब्रॉडकास्टिंग ग्रोथ?

नॉन कोर रेवन्यू का ना बढ़ना टिकट बिक्री के आगे की भी बात है.

दरअसल फ्रेंचाइजी अब तक BCCI की तरफ से मैनेज होने वाले पहलू को छोड़कर, दूसरी तरफ की कमाई में इजाफा करने में नाकाम रही हैं.

विज्ञापन और स्टेडियम से होने वाली कमाई में फिलहाल IPL टीमों की कोई हिस्सेदारी नहीं है. वैश्विक स्तर पर ये साधन सेंट्रल ब्रॉडकास्टिंग रेवेन्यू की तुलना में बहुत ज्यादा होते हैं, जैसा फुटबॉल फ्रेंचाइजीज के मामले में देखा जाता है.

भले ही IPL के वैल्यूएशन और रेवेन्यू में कितना ही इजाफा हुआ हो, व्यक्तिगत टीम की ग्रोथ इस बात पर निर्भर करती है कि वे नॉन ब्रॉडकास्ट रेवेन्यू किस हद तक जेनरेट कर पाते हैं. अब तक मर्चेंडाइज, टिकटिंग और दूसरे इवेंट्स से होने वाली कमाई के मोर्चे पर टीमें असफल ही रही हैं.

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