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IRDAI ने री-इंश्योरेंस रेगुलेशंस में बदलावों को दी मंजूरी, बिजनेस के लिए बेहतर माहौल बनाना है मकसद

IRDAI ने कहा कि देश को एक ग्लोबल री-इंश्योरेंस हब के तौर पर स्थापित करने के लिए ये संशोधन किए गए हैं.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी06:01 PM IST, 24 Aug 2023NDTV Profit हिंदी
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इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी IRDAI ने री-इंश्योरेंस रेगुलेशंस में कुछ बदलावों को मंजूरी दी है. इसका मकसद, देश में बेहतर कारोबारी माहौल को बढ़ावा देना और री-इंश्योरेंस कंपनियों को कारोबार शुरू करने के लिए आकर्षित करना है.

अपनी 123वीं अथॉरिटी मीटिंग में, IRDAI ने मौजूदा नियमों में बदलाव किए हैं, जो इंश्योरेंस कंपनियों, री-इंश्योरेंस कंपनियों, विदेशी री-इंश्योरेंस ब्रांच और इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर इंश्योरेंस ऑफिसेज पर लागू होते हैं.

क्या-क्या बदलाव किए गए?

IRDAI ने कहा कि देश को एक ग्लोबल री-इंश्योरेंस हब के तौर पर स्थापित करने के लिए ये संशोधन किए गए हैं.

मुख्य बदलावों में शामिल हैं:

  • विदेशी री-इंश्योरेंस ब्रांच के लिए न्यूनतम कैपिटल की जरूरत को 100 करोड़ से घटाकर 50 करोड़ कर दिया गया है.

  • ऑर्डर ऑफ प्रिफरेंस जो पहले 6 स्तर की थी, उसे अब घटाकर 4 पर लाया गया है.

  • री-इंश्योरेंस प्रोग्राम के लिए फॉर्मेट को आसान बना दिया गया है. ज्यादा स्पष्टता और प्रभावी बनाने के लिए रेगुलेटरी रिपोर्टिंग से जुड़ी जरूरतों को रेशनलाइज किया गया है.

  • इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर्स अथॉरिटी के समन्वय में काम करके भारत को ग्लोबल री-इंश्योरेंस हब के तौर पर स्थापित करना है.

  • IFSC इंश्योरेंस ऑफिसेज के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर्स अथॉरिटी रेगुलेशंस के मुताबिक किया गया है, जिसका मकसद दोहरे अनुपालन को खत्म करना है.

  • रेगुलेटर ने कहा कि IIOs के लिए संशोधित ऑर्डर ऑफ प्रिफरेंस, सरल नियम और बेहतर प्लेसमेंट ने ज्यादा प्रतिस्पर्धी माहौल को बढ़ावा दिया है.

क्या है बदलावों का मकसद?

इन बदलावों का मकसद है:

  • री-इंश्योरेंस सेक्टर की कुल क्षमता को बढ़ाने के लिए कोशिश करना, जिससे बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके और बड़े जोखिमों को मैनेज किया जा सके.

  • इंडस्ट्री के अंदर तकनीकी निपुणता को बढ़ाना, जिससे एक्सीलेंस और इनोवेशन के माहौल को बढ़ावा दिया जा सके.

  • सेक्टर में काम करने वाली अलग-अलग संस्थाओं पर अनुपालन के बोझ को घटाना.

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