Israel-Iran conflict: ईरान-इजरायल के बीच बढ़ते तनाव की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में अचानक उछाल आ गया है, इसमें और तेजी आ सकती है, जिससे भारत के फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) सेक्टर की रिकवरी खतरे में है. तेल की कीमतों में तेज उछाल से अब पैकेजिंग और माल ढुलाई के खर्च में बढ़ोतरी होने वाली है. इसने कंपनियां साबुन और स्नैक्स से लेकर डिटर्जेंट, पेंट तक रोजमर्रा की जरूरी चीजों की कीमतों में इजाफा होने की चेतावनी दे रहीं हैं.
गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के सेल्स हेड कृष्ण खटवानी, जो सिंथोल और गुड नाइट जैसे ब्रांडों के मालिक हैं, ने कहा है कि, 'जिओ पॉलिटिक्स में तनाव कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ाकर शॉर्ट टर्म में नेगेटिव हालात बना सकता है. इससे कीमतें बढ़ सकती हैं और उपभोक्ताओं को परेशानी हो सकती है.'
मैन्युफैक्चरर का कहना है कि बढ़ती इनपुट कॉस्ट की वजह से प्रॉफिट मार्जिन कम हो जाएगा, जिससे उन्हें इसका बोझ कंज्यूमर पर डालकर इसकी भरपाई करनी होगी.
हालांकि, पारले प्रोडक्ट्स के VP मयंक शाह ने कहा कि, 'स्टिकर पर कीमतों में कितनी बढ़ोतरी होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है. हम अगले 10-15 दिनों में तेल की कीमतों में कितनी बढ़ोतरी होती है, इसके आधार पर ही अंदाजा लगा पाएंगे. हम जिओ पॉलिटिक्स पर बारीकी से नजर रख रहे हैं.'
सोमवार को ब्रेंट क्रूड 79 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार कर रहा था. ईरानी परमाणु जगहों पर इजरायल के हमलों और उसके बाद तेहरान की ओर से मिसाइल जवाबी कार्रवाई के बाद इसमें 10% का इजाफा हुआ है. मई में कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थीं. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के ईरान पर अमेरिकी हमले के फैसलों के बाद विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इससे कीमतें और भी बढ़ सकती हैं.
एनर्जी कंसल्टेंसी ग्रुप (FGE) के फाउंडर डॉ. फेरीदुन फेशरकी के अनुसार, होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz could) के बंद होने से कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं. भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 90% आयात करता है, और 2024 में इनमें से लगभग 38% आयात इसी रास्ते से हुआ.
FMCG उत्पादों को बनाने में लीनियर एल्काइल बेंजीन - डिटर्जेंट में उपयोग किया जाता है, और टाइटेनियम डाइऑक्साइड - कैंडी और बेक्ड सामान से पेंट बनाया जाता है. सजावटी पेंट के प्रोडक्शन में 300 से ज्यादा आइटम शामिल हैं, जो मुख्य रूप से पेट्रोलियम से मिलते हैं.
शालीमार पेंट्स के CFO और MD कुलदीप रैना ने कहा, 'टेंशन ने वैश्विक सप्लाई चेन को रोका है, जिसमें शिपिंग में देरी, प्रोडक्शन में कमी और ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट में इजाफा हो रहा है. इन सभी से कच्चे माल की लागत बढ़ रही हैं. यदि कच्चे माल की लागत लगातार बढ़ती गई तो तो सलेक्टिव प्राइस रिवीजन जरूरी हो सकते हैं.'
ये समस्या तब आई है जब FMCG कंपनियों ने लगातार पांच तिमाहियों में सुस्त बिक्री के बाद, खास तौर पर शहरी बाजारों में, मांग में सुधार के संकेत देखना शुरू ही किया था. ज्यादातर कमोडिटी में प्राइस बढ़ने रुक गए थे. कंपनियों का कहना है कि तेल की बढ़ती कीमतें प्रॉफिट को कम कर देंगी, जिससे इस FY की दूसरी छमाही से मार्जिन में राहत की उम्मीद खत्म हो जाएगी.
प्रॉक्टर एंड गैम्बल हाइजीन एंड हेल्थ केयर की CFO मृणालिनी श्रीनिवासन ने कहा कि, 'सरकारी और निजी निवेश का असर बिजनेस पर पॉजिटिव हो रहा था पर अब हमें उभरते वैश्विक तनावों और व्यापार नीतियों पर नजर रखनी चाहिए, जिसका महंगाई और डिमांड पर असर पड़ेगा.'
बीकाजी फूड्स इंटरनेशनल लिमिटेड के COO मनोज वर्मा ने कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से पैकेजिंग और माल ढुलाई की लागत बढ़ सकती है, जिससे हाल ही में पाम तेल पर आयात शुल्क में 20% से 10% की कटौती से हुए प्रॉफिट से आंशिक रूप से इसकी भरपाई हो सकती है.
FMCG फर्म आम तौर पर 3-6 महीने के लिए कच्चे माल की हेजिंग करती हैं. विश्लेषकों का कहना है कि शहरी डिमांड अभी भी कम है. हालांकि दौलत कैपिटल मार्केट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर रिसर्च सचिन बोबडे ने कहा, 'इससे कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ेगा, क्योंकि त्योहारी सीजन शुरू हो गया है.'