अमेरिकी टैरिफ से भारतीय फार्मा कंपनियों को मार्केट शेयर बढ़ाने में मदद मिल सकती है. ये जानकारी JP मॉर्गन की रिपोर्ट में सामने आयी है.
ब्रोकरेज फर्म JP मॉर्गन ने टैरिफ और भारतीय फार्मा मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी को अमेरिका में शिफ्ट करने के मुद्दे को एड्रेस किया.
ये तब हुआ जब निफ्टी फार्मा 27 मार्च को तीसरे सेशन में भी गिरकर बंद हुआ है.
JP मॉर्गन ने कहा कि उपभोक्ताओं के लिए लागत में इजाफा और अल्टरनेटिव सप्लायर की सीमित उपलब्धता के कारण फार्मास्यूटिकल्स पर 25% या उससे अधिक टैरिफ असंभव है. 10% टैरिफ की स्थिति में अनुमानित 50-80% का एक बड़ा हिस्सा ग्राहकों को दिए जाने की उम्मीद है. टैरिफ में बढ़ोतरी का बाकी बचा हिस्सा मैन्युफैक्चरर्स और फार्मेसी बेनिफिट मैनेजर्स (PBM) वहन करेगा.
JP मॉर्गन ने कहा है कि बायोसिमिलर को टैरिफ से छूट दी जा सकती है. अमेरिका में इन प्रोडक्ट्स के लिए सीमित मैन्युफैक्चरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर होने के कारण डिमांड का करीब 70% हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है.
इस बात की भी संभावना कम है कि भारतीय फार्मा कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी को अमेरिका में शिफ्ट करें. JP मॉर्गन ने कहा कि अमेरिकी प्रशासन का लक्ष्य आयात निर्भरता को कम करना है. विशेष रूप से महत्वपूर्ण दवाओं के लिए और घरेलू प्रोडक्शन को बढ़ावा देना है. लेकिन टैरिफ के कारण मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का अमेरिका में शिफ्ट नहीं हो सकता है.
JP मॉर्गन के एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत के अलावा इजरायल और स्विट्जरलैंड से जेनेरिक दवाओं पर आयात शुल्क बहुत अधिक संभावित है. ऐसा इन देशों में टेवा और सैंडोज की मैन्युफैक्चरिंग प्रजेंस के कारण है.
एक्सपर्ट के अनुसार, इजरायल और स्विट्जरलैंड की कंपनियां भारतीय फर्मों की तुलना में कम प्रॉफिट मार्जिन के साथ काम करती हैं और इसलिए संभावित टैरिफ से उन पर अधिक नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा. JP मॉर्गन ने कहा कि अनिवार्य रूप से भारतीय दवा कंपनियों में अपनी बेहतर कॉस्ट कॉम्पिटेटिवनेस के कारण अपने ग्लोबल कॉम्पिटिटर की एक्सपेंस पर मार्केट शेयर हासिल करने की क्षमता है.