दीवाली, रक्षाबंधन, नवरात्रि जैसे त्योहार आते ही लोगों की अपने घरों की तरफ जाने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है. भारी भीड़ के बीच कैसे भी ट्रेन, प्लेन या किसी और टिकट की जुगाड़ में लग जाते हैं. इस बीच एयलाइंस भी मौके का फायदा उठाती हैं और हाई डिमांड का हवाला देते हुए रेट बढ़ाती हैं.
लेकिन लोकलसर्किल्स की एक रिपोर्ट से पता चला है कि आम दिनों में भी लोगों को बड़े पैमाने पर ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, जब अचानक रेट बढ़े हुए नजर आते हैं या उन्हें दूसरे तरीकों से ज्यादा पैसा देने के लिए मजबूर किया जाता है.
लोकलसर्किल्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 10 में से 6 हवाई यात्रियों ने एयरलाइन वेबसाइट्स और ऐप्स पर डार्क पैटर्न के फेर में पड़ने की बात कही है. जबकि 10 में से 4 यात्रियों का कहना है कि उन्हें जो प्राइस शो किया गया था, आखिर में उससे ज्यादा चीजों के लिए कीमत चुकानी पड़ी, मतलब बास्केट स्नीकिंग का शिकार होना पड़ा.
डार्क पैटर्न के तहत वे तरीके आते हैं, जिनमें यात्रियों को तय सेवा के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं या उन्हें जबरदस्ती कोई एक्शन लेने के लिए मजबूर किया जाता है.
इस रिपोर्ट के लिए भारत के 322 जिलों से 20,000 कंज्यूमर्स से 55,000 प्रतिक्रियाएं इकट्ठा की गई हैं. रिपोर्ट में सामने आईं ये बातें:
रिपोर्ट कहती है कि डायनामिक होने के चलते छुट्टियों के दिनों में हवाई टिकट का महंगा होना सामान्य है. लेकिन ये एक रहस्य है कि क्यों कुछ लोग जब किसी एयरलाइन वेबसाइट/ऐप में स्क्रॉलिंग कर रहे होते हैं, तो टिकट प्राइस बढ़ जाता है. लेकिन अगर इसके लिए इन्कॉग्निटो ब्राउजर या डिवाइस का उपयोग किया जाता है, तो जो पहले किराया दिखाया जा रहा है, मतलब कम राशि वाला, वो वापस दिखने लगता है.
लोगों से लोकलसर्किल्स ने पूछा कि क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि जब एक ही डिवाइस/ब्राउजर/वेबसाइट से सर्फिंग करने के दौरान किराया बढ़ गया, लेकिन दूसरी डिवाइस/ब्राउजर में पुराना ही किराया दिखाता है.
जवाब में 13,988 प्रतिक्रियाएं आईं, इनमें से 72% लोगों ने कहा कि ऐसा बहुत बार (Very Frequent) होता है. जबकि 18% ने कहा कि कुछ बार (sometimes) ऐसा हुआ है. वहीं 4% ने कहा कि ऐसा कभी कभार हो जाता है, सिर्फ 3% लोगों ने इससे इनकार किया.
लोगों का ये भी अनुभव रहा है कि उन्हें एक या दो सीट ही खाली रहने की बात बताकर अर्जेंसी का झूठा अहसास दिलाया जाता है. एयरलाइन या ऑनलाइन ट्रेवल बुकिंग पोर्टल्स लोगों को जल्दबाजी में फैसला लेने को मजबूर करते हैं.
ये फैसला कई बार उन्हें तब उलटा पड़ जाता है, जब उनके प्लान में कुछ बदलाव होता है और उन्होंने रिफंड के लिए अतिरिक्त पेमेंट का ऑप्शन नहीं चुना होता है. ऐसी स्थिति में उनका पूरा अमाउंट डूब जाता है.
लोगों से सवाल पूछा गया कि ऐसा कितनी बार हुआ है कि उनको अर्जेंसी का सेंस बनाने वाली वेबसाइट्स का शिकार होना पड़ा है, मतलब कहा गया कि प्लेन में सिर्फ 1 या 2 सीट ही खाली बची हैं? जबकि बाद में ये जबरदस्ती बनाई गई या आर्टिफिशियल अर्जेंसी पाई गई.
कुल 13,965 रिस्पांस में 62% ने कहा कि उन्हें बहुत बार (Very Frequent) इस स्थिति का सामना करना पड़ा है. जबकि 19% ने कहा वे कुछ बार (Sometimes) ऐसी स्थिति में फंसे हैं. 7% ने माना कि उन्होंने कभी-कभार (Rarely) ही ऐसी स्थिति झेली है, जबकि 9% ने ऐसी स्थिति से पूरी तरह इनकार किया. 3% लोग किसी तरह की साफ प्रतिक्रिया नहीं दे पाए.
ऑनलाइन टिकट बुक करना तब तकलीफ भरा हो जाता है जब कुछ अनचाहे ऑफर्स जोड़ दिए जाते हैं, जिनसे कंज्यूमर को उम्मीद से ज्यादा भुगतान करना पड़ता है. ये टैक्स पेमेंट से अलग होते हैं.
सर्वे में ऑनलाइन टिकट बुक करने वालों से पूछा गया, 'ऐसा कितनी बार हुआ है कि एयरलाइन ऐप्स/वेबसाइट्स पर बुकिंग के दौरान प्लेटफॉर्म ने आपकी शॉप कार्ट में ऑटोमैटिक अतिरिक्त सर्विसेज/ट्रांजैक्शंस जोड़ दिए.'
इस सवाल पर कुल 13,919 प्रतिक्रियाएं आईं, इनमें से 40% ने कहा कि उनके सामने बहुत बार (Very Frequent) ये स्थिति आई है. जबकि 27% ने कहा कि कुछ बार (Sometimes) उन्होंने ऐसे ट्रांजैक्शंस/सर्विसेज का सामना किया है. 9% को कभी-कभार ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ा है, जबकि 12% ने कहा कि उनके साथ ऐसा कभी नहीं हुआ. 11% लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया.
अब अगर एयरलाइंस की बात की जाए, तो ड्रिप प्राइसिंग सभी बड़ी एयरलाइंस कर रही हैं. सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा डार्क पैटर्न इंडिगो और एयर इंडिया की बुकिंग्स के दौरान देखे गए हैं.
एयर इंडिया में फाल्स अर्जेंसी, बास्केट स्नीकिंग, ड्रिप प्राइसिंग और फोर्स्ड एक्शन जैसे डार्क पैटर्न्स की शिकायत है. जबकि विस्तारा में सिर्फ बास्केट स्नीकिंग और ड्रिप प्राइसिंग की बात सामने आई.
सबसे बुरा हाल इंडिगो का है, जहां बास्केट स्नीकिंग, कंफर्म शेमिंग, फोर्स्ड एक्शन, इंटरफेस इंटरफेरेंस और ड्रिप प्राइसिंग देखी गई.
स्पाइसजेट में बास्केट स्नीकिंग, कंफर्म शेमिंग और ड्रिप प्राइसिंग से ग्राहकों को अनचाहे ट्रांजैक्शंस के लिए मजबूर होना पड़ा. अकासा एयर में फाल्स अर्जेंसी, फोर्स्ड एक्शन और ड्रिप प्राइसिंग की दिक्कत रही.