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आसमान पर राज करने से लेकर जेल तक, नरेश गोयल की अर्श से फर्श पर पहुंचने की कहानी

आंखों में आंसू लिये और दुखी नरेश गोयल सिस्टम को लेकर इतने ज्यादा निराश हो गए हैं कि उन्होंने पिछले हफ्ते स्पेशल कोर्ट से कहा कि वो जेल में मरना पसंद करेंगे.
NDTV Profit हिंदीविनय खुल्बै, चारू सिंह
NDTV Profit हिंदी08:22 PM IST, 09 Jan 2024NDTV Profit हिंदी
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आंखों में आंसू लिये और दुखी नरेश गोयल सिस्टम को लेकर इतने ज्यादा निराश हो गए कि उन्होंने पिछले हफ्ते स्पेशल कोर्ट से कहा कि वो जेल में मरना पसंद करेंगे. एक समय पर गोयल आसमान पर राज करते थे. सरकार एविएशन पॉलिसी से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले उनसे सलाह-मशविरा करती थी.

गोयल की एयरलाइन जेट एयरवेज एक समय पर आसमान पर राज करती थी. लेकिन कुछ गलत दांव, सस्ती एयरलाइंस से मुकाबला और उतार-चढ़ाव ने इस एयरलाइन को संकट में फंसा दिया.

कैसे शुरू हुआ गोयल का सफर?

नरेश गोयल पंजाब से आते हैं. उन्होंने 1960 के दशक में अपना करियर किसी रिश्तेदार की ट्रैवल एजेंसी में शुरू किया था. उन्होंने जल्द ही इस धंधे के गुर सीख लिये और 1974 में जेट एयर प्राइवेट की शुरुआत की, जो विदेशी एयरलाइंस को सेल्स और मार्केटिंग सर्विसेज देने का काम करती थी. कई सालों तक दुनिया की दिग्गज एयरलाइंस के साथ काम करने के बाद अर्थव्यवस्था के खुलने पर उन्होंने जेट एयरवेज की शुरुआत की.

जेट एयरवेज ने 1993 में कमर्शियल ऑपरेशंस की शुरुआत की. उस समय इस एयरलाइन का मुकाबला दमानिया एयरवेज, सहारा इंडिया, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस और सरकार की इंडियन एयरलाइंस, एयर इंडिया के साथ था. हालांकि भारतीय बाजार में ज्यादातर एयरलाइंस टिक नहीं पाईं.

एयर इंडिया के पूर्व एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर जितेंद्र भार्गव ने NDTV Profit को बताया कि उन्होंने जानबूझकर या बिना उसके अपने काम से भारतीय एविएशन को बड़ा नुकसान पहुंचाया. गोयल ने अपनी राजनीतिक पहुंच और नीति निर्माण में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कई एयरलाइंस को काम शुरू करने से रोका.

गोयल सरकार की नीतियों में देते थे दखल

भार्गव के मुताबिक सरकार की ओर से बनाई गई 5/20 पॉलिसी इसका उदाहरण मानी जाती है. पॉलिसी के तहत एयरलाइंस को इंटरनेशनल ऑपरेशंस शुरू करने के लिए कमर्शियल ऑपरेशंस के 5 साल और 20 एयरक्राफ्ट की फ्लीट का मालिक बनना जरूरी होता था. किसी अन्य देश का कोई ऐसा नियम नहीं था. सेक्टर के जानकारों के मुताबिक 2000 के दशक की शुरुआत में एयर इंडिया के विनिवेश को रोकने के पीछे गोयल का हाथ भी माना जाता है.

भार्गव ने कहा कि भारतीय एविएशन की स्थिति को सोचें अगर एयर इंडिया का विनिवेश पूरा हो जाता.

भारतीय एविएशन सेक्टर इंटरग्लोब एविएशन की इंडिगो, एयर डेक्कन और गो एयर के लॉन्च के बाद बदल गया. एयरलाइंस के बीच सस्ते हवाई सफर को लेकर मुकाबला शुरू हो गया और सर्विसेज की गुणवत्ता में गिरावट देखने को मिली. बजट एयरलाइंस से बढ़ते मुकाबले को देखते हुए गोयल ने 2,200 करोड़ रुपये में एयर सहारा का अधिग्रहण किया.

महंगे अधिग्रहण के बाद जेट एयरवेज की अंतरराष्ट्रीय रूट्स पर लागत बढ़ गई. नेटवर्क को तेजी से बढ़ाना, पर्याप्त इन-हाउस टैलेंट ना होना और प्राइस वॉर से जेट एयरवेज के लिए संकट बढ़ता चला गया. 2008 के वित्तीय संकट में डिमांड को झटका लगा और तेल की कीमतें बढ़ीं. जेट एयरवेज पहले से ही बढ़ती लागत से परेशान थी. अब वो ज्यादा कर्ज लेने लगी.

जेट एयरवेज को मिली थी थोड़ी राहत

जब किंगफिशर एयरलाइंस को फंड की बहुत जरूरत थी और विजय माल्या सरकार से विदेशी एयरलाइन को घरेलू कैरियर में निवेश की इजाजत देने की अपील कर रहे थे तो गोयल उस पॉलिसी के खिलाफ थे और उन्होंने विदेशी एयरलाइन के साथ समझौता करने से इनकार कर दिया. हालांकि जब उनकी एयरलाइन संकट में आई तो उन्होंने अपना मत बदल दिया. जेट एयरवेज को राहत तब मिली जब सरकार ने अपनी FDI पॉलिसी में बदलाव किया. उसने विदेशी एयरलाइंस को भारतीय कैरियर में 49% तक हिस्सेदारी खरीदने की इजाजत दे दी.

उसी समय जेट एयरवेज को फंड की जरूरत थी. एतिहाद एयरवेज ने 2,000 करोड़ रुपये में जेट एयरवेज में 24% हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया, जब भारत और अबु धाबी ने द्विपक्षीय समझौते के तहत उड़ानों को बढ़ाने पर सहमति जताई थी.

लेकिन ये राहत ज्यादा लंबे समय तक नहीं चली. अगले कुछ सालों में जेट एयरवेज को दोबारा फंड की जरूरत पड़ी. अप्रैल 2019 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जेट एयरवेज में और फंड डालने से इनकार कर दिया क्योंकि वो कई साल से घाटे और भारी कर्ज के बोझ के नीचे दब गई थी. उस समय जेट एयरवेज 120 से ज्यादा एयरक्राफ्ट का संचालन करती थी और सैकड़ों रूट्स पर उड़ानें भरती थी. इसके बाद एयरलाइन जमीन पर आ गई और उसे ऑपरेशंस को बंद करना पड़ा.

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