स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की अगुवाई में बैंक अब वोडाफोन आइडिया को और लोन देने के पक्ष में नहीं हैं. मामले की सीधी जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कर्जदाता वोडाफोन आइडिया में सरकार की हिस्सेदारी की स्थिति और कंपनी के प्रमोटर्स की ओर से ज्यादा से ज्यादा इक्विटी लाने पर और स्प्षटता का इंतजार कर रहे हैं.
इसके प्रमोटर्स में वोडाफोन पीएलसी और आदित्य बिड़ला ग्रुप शामिल हैं. दरअसल, ये फैसला तब लिया गया जब पैसों की किल्लत से जूझ रही वोडाफोन आइडिया ने बैंकों के कंसोर्शियम के सामने 7000 करोड़ रुपये की इमरजेंसी फाइनेंसिंग का प्रस्ताव रखा. इकोनॉमिक टाइम्स ने शुक्रवार को बताया था कि कंपनी ने कर्जदाताओं से इमरजेंसी फाइनेंसिंग की मांग की थी.
इन पैसों का इस्तेमाल कंपनी इंडस टावर्स लिमिटेड को अपना बकाया चुकाने में करेगी. Vi की ओर से बकाए का भुगतान नहीं किए जाने के कारण टावर कंपनी ने वित्तीय संकट का सामना किया है. गुरुवार को एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केवल सरकार की बकाया राशि को इक्विटी में बदलने से वोडाफोन आइडिया को मदद नहीं मिल सकती है.
"वोडाफोन (आइडिया) की कई जरूरते हैं, इसमें पूंजी की एक खास जरूरत है. कितनी पूंजी चाहिए, कौन डालेगा? इस समय उन सभी चीजों पर चर्चा चल रही है."अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय दूरसंचार मंत्री
सरकार ने जनवरी 2021 में वोडाफोन आइडिया में लगभग 16,000 करोड़ रुपये के बकाया को 35.8% इक्विटी हिस्सेदारी में बदलने पर अपनी सहमति दी थी.
इस कदम से दोनों प्रमोटर्स की कंपनी में हिस्सेदारी कम हो जाती है. मामले की जानकारी रखने वाले लोग बताते हैं कि, इससे वोडाफोन आइडिया पर कुछ बोझ भी कम होता है. मगर ये कंपनी को आगे चलाए रखने के लिए ये पूंजी पर्याप्त नहीं है, वोडाफोन आइडिया पर करीब 2 लाख करोड़ रुपये की देनदारी है.
मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि कर्जदाताओं का अनुमान है कि टेलीकॉम ऑपरेटर को अपना कामकाज चलाए रखने के लिए करीब 40,000-50,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. 3:1 के डेट-टू-इक्विटी रेश्यो का माना जाए तो कंपनी के प्रमोटर्स को कम से कम 10,000-12,000 करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी जुटानी होगी, लेकिन अबतक दोनों प्रमोटर्स में से किसी ने भी ये संकेत नहीं दिया है कि वो वोडाफोन आइडिया में आगे कोई निवेश करेंगे.
मामले की जानकारी रखने वाले लोग बताते हैं कि अगर वो पूंजी डालने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं, तो उनके लिए बेहतर होगा कि वे कंपनी को नए प्रमोटर को बेच दें,जो निवेश जारी रखना चाहते हों.
साल 2021 में इस बात को लेकर डर बढ़ गया था कि वोडाफोन आइडिया अब आगे नहीं चल पाएगी और बाजार को ये उम्मीद थी कि टेलीकॉम मार्केट पर सिर्फ दो कंपनियों का कब्जा हो जाएगा. हालांकि कुछ समय के लिए सरकारी बेलआउट से इन चिंताओं के बादल छंटे थे लेकिन एक बार फिर से पूंजी जुटाने की जुगत कंपनी में शुरू हो गई है और यही चिंता बढ़ा रही है.