उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा के रायगढ़ और कालाहांडी जिले ग्राम सभाओं से मंजूरी मिलने तक नियामगिरि पहाड़ियों में वेदांता समूह की बॉक्साइट खनन परियोजना पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति आफताब आलम, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने इन दो जिलों की ग्राम सभाओं को भी इलाके में रहने वाले आदिवासियों सहित इस खनन परियोजना से जुड़े तमाम मसलों पर तीन महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया है।
न्यायालय ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिया कि ग्राम सभाओं से रिपोर्ट मिलने के बाद ही दो महीने के भीतर इस मामले में कार्रवाई की जाए। न्यायालय ने राज्य के स्वामित्व वाली उड़ीसा माइनिंग कॉरपोरेशन की याचिका पर यह निर्देश दिया।
कॉरपोरेशन ने ब्रिटेन स्थित वेदांता समूह की भारतीय कंपनी स्टरलाइट इंडस्ट्रीज लिमिटेड के नियामगिरि बॉक्साइट खनन परियोजना की पर्यावरण मंजूरी रद्द करने के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के निर्णय को चुनौती दी थी। मंत्रालय ने वन परामर्श समिति की सिफारिश स्वीकार करते हुए लांजीगढ़, कालाहांडी और राजगढ़ जिलों में नियामगिरि की पहाड़ियों में ओएमसी और स्टरलाइट की खनन परियोजना को दूसरे चरण की वन मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।
इस मामले की सुनवाई के दौरान ओएमसी और स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने दावा किया था कि नियामगिरि की पहाड़ियों में खनन गतिविधियों के कारण पारिस्थितिकी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे समूहों ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि इस परियोजना में पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन हुआ है।
मंत्रालय ने न्यायालय में कहा था कि जंगलों में रहने वालों के सामुदायिक और व्यक्तिगत अधिकारियों के बारे में कानून के तहत निर्णय होने तक नियामगिरि पहाड़ियों में प्रस्तावित खनन स्थल से बेदखल नहीं किया जा सकता है।
इससे पहले, 2007 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने स्टरलाइट की बॉक्साइट खनन परियोजना को सिद्धांत रूप में मंजूरी दी थी, लेकिन अगस्त, 2010 में मंत्रालय ने तमाम वन एवं पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन का हवाला देते हुए इसे मंजूरी देने से इनकार कर दिया था वेदांता रिसोर्सेज ने कालाहांडी जिले में अल्यूमीनियम उत्पादन के लिए 10 लाख टन साला क्षमता की रिफाइनरी लगाने हेतु 2003 में ओडिशा सरकार के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। वेदांता ने बाद में इस रिफाइनरी की क्षमता बढ़ाकर 60 लाख टन सालाना करने की अनुमति मांगी थी।