डॉलर की मजबूती एक बार फिर दुनिया की बाकी करेंसीज पर हावी होने लगी है. दरअसल, निवेशकों को उम्मीद है कि अमेरिका में ब्याज दरों को ऊंचा ही रखा जा सकता है. बीते कई हफ्तों से चली आ रही डॉलर में ये मजबूती तेज और स्थिर रही है, डॉलर ने हाल ही में लगातार सात हफ्तों तक बढ़त दर्ज की है, जो कि 2018 के बाद सबसे लंबा पीरियड है.
लेकिन, डॉलर की इस मजबूती से एशिया की दूसरी करेंसीज के पांव उखड़ने लगे हैं. जापान और चीन की सरकारें अब अपने गिरते एक्सचेंज रेट्स को बचाने के लिए आनन-फानन में कदम उठाने के लिए मजबूर हो रही हैं. जापान की ओर से आज येन में आई तेज गिरावट को थामने के लिए बीते कई हफ्तों में एक सख्त चेतावनी जारी की गई है. इसके टॉप अधिकारियों ने कहा कि उनका देश इस उतरते-गिरते बाजार में एक्शन लेने को तैयार है.
जापान के इस ऐलान कुछ समय बाद ही चीन की तरफ से भी ऐलान आया. चीन के केंद्रीय बैंक ने अपनी करेंसी युआन के लिए डेली रेफरेंस रेट के साथ अबतक का अपना सबसे मजबूत गाइडेंस जारी किया, क्योंकि उनकी करेंसी 2007 के बाद से सबसे ज्यादा कमजोर हो गई थी.
अगर करेंसीज के परफॉर्मंस की बात करें तो इस साल एशियाई करेंसीज में येन और युआन का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. जबकि जापान ने अपनी करेंसी को सपोर्ट करने के लिए कई कदम उठाए, इधर, चीन ने पहले से ही सरकारी बैंकों को निर्देश दे दिया कि वो युआन को मजबूत करने के लिए डॉलर बेचें.
दरअसल, बीते कुछ दिनों से अमेरिका के आर्थिक आंकड़े आ रहे हैं, इससे कुछ ट्रेडर्स को ये भरोसा मिल रहा है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में जल्द कोई कटौती नहीं करने वाला, दरें लंबे समय तक ऊंची बनी रह सकती हैं. इस सेंटिमेंट से डॉलर में जोरदार तेजी देखने को मिली, लेकिन एशियाई करेंसीज के लिए खतरा पैदा हो गया कि वे नवंबर के बाद सबसे कमजोर स्तर पर चली जाएंगी.
दरअसल, फेडरल रिजर्व गवर्नर क्रिस्टोफर वॉलर, जिन्हें उनके विचारों और कदमों के लिए काफी सराहा जाता है. ब्लूमबर्ग ने CNBC को दिए इंटरव्यू के हवाले से बताया, वॉलर कहते हैं कि नए आर्थिक आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पॉलिसीमेकर्स को ब्याज दरें बढ़ाने की दिशा में थोड़ा संभलकर कदम उठाने की जरूरत है. ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस बात पर जोर दे कि हमें निकट भविष्य में कुछ भी करने की जरूरत है. दरअसल, वॉलर इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि अगली फेड की बैठक में ब्याज दरों को पॉज रखने में कोई हर्ज नहीं है. वॉलर ने कहा कि हम आराम से बैठ सकते हैं और डेटा का इंतजार कर सकते हैं'
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, डॉलर जो पिछले कई हफ्तों से मजबूत है, उसकी ये ताजा मजबूती का मतलब ये है कि इन एशियाई देशों के पॉलिसीमेकर्स जिन्होंने पिछले साल अपनी अपनी करेंसीज को सपोर्ट देने के लिए अपने रिजर्व को खाली किया था, एक बार फिर वो उसी भंवर में फंसते जा रहे हैं, जहां उन्हें सट्टेबाजों से निपटने के लिए एक बार फिर ऐसा ही करना पड़ेगा.
आज की बात करें तो, डॉलर छह महीने की ऊंचाई के आस-पास ही रहा, जबकि येन 10 महीने के निचले स्तर के करीब था. येन ट्रेडिंग के दौरान 0.19% मजबूत होकर 147.42 प्रति डॉलर तक गया, लेकिन 147.82 तक भी फिसला, जोकि 4 नवंबर के बाद सबसे निचला स्तर है. दरअसल, येन बीते कई हफ्तों से 145 के स्तर के आसपास ही मंडरा रहा है, जिससे ट्रेडर्स को जापान के कदमों पर नजर रखनी पड़ रही है.
दुनिया के 6 देशों की करेंसी के बास्केट मुकाबले डॉलर इंडेक्स 104.77 तक पहुंचा चुका गया, जो कि 6 महीने की ऊंचाई 104.90 से ज्यादा दूर नहीं है. मंगलवार को चीन और यूरोप के आर्थिक आंकड़ों ने ग्लोबल ग्रोथ धीमा होने की कुछ आशंकाओं को हवा दी, जिससे निवेशकों को डॉलर के लिए संघर्ष करना पड़ा.
भारत की करेंसी रुपया भी डॉलर की मजबूती से अछूता नहीं है, कच्चे तेल में तेजी और डॉलर की मजबूती के दबाव के चलते रुपया आज इंट्राडे में 83.09 के स्तर तक फिसल गया. मंगलवार को रुपया 33 पैसे टूटकर 83.04 पर बंद हुआ था.