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पारस पत्थर के धनी थे रतन टाटा; कार्यकाल में ग्रुप की आय 17 गुना बढ़कर $100 बिलियन हुई

Ratan Tata ने 1991 में ग्रुप की कमान संभाली और वे 2012 तक कुल 21 साल तक चेयरमैन रहे.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी03:45 PM IST, 10 Oct 2024NDTV Profit हिंदी
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हिंदुस्तान के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा हम सभी को अलविदा कह चुके हैं. अपने तमाम परोपकारी कार्यों के लिए उन्हें याद किया जा रहा है. इस बीच उनकी बिजनेस कौशल की भी चर्चा हो रही है, जिसके फाउंडेशन पर टाटा ग्रुप देश का सबसे ज्यादा मार्केट कैप वाला ग्रुप बना हुआ है.

रतन टाटा ने 1991 में ग्रुप की कमान संभाली और वे 2012 तक कुल 21 साल तक चेयरमैन रहे.

ग्रुप की आमदनी में करीब 17 गुना का इजाफा

रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा ग्रुप का रेवेन्यू 18,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 5.5 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया. मतलब 6 बिलियन डॉलर से बढ़कर ये 100 बिलियन डॉलर हो गया है.

दूसरी तरफ ग्रुप के मार्केट कैप में भी करीब 10 गुना का इजाफा हुआ. जब रतन टाटा ने कमान संभाली तो टाटा ग्रुप का मार्केट कैप करीब 30,000 करोड़ रुपये था, ये 2012 में बढ़कर 5 लाख करोड़ रुपये हो गया. मतलब 9.5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 91.2 बिलियन डॉलर पहुंच गया.

रतन टाटा के फाउंडेशन पर बीते दशक में ग्रुप ने गढ़े नए कीर्तिमान

इसी फाउंडेशन के चलते, सिर्फ 12 साल बाद, मतलब 2024 में टाटा ग्रुप 30 लाख करोड़ रुपये का मार्केट कैप हासिल करने में कामयाब रही. भारत के अन्य उद्यमी समूहों की तुलना में टाटा ग्रुप मार्केट कैप के मामले में कहीं आगे है.

मार्केट कैप में इस बड़ी ग्रोथ की वजह रतन टाटा के कार्यकाल में TCS का जबरदस्त उभार, टाटा मोटर्स में दोबारा आई मजबूती और ग्रुप का ग्लोबल लेवल पर बढ़ना रहा. इसलिए उनके पद छोड़ने के बाद के दशक में भी जबरदस्त ग्रोथ जारी रही है.

TCS का उभार और आज मार्केट कैप में टॉप

वैसे तो TCS का गठन 1968 में ही हो गया था. लेकिन भारत में उदारवाद के बाद IT बूम में कंपनी ने असली रफ्तार पकड़ी.

2004 में कंपनी IPO लेकर आई और 4,713 करोड़ रुपये जुटाए. आज कंपनी ग्रुप की सबसे ज्यादा मार्केट कैप वाली कंपनी है. TCS पहली कंपनी बनी, जिसने 200 बिलियन डॉलर के मार्केट कैप को पार किया. आज की तारीख में कंपनी का मार्केट कैप 182 बिलियन डॉलर के करीब है.

इसी तरह टाटा मोटर्स को ग्लोबल लेवल पर ले जाना रतन टाटा की ही दूरदर्शी नजर का कमाल था, जो आज ग्रुप की रफ्तार में बड़ा योगदान दे रहा है.

2008 में टाटा मोटर्स ने लैंड रोवर और जेगुआर के अधिग्रहण करने का फैसला किया. 2.3 बिलियन डॉलर का ये अधिग्रहण बड़ी संभावनाओं, लेकिन उतने ही बड़े जोखिम वाला कदम था. इसकी बदौलत कंपनी यूरोप में पैर जमाने में कामयाब रही.

इस कदम की अहमियत ऐसे समझिए कि 2015 तक आते-आते JLR का टाटा मोटर्स के मुनाफे में योगदान 90% तक पहुंच गया. कुलमिलाकर बीते सालों में इस अधिग्रहण ने टाटा ग्रुप के मार्केट कैप में बड़ा योगदान दिया है.

आज टाटा स्टील भी ग्रुप की अहम कंपनी है. टाटा स्टील को 2007 में कोरस के अधिग्रहण के साथ रतन टाटा ने मीलों आगे पहुंचा दिया. दरअसल इसके पहले कंपनी लोकल मार्केट पर फोकस थी, इस अधिग्रहण के साथ टाटा स्टील ग्लोबल प्लेयर बन गई और टॉप-10 ग्लोबल प्लेयर्स में कंपनी शामिल हो गई.

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