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भारत से पहले इन देशों में हो चुकी है नोटबंदी, पढ़िए - कैसा रहा नतीजा...

भारत में इस तरह का कदम पहली बार उठाया गया है, जब प्रचलन में मौजूद कुल नोटों का 86 फीसदी हिस्सा अचानक बंद कर दिया गया हो, लेकिन नोटबंदी दुनिया के कुछ देशों के लिए नई बात नहीं है, और इसे कई बार आज़माया जा चुका है...
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NDTV Profit हिंदी04:59 PM IST, 21 Nov 2016NDTV Profit हिंदी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को रात 8 बजे 500 तथा 1,000 रुपये के नोटों के सिर्फ चार घंटे बाद बंद हो जाने की घोषणा की थी, और उसके बाद से ही पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने और छोटे नोट हासिल करने के लिए बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं. भारत में इस तरह का कदम पहली बार उठाया गया है, जब प्रचलन में मौजूद कुल नोटों का 86 फीसदी हिस्सा अचानक बंद कर दिया गया हो, लेकिन नोटबंदी दुनिया के कुछ देशों के लिए नई बात नहीं है, और इसे कई बार आज़माया जा चुका है...

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घाना, वर्ष 1982...
विश्व के आधुनिक इतिहास में नोटबेदी का कदम सबसे पहले अफ्रीकी देश घाना में उठाया गया था, जब वर्ष 1982 में टैक्स चोरी व भ्रष्टाचार रोकने के उद्देश्य से वहां 50 सेडी के नोटों को बंद कर दिया गया था. इस कदम से घाना के नागरिकों को अपनी ही मुद्रा में विश्वास कम हो गया, और उन्होंने विदेशी मुद्रा और ज़मीन-जायदाद का रुख कर लिया, जिससे न सिर्फ देश के बैंकिग सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचा, बल्कि विदेशी मुद्रा पर काला बाज़ारी बेतहाशा बढ़ गई... ग्रामीणों को मीलों चलकर नोट बदलवाने के लिए बैंक जाना पड़ता था, और डेडलाइन खत्म होने के बाद बहुत ज़्यादा नोट बेकार हो जाने की ख़बरें थीं...

नाइजीरिया, वर्ष 1984...
नाइजीरिया में वर्ष 1984 में मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व वाली सैन्य सरकार ने भ्रष्टाचार से लड़ने के उद्देश्य से बैंक नोटों को अलग रंग में जारी किया था, और पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने के लिए सीमित समय दिया था... नाइजीरिया सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों में से एक यह कदम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ था, और कर्ज़ में डूबी व महंगाई तले दबी अर्थव्यवस्था को कतई राहत नहीं मिल पाई थी, और अगले ही साल बुहारी को तख्तापलट के कारण सत्ता से बेदखल होना पड़ा था...

म्यांमार, वर्ष 1987...
नोटबंदी का भारत से मिलता-जुलता कदम वर्ष 1987 में पड़ोसी देश म्यांमार में भी उठाया गया था, जब वहां सत्तासीन सैन्य सरकार ने काला बाज़ार को काबू करने के उद्देश्य देश में प्रचलित 80 फीसदी मुद्रा को अमान्य घोषित कर दिया... इस कदम के प्रति गुस्सा काफी रहा, और छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए तथा भारी विरोध प्रदर्शन किया... देशभर में प्रदर्शनों का दौर काफी लंबे अरसे तक जारी रहा, और आखिरकार अगले साल सरकार को हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस और सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी...

'90 के दशक की शुरुआत में, ज़ायरे...
बैंक नोटों में सुधार के नाम पर '90 के दशक की शुरुआत में कई कदम उठाने वाले ज़ायरे के तानाशाह मोबुतु सेसे सेको को उस दौरान भारी आर्थिक उठापटक का सामना करना पड़ा... वर्ष 1993 में अप्रचलित मुद्रा को सिस्टम से पूरी तरह वापस निकाल लेने की योजना के चलते महंगाई बेतहाशा बढ़ गई, और अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई... इसके बाद गृहयुद्ध हुआ, और वर्ष 1997 में मोबुतु सेसे सेको को सत्ता से बेदखल कर दिया गया...

वर्ष 1991, सोवियत संघ (यूएसएसआर - यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स)...
मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व वाले सोवियत संघ ने अपने 'अंतिम साल' की शुरुआत में 'काली अर्थव्यवस्था' पर नियंत्रण के लिए 50 और 100 रूबल को वापस ले लिया था, लेकिन यह कदम न सिर्फ महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रहा, बल्कि सरकार के प्रति लोगों को विश्वास भी काफी घट गया... उसी साल अगस्त में उनके तख्तापलट की कोशिश हुई, जिससे उनका वर्चस्व ढहता दिखाई दिया, और आखिरकार अगले साल सोवियत संघ के विघटन का कारण बना... इस कदम के नतीजे से सबक लेते हुए वर्ष 1998 में रूस ने विमुद्रीकरण के स्थान पर बड़े नोटों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनमें से बाद के तीन शून्य हटा देने की घोषणा की, यानी नोटों को पूरी तरह बंद करने के स्थान पर उनकी कीमत को एक हज़ार गुना कम कर दिया... सरकार का यह कदम तुलनात्मक रूप से काफी आराम से निपट गया...

वर्ष 2010, उत्तरी कोरिया...
उत्तर कोरिया में वर्ष 2010 में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-इल ने अर्थव्यवस्था पर काबू पाने और काला बाज़ारी पर नकेल डालने के लिए पुरानी करेंसी की कीमत में से दो शून्य हटा दिए, जिससे 100 का नोट 1 का रह गया... उन सालों में देश की कृषि भी भारी संकट से गुज़र रही थी, सो, परिणामस्वरूप देश को भारी खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा... चावल की बढ़ती कीमतों जनता में गुस्सा इतना बढ़ गया कि आश्चर्यजनक रूप से किम को क्षमायाचना करनी पड़ी तथा उन दिनों मिली ख़बरों के मुताबिक इसी वजह से तत्कालीन वित्त प्रमुख को फांसी दे दी गई थी...

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