RBI credit policy: आरबीआई की तिमाही मौद्रिक नीति (RBI Monetary Policy) की घोषणा के लिए तीन दिन की बैठक मुंबई में जारी है. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास इस बैठक में शामिल हो रहे हैं. पिछले कुछ तिमाही में लगातार आरबीआई की ओर से महंगाई को रोकने के लिए रेपो रेट बढ़ाई जा रही है. इस बार भी कुछ जानकारों को लगता है कि एक बार फिर ऐसा ही हो सकता है. वहीं, बैंकों के प्रमुखों के अलावा कई और जानकारों का मानना है कि महंगाई अब काबू में है इसलिए संभव है कि अब वित्तीय बाजार को आरबीआई कुछ ढील दे और इस बाजार के कारोबार में तेजी आए. खैर आरबीआई क्या निर्णय लेगा यह वक्त बताएगा लेकिन हम आपको बताते हैं कि रेपो रेट (Repo Rate), सीआरआर (CRR Cash Reserve Ratio) और रिजर्व रेपो (Reserve Repo Rate) क्या होता है और इसके बढ़ने और घटने का क्या मतलब होता है. जब भी केंद्रीय बैंक यानि आरबीआई इनमें से किसी में भी कोई बदलाव करता है, तो इसका सीधा असर आम नागरिक पर पड़ता है.
रेपो रेट का अर्थ होता है कि रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर. बैंक इस चार्ज से अपने ग्राहकों को लोन प्रदान करता है. रेपो रेट कम होने का अर्थ है की बैंक लोगों को कम ब्याज दर पर लोन देगा और अगर यह बढ़ती है तो बैंक अपने लोन महंगा करता है और लोगों की ईएमआई भी बढ़ जाती है. या कहें तो लोन महंगे हो जाते हैं.
रेपो रेट के विपरीत होता है. नाम ही बता रहा है. यह वह दर है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा राशि पर ब्याज मिलता है. रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी को नियंत्रित करने में काम आती है. बाजार में जब भी ज्यादा नकदी होती है (महंगाई ज्यादा होने के समय ऐसा होता है) तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है. इसका असर यह होता है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम आरबीआई के पास जमा करा देते हैं.
बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश या कहें नकद का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (CRR सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है. इसके बढ़ने का मतलब है कि बैंकों को आरबीआई के पास ज्यादा कैश रखना होगा और कम करने का मतलब यह है कि आरबीआई के पास कम कैश जमा रखना होगा. इस सूरत हाल में यदि बैंकों के पास कैश ज्यादा होगा तो बैंक उसका इस्तेमाल बाजार में कर पाएंगे और यदि कैश कम होगा तो उसके पास बाजार के लिए कम कैश होगा.
एसएलआर क्या है What is SLR
यह वह दर है जिसके अनुसार बैंकों पर यह बाध्यकारी है कि वह इस दर के अनुसार कैश हमेशा अपने पास बनाए रखें. इसे एसएलआर SLR (Statutory Liquidity Ratio) कहते हैं. इसका इस्तेमाल किसी जरूरत पर लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है.