महंगाई और रुपये के अवमूल्यन के दोहरे दबाव के कारण भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नए गवर्नर रघुराम राजन अपने पूर्ववर्ती डी. सुब्बाराव की तरह उच्च दर की नीति पर चलने के लिए मजबूर हो सकते हैं। यह बात विश्लेषकों ने कही।
रघुराम राजन शुक्रवार को अपनी पहली मौद्रिक नीति बैठक करेंगे। उन्होंने करीब दो सप्ताह पहले ही आरबीआई का कार्यभार संभाला है।
अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि अगस्त महीने में महंगाई दर में तेजी के कारण उनके लिए फैसला लेना कठिन होगा।
एंजल ब्रोकिंग के अर्थशास्त्री भूपाली गुरसाले ने कहा, "इस स्थिति में आरबीआई से दर पर यथास्थिति बरकरार रखने की उम्मीद है।" उन्होंने कहा कि आरबीआई महंगाई का दबाव और रुपये की अस्थिरता कम करने पर ध्यान दे सकता है।
थोक कीमतों पर आधारित महंगाई दर अगस्त महीने में 6.1 फीसदी दर्ज की गई, जो छह महीने में सर्वाधिक है। जुलाई में यह दर 5.79 फीसदी थी और एक साल पहले अगस्त में यह 8.01 फीसदी थी। सबसे अधिक चिंता खाद्य महंगाई दर को लेकर है, जो 18.18 फीसदी रही, जो करीब तीन साल का ऊपरी स्तर है।
उधर, देश की मुद्रा रुपया 28 अगस्त को डॉलर के मुकाबले 68.85 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया था। इसमें हालांकि निचले स्तर से आठ फीसदी मजबूती आई है फिर भी घरेलू और बाहरी मुश्किलों को देखते हुए विश्लेषकों ने रुपये में गिरावट के जोखिम से इनकार नहीं किया है।
दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट इंडिया के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा कि रुपये के अवमूल्यन और महंगाई के दबाव के कारण आरबीआई नीतिगत दर पर यथास्थिति बरकरार रख सकता है। उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में इसके कारण दर में कटौती की उम्मीद नहीं है।
रघुराम राजन के पूर्ववर्ती सुब्बाराव की 2008-09 के आर्थिक संकट के बाद आर्थिक सुस्ती के बावजूद सख्त मौद्रिक नीति पर चलने के कारण आलोचना होती रही थी।