Supreme Court Order on Old Electricity Bill: आपने आज कोई मकान या प्रॉपर्टी खरीदी. कल को आप जब उसका इस्तेमाल करेंगे तो बिजली कनेक्शन तो जरूरी होगा ही! आप इसके लिए आवेदन करेंगे, लेकिन हो सकता है कि आपको नया कनेक्शन न मिले. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि उस प्रॉपर्टी पर पहले से जो बिजली कनेक्शन था, उसका पुराना बिल बकाया हो.
अब आप सोचेंगे और तर्क देंगे कि जिसका बकाया है, उससे वसूला जाए. यानी उस प्रॉपर्टी के पुराने मालिक से. लेकिन आपका ये तर्क काम नहीं करेगा. कानूनन आपको ही पुराना बिजली बिल भरना होगा. भले ही पुराने बकायेदार पर बिजली बोर्ड अलग से मुकदमा कर सकता है.
वर्षों से लंबित ऐसे 1-2 नहीं, बल्कि 19 मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे थे. सारे केस 'क्लब' करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट का ये फैसला देशभर में लागू होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है, 'अगर किसी प्रॉपर्टी पर बिजली का बिल बकाया है तो उसे खरीदने वाले व्यक्ति से इसकी वसूली की जा सकती है. इसमें कुछ भी अवैध नहीं है.' यानी आपने जिससे प्रॉपर्टी खरीदी है, अगर उसने प्रॉपर्टी पर बकाया बिल नहीं चुकाया हो, तो वो बोझ आपके ऊपर आएगा.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कुमार आंजनेय शानू ने कहा, 'बिजली का बकाया, जितना पुराना होगा, बिल उतना ही ज्यादा होगा. चूंकि बकाये बिल पर ब्याज भी जुड़ता चला जाता है तो ये अमाउंट कई-कई लाख में भी हो सकता है. जैसा कि इन मामलों में भी हुआ और याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे.'
केरल के रहनेवाले KC निनन नाम के व्यक्ति ने अक्टूबर 1989 में नीलामी में एक प्रॉपर्टी खरीदी. 1980 में इस प्रॉपर्टी का बिजली कनेक्शन काटा जा चुका था और बिल न भरने के चलते 1985 में सप्लाई लाइन खत्म कर दिया गया था. प्रॉपर्टी खरीदने के 2 महीने बाद जनवरी 1990 में बिजली सप्लाई की शर्तों का क्लॉज-15 लागू हुआ.
15(e) के अनुसार, किसी प्रॉपर्टी पर बिजली का नया कनेक्शन या री-कनेक्शन तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक पुराना बिल क्लियर न हो. जून 1990 में केरल राज्य बिजली बोर्ड ने KC निनन को बकाये की सूचना दी और नया कनेक्शन देने से इनकार कर दिया. इसके बाद KC ने एक क्लॉज-15 को चुनौती देते हुए केरल हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की.
केस लंबा चला, लेकिन फैसला केरल बिजली बोर्ड के पक्ष में गया. यहां राहत नहीं मिलने के बाद आवेदक सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचा. 2004 में ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और ऐसा ये कोई पहला मामला नहीं था. ऐसे 18 और मामलों में याचिका डाली गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सारे 19 केस को कोलैब कर सुनवाई शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से बिजली कानून की धारा 43 का हवाला देते हुए कहा गया कि बिजली कनेक्शन पाना उनका अधिकार है. लेकिन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा, 'ये दायित्व शर्तों के साथ पूरा किया जाता है और बिल चुकाना प्राथमिक शर्त है. बिजली बोर्ड द्वारा बकाये बिल की मांग जायज है.'
अब सवाल ये था कि क्या पुराने मालिक की गलती का खामियाजा नए मालिक को भुगतना होगा? बेंच ने कहा, 'पिछले मालिक का बकाया, नए मालिक से वसूलने की शर्तें रखना बिजली एक्ट के दायरे में आता है. जहां तक सेक्शन 56(2) में तय 2 साल की सीमा की बात है, तो पुराने कंज्यूमर के खिलाफ बिजली बोर्ड मुकदमा दायर कर सकता है. लेकिन नए मालिक से पुराने बिल भरने के लिए प्रेशर बनाने को कनेक्शन काटना अलग बात है. बिजली बोर्ड दोनों ही कदम उठा सकता है.'
अधिवक्ता कुमार आंजनेय शानू ने बताया, 'कोई प्रॉपर्टी खरीदने पर अधिकार और दायित्व, दोनों नए मालिक को ट्रांसफर हो जाते हैं.' उन्होंने खासकर नीलामी की प्रॉपर्टी खरीद को लेकर बताया कि ऐसे मामलों में 'As Is Where Is' लागू होता है. यानी 'जहां है, जैसा है' की शर्त पर नीलामी होती है.
उन्होंने कहा, 'जैसे आपने कोई घर खरीदा, तो उसमें रखे सारे सामान पर आपका अधिकार होगा. फिर चाहे वहां जमीन में गड़ा कोई 'सोना' ही क्यों न मिल जाए! इसी तरह उस प्रॉपर्टी पर बकाया बिजली-पानी या गैस कनेक्शन के बिल का दायित्व भी नए मालिक पर ट्रांसफर हो जाता है.'
दूसरा पेच, बिजली एक्ट में कंज्यूमर की परिभाषा को लेकर है. कुमार ने कहा, 'बिजली बोर्ड के लिए कंज्यूमर की परिभाषा प्रॉपर्टी पर तय होती है. यानी एक प्रॉपर्टी पर अलग-अलग व्यक्ति एक ही कंज्यूमर माना जाएगा. भले ही अलग-अलग शहरों में या अलग-अलग प्रॉपर्टी पर एक ही व्यक्ति अलग-अलग कंज्यूमर हो सकता है.'
ऐसे में बिजली एक्ट की धारा 43 के तहत बिजली आपूर्ति का दायित्व उस प्रॉपर्टी के आधार पर तय होगा, वो भी शर्तों के साथ. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बिजली बोर्ड ये दायित्व 'कंज्यूमर द्वारा बिल चुकाने की शर्त पर' पूरा करने के लिए ही जिम्मेदार है.
सुप्रीम कोर्ट में आए ये मामले वर्षों से लंबित थे और उधर बिजली कंपनियों का बिल भी ब्याज जुड़ने से बढ़ता जा रहा था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने 'संपूर्ण न्याय' के लिए आर्टिकल-142 का इस्तेमाल किया और याचिकाकर्ताओं को राहत दी.
अयोध्या के राम मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसी आर्टिकल- 142 का प्रयोग करते हुए मुस्लिम पक्षकारों को राहत दी थी और उनकी याचिका में मांग न रहते हुए भी सरकार को मस्जिद के लिए जमीन आवंटित करने का आदेश दिया था.
ताजा मामलों में शुक्रवार को कोर्ट ने कहा, 'याचिकाकर्ता ने जिस तारीख को नए कनेक्शन के लिए बिजली बोर्ड में आवेदन किया था, उससे पहले तक का ही बकाया उन्हें भरना होगा.' यानी वर्षों से चले आ रहे बिल के बोझ से सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को राहत दे दी.
कुमार सलाह देते हैं कि कोई भी मकान, दुकान या पुरानी प्रॉपर्टी खरीदें तो बाकी कागजातों की जांच के साथ प्रॉपर्टी पर बकाये दायित्वों की भी पड़ताल कर लें. खासकर बिजली, पानी, गैस कनेक्शन के बकाये की जांच जरूर कर लें. सामान्यत: लोग ये तो जांच करते ही हैं कि प्रॉपर्टी पर कोई पुराना लोन तो नहीं है! बकाये बिलों की जांच ऑनलाइन की जा सकती है. बकाये बिलों का पूरा हिसाब-किताब देखे बिना कोई डील फाइनल न करें.