केंद्र सरकार के एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों व पेंशनधारकों के वेतन-भत्तों व पेंशन में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर बढ़ोतरी करने के फैसले का घरेलू अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर पड़ा, ऐसा दावा किया जा रहा है. पिछले कुछ समय में अर्थव्यवस्था में आई तेजी के कारणों में एक कारण सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के हिसाब से लागू किया गया वेतनमान भी है. इससे केंद्रीय कर्मचारियों को काफी लाभ हुआ.
अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि देश में संगठित क्षेत्र के कर्मियों के वेतनमान में वृद्धि से मांग बढ़ी और इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल रहा है. करीब 50 लाख केंद्रीय कर्मी और करीब इतने ही पेंशनधारियों के हाथ में ज्यादा कैश आने से मांग बढ़ी और लोगों के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी इसका लाभ हुआ है.
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जानकारों का कहना है कि इससे उपभोग मांग बढ़ी है. इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने की आशंका थी जो थोड़ा बहुत जमीनी स्तर पर देखने को मिला भी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में 28 जून 2016 को वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी. आयोग ने वेतन-भत्तों में कुल मिलाकर 23.5 प्रतिशत की वृद्धि की सिफारिश की थी.
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वेतन आयोग की रिपोर्ट का असर राज्यों में सरकारों के अधीन काम करने वालों सभी कर्मचारियों पर भी पड़ा. हर राज्य पर इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव बना और कई राज्य अभी तक अपने अपने कर्मचारियों का वेतन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से बढ़ाते जा रहे हैं. कुछ राज्य अभी इस प्रक्रिया में हैं. जानकारों का कहना है कि करीब तीन करोड़ लोग इस आयोग की रिपोर्ट से सीधे तौर पर प्रभावित हुए.
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आर्थिक मामलों के जानकारों का दावा है और जमीन पर देखने को भी मिल रहा है कि रिपोर्ट में जिस तरह आवासीय भत्ता को बढ़ाने की बात कही गई थी उससे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में किराए में वृद्धि हो गई है.
पिछले वेतन आयोग की रिपोर्ट के बाद ऐसा होता रहा है.