भारतीय टेलीकॉम रेगुलेटर (TRAI) ने रिलायंस जियो और भारती एयरटेल () से उनके 5G-आधारित होम वाईफाई सेवाओं को वर्गीकृत करने के तरीके पर स्पष्टीकरण मांगा है. ये जरूरी सवाल उठाते हुए कि क्या उनकी एयरफाइबर ऑफर्स को वायरलेस या वायर्ड ब्रॉडबैंड के रूप में गिना जाना चाहिए.
टेलीकॉम रेगुलेटर ने 27 मई को दोनों कंपनियों को निर्देश जारी किए थे, जिसमें चिंता जताई गई थी कि 5G फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस (FWA) के जरिए हाई-स्पीड इंटरनेट का उपयोग करने वाले यूजर्स, जो लाखों में हैं, उन्हें “वायरलाइन” या “फिक्स्ड-लाइन” सब्सक्राइबर्स के रूप में रिपोर्ट किया जा सकता है, जिससे आधिकारिक ब्रॉडबैंड पहुंच डेटा में गड़बड़ी हो सकती है.
टेलीकॉम कंपनियां वैश्विक स्तर पर स्वीकृत फिक्स्ड ब्रॉडबैंड की परिभाषाओं का पालन कर रही हैं, जिनमें इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन और TRAI की परिभाषाएं शामिल हैं, जो स्पष्ट रूप से फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस को वायरलाइन ब्रॉडबैंड का हिस्सा मानती हैं, ये बात एक इंडस्ट्री के अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर NDTV प्रॉफिट को बताई.
इन्होंने बताया चूंकि 5G FWA एक फिक्स्ड लोकेशन पर इंस्टॉल किया जाता है और लगातार हाई-स्पीड इंटरनेट देता है, इसलिए ये एक्सेस माध्यम की परवाह किए बिना फिक्स्ड ब्रॉडबैंड सेवा के रूप में योग्य है.
जियो और एयरटेल की 'एयरफाइबर' सेवाएं रेगुलेटरी जांच के केंद्र में हैं, दोनों को घरों के लिए प्लग-एंड-प्ले ब्रॉडबैंड के रूप में मार्केट किया जाता है, जो 5G का इस्तेमाल करके बिना फिजिकल केबल बिछाए इंटरनेट देता है. हालांकि ये सेवाएं टेलीकॉम टावरों से ग्राहकों के घरों तक वायरलेस रूप से संचालित होती हैं, वे अक्सर 'स्टेबल' होती हैं और पारंपरिक ब्रॉडबैंड सेटअप की तरह इस्तेमाल की जाती हैं.
जानकार लोगों के मुताबिक, TRAI की चिंता पिछले साल जियो के वायरलाइन सब्सक्राइबर नंबरों में अचानक बढ़ोतरी और रेगुलेटर के दखल के बाद इसमें अचानक कमी से उपजी है.
रेगुलेटर ने अब अपनी स्थिति को औपचारिक रूप देकर जियो और एयरटेल दोनों को पत्र लिखा है, जिसमें यह पूछा गया है कि वे अपने 5G FWA यूजर्स को कैसे वर्गीकृत करते हैं, और क्या यह रिपोर्टिंग लाइसेंसिंग नियमों और 'वायरलाइन सेवाओं' की तकनीकी परिभाषाओं के अनुरूप है.
वर्गीकरण महत्वपूर्ण है क्योंकि ये प्रभावित करता है कि भारत ब्रॉडबैंड ग्रोथ को कैसे ट्रैक करता है और टेलीकॉम कंपनियों से उनकी सेवाओं के लिए शुल्क कैसे लिया जाता है. वायरलेस उपयोगकर्ताओं को वायर्ड के रूप में रिपोर्ट करने से भारत की फाइबर कनेक्टिविटी प्रगति की गलत तस्वीर हो सकती है, जो राष्ट्रीय डिजिटल लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है. इसका रेवेन्यू पर भी असर पड़ता है. क्योंकि वायरलेस और वायरलाइन कैटेगरीज के बीच लेवी और लाइसेंस फीस अलग होते हैं.
जानकार लोगों के अनुसार, जियो ने TRAI को जवाब दिया है, जिसमें कंपनी ने तर्क दिया है कि एयरफाइबर को वायरलाइन ब्रॉडबैंड के रूप में गिना जाना चाहिए क्योंकि डिवाइस यूजर्स के परिसर में स्थिर है और पारंपरिक ब्रॉडबैंड कनेक्शन की तरह काम करता है. कंपनी वैश्विक स्तर पर ITU की ओर से तय मानकों का पालन कर रही है.हालांकि, TRAI का मानना है कि ट्रांसपोर्ट लेयर—चाहे सिग्नल फाइबर, केबल, या वायरलेस स्पेक्ट्रम के माध्यम से डिलीवर हो, वर्गीकरण के लिए जरूरी है.
रेगुलेटर का अंतिम फैसला न केवल जियो और एयरटेल के लिए, बल्कि भारत में FWA सेवाओं के भविष्य के लिए व्यापक प्रभाव डाल सकता है. यह सब्सक्राइबर डेटा की रिपोर्टिंग, लेवी की गणना, और भारत के फिक्स्ड ब्रॉडबैंड लक्ष्यों की प्रगति के मापन में बदलाव ला सकता है.
फिलहाल, जियो और एयरटेल की एयरफाइबर सेवाओं के मौजूदा यूजर्स को कनेक्शन की गति या मूल्य निर्धारण में किसी बदलाव की संभावना नहीं है, लेकिन इन कनेक्शनों को कैसे गिना जाता है, यह आने वाले महीनों में टेलीकॉम रिपोर्टिंग और पॉलिसी के नजरिये को बदल सकता है।