देश में महिलाओं के मालिकाना हक वाले माइक्रो बिजनेसेज की एक बड़ी संख्या ऐसी है, जिनके पास फाइनेंशियल इमरजेंसी के लिए सेविंग्स की कमी है. JP मॉर्गन चेज समर्थित एक रिपोर्ट में ऐसी स्थिति को लेकर चिंता जताई गई है.
कहा गया है कि ऐसे में उद्यम, आर्थिक झटकों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं. यानी अचानक से कोई वित्तीय संकट आ जाए तो उनका सर्वाइव करना मुश्किल हो सकता है.
'भारत में महिला स्वामित्व वाले माइक्रो बिजनेसेज (wMB) की वित्तीय सेहत की पड़ताल' नाम से जारी इस रिपोर्ट को माइक्रोसेव कंसल्टिंग (MSC) ने सा-धन (Sa-Dhan) के सहयोग से तैयार किया है.
देश के 6 राज्यों में 150 महिला-स्वामित्व वाले सूक्ष्म व्यवसायों (wMBs) के साथ इंटरव्यू से उनकी फाइनेंशियल डिसीजंस लेने के प्रॉसेस, चैलेंजेस और मोटिवेशंस के बारे में जानकारी मिली.
रिपोर्ट के मुताबिक, 45% महिला उद्यमियों (Women Entrepreneurs) के पास फाइनेंशियल इमरजेंसी से निपटने के लिए फंड (Savings) की कमी है.
कई महिला उद्यमियों को पर्सनल और बिजनेस फाइनेंस के बीच अंतर करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
ऐसे में कैश फ्लो मैनेजमेंट जटिल हो जाता है और सटीक फाइनेंशियल रिकॉर्ड रखने में दिक्कतें पैदा होती हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि 60% महिला उद्यमियों ने अपने बिजनेस ऑपरेशंस के लिए कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं बनाए हैं.
इनमें से 55% का मानना है कि स्मॉल प्रॉफिट मार्जिन के चलते अलग-अलग रिकॉर्ड रखना मुश्किल भी है और उन्हें ऐसा करना जरूरी भी नहीं लगता.
100 में 55 व्यवसायों में किसी भी कर्मी को काम पर रखा नहीं जाता और वे सोलो वेंचर्स के रूप में फंक्शन करते हैं.
सोलो वेंचर्स की ऐसी प्रवृत्ति जॉब क्रिएशन यानी रोजगार सृजन और इकोनॉमी में उनके योगदान को सीमित करती है.
दिल्ली-NCR, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु, इन 6 राज्यों के wMBs को लेकर ये स्टडी की गई. 1,460 कंप्यूटर की मदद से किए गए पर्सनल इंटरव्यू, फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट्स और सहायता संगठनों के साथ किए गए इंटरव्यूज और व्यापक डेस्क रिसर्च के जरिये आंकड़े और तथ्य जुटाए गए.
बता दें कि महिला उद्यमियों के मालिकाना हक वाली जिन व्यवसायों का एनुअल रेवेन्यू 1.50 लाख रुपये से 9 लाख रुपये के बीच है और जिनमें अधिकतम तीन लोग कार्यरत हैं, उन्हें इस रिपोर्ट में शामिल किया गया.
महिलाओं के मालिकाना हक वाले बिजनेसेज को लेकर एक दूसरी सुखद तस्वीर भी है. अभी हाल ही में DBS बैंक ने रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) के सहयोग से अपनी 'वुमन एंड फाइनेंस' सीरीज की तीसरी रिपोर्ट में ये बताया है कि अपने उद्यमों की फाइनेंसिंग के लिए 39% महिलाएं व्यक्तिगत बचत पर निर्भर हैं.
रिपोर्ट कहती है कि देश के शहरों में स्वरोजगार करने वाली करीब 65% महिलाओं ने बिजनेस लोन ही नहीं लिया है, जबकि 39% महिलाओं ने पर्सनल सेविंग्स से खुद का बिजनेस शुरू किया है और बखूबी चला भी रही हैं.
स्वरोजगार करने वाली केवल 21% ने बिजनेस के लिए बैंक से लोन लिया है, जबकि 26% महिलाओं ने फैमिली और दोस्तों से कर्ज लेकर बिजनेस शुरू किया और उसे चला रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 3% महिलाओं ने नन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी से लोन लिया, जबकि महज 1% महिलाओं ने फिनटेक कंपनियों से लोन लिया.