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56% बीमारियों की वजह खराब खान-पान, 'गुड शुगर' जैसा कुछ नहीं; ICMR ने जारी की गाइडलाइंस

अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से टाइप-2 डायबिटीज से 80% तक सुरक्षा मिल सकती है. गर्भवती महिलाओं को लेकर भी ICMR ने जारी की अहम गाइडलाइंस
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी02:23 PM IST, 09 May 2024NDTV Profit हिंदी
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ICMR की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 56.4% बीमारियों की वजह खराब खानपान है. इन्हें देखते हुए ICMR ने खाने और पोषण से जुड़ी 17 डाइटरी गाइडलाइंस जारी की हैं. इनका उद्देश्य जरूरी पोषण को सुनिश्चित करना और मोटापे-मधुमेह जैसी बीमारियों से लोगों को दूर रखना है.

दरअसल ICMR के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन (NIN) ने ये रिपोर्ट बनाई है. रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी डाइट रखने और शारीरिक गतिविधियां बनाए रखने से दिल की बीमारियों और हाइपरटेंशन जैसी स्थितियों से बहुत हद तक बचा जा सकता है, साथ ही टाइप-2 डायबिटीज से भी 80% तक सुरक्षा मिलती है.

प्री-मैच्योर मौतों को रोकने के लिए जरूरी अच्छी लाइफस्टाइल

रिपोर्ट कहती है कि 'अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से समय से पहले होने वाली मौतों की बड़ी संख्या को रोका जा सकता है. दरअसल हाईली प्रोसेस्ड फूड्स, जिनमें बड़ी मात्रा में शुगर और फैट होता है, जब उन्हें लगातार व्यक्ति खाता है, ऊपर से शारीरिक गतिविधियां भी बहुत सीमित होती हैं, तो शरीर में माइक्रोन्यूट्रीएंट डेफिशिएंसीज बढ़ जाती है, साथ में मोटापा भी घेर लेता है.'

NIN ने दी ये सलाह

NIN की Multi Disciplinary Committee ने DIGs (Dietary Guidelines For Indians) गाइडलाइन बनाई हैं, जिसमें एक्सपर्ट्स का नेतृत्व ICMR-NIN की डायरेक्टर डॉक्टर हेमलता आर के हाथ में था. इन गाइडलाइनों के कई साइंटिफिक रिव्यू भी किए गए हैं.

गाइडलाइंस की अहम बातें:

  • NIN ने नमक कम खाने, फैट और ऑयल सीमित मात्रा में लेने, पर्याप्त मात्रा में एक्सरसाइज करने, शुगर और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड को अधिकतम मात्रा में कम करने की सलाह दी है.

  • NIN का सुझाव है कि मोटापे से बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की जरूरत है. साथ ही फूड लेबल्स में लिखी जानकारी को ठीक ढंग से पढ़कर इनफॉर्म्ड च्वाइस अपनाने की सलाह दी है.

  • इंक्लूसिव डाइट: प्लांट बेस्ड डाइट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. लेकिन तार्किक ढंग से मांस आधारित प्रोटीन, जैसे रेड मीट को भी खाने में शामिल करना चाहिए. हर दिन 70 ग्राम और हफ्ते में 500 ग्राम तक मांस आधारित प्रोटीन लेने की सलाह.

  • बच्चों और युवाओं को डेली डाइट में दूध शामिल करने की सलाह.

  • सामान्य युवाओं और गर्भवती महिलाओं जैसे विशेष ग्रुप में गैर जरूरी आयुर्वेदिक खुराक या पारंपरिक आयुर्वेदिक नुस्खों का उपयोग करने की जरूरत नहीं है.

  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लेक्टेयर और फेनुग्रीक जैसे विशेष आयुर्वेदिक सप्लीमेंट्स ना देना.

  • शिशुओं को शहद के इस्तेमाल की मनाही. रोजाना के भोजन में सीड ऑयल लिए जा सकते हैं.

  • घी, पॉम ऑयल और कोकोनट ऑयल जैसे सैचुरेटेड फैट्स की मात्रा को घटाना चाहिए. पिंक या ब्लैक सॉल्ट कोई बेहतर नमक की श्रेणी में नहीं हैं.

  • हेल्दी शुगर जैसी कोई चीज नहीं है, इसमें शुगर, गुड़, हनी सभी शुगर के ही टाइप हैं. कोई भी एक दूसरे से बेहतर नहीं है.

इस मौके डॉक्टर हेमलता ने कहा, 'DGIs के जरिए हम जोर देते हैं कि कुपोषण को दूर करने का दीर्घकालीन और सबसे तार्किक तरीका पोषण युक्त खाने को किफायती दाम पर, इसकी सभी तक पहुंच सुनिश्चित करवाना है. इस दौरान विविधता भरे खाने को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. गाइडलाइंस में वैज्ञानिक जानकारी है, जिससे नेशनल न्यूट्रीशन पॉलिसी में उल्लेखित लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी.'

नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों की चर्चा करते हुए NIN ने बताया कि 5 से 9 साल के बच्चों में से 34% हाई ट्राईग्लिसराइड्स की समस्या से जूझ रहे हैं.

ICMR के डायरेक्टर डॉक्टर राजीव बहल कहते हैं, 'बीते कुछ दशकों में भारतीय लोगों की खान-पान की आदतों में बहुत जबरदस्त बदलाव आया है. इससे नॉन-कम्युनिकेबल बीमारियों की मात्रा बढ़ेगी, जबकि कुपोषण की कुछ मौजूदा समस्याएं जस के तस बरकरार हैं.'

बैलेंस डाइट में क्या जरूरी

  • एक बैलेंस और इंक्लूसिव डाइट में प्लांट बेस्ड डाइट के साथ-साथ मीट से मिलने वाला प्रोटीन भी जरूरी होता है.

  • बैलेंस डाइट में 45% कैलोरी अनाज और मोटे-अनाज से होनी चाहिए. जबकि 15% कैलोरी दालों, बीन्स (फलियों) और मांस से आनी चाहिए. बाकी कैलोरीज सब्जियों, फलों और दूध से आनी चाहिए.

NIN के मुताबिक दालों और मांस की ऊंची कीमत के चलते भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा अनाजों पर निर्भर करता है, जिसके चलते ये मैक्रोन्यूट्रीएंट्स और माइक्रोन्यूट्रीएंट्स का खराब इस्तेमाल करता है.

जरूरी न्यूट्रीएंट्स की कम मात्रा से मेटाबॉलिज्म प्रभावित हो सकता है और इंसुलिन प्रतिरोध के साथ-साथ इससे जुड़ी दिक्कतों के बढ़ने से कम उम्र में ही कई बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है.

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