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'जानबूझकर हेल्थ इंश्योरेंस के क्लेम सेटलमेंट में की जाती है देर, ताकि चुकाना पड़े कम पैसा', सर्वे में 80% लोगों ने किया दावा

IRDAI के मुताबिक FY24 में कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये के हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम किए गए. इनमें से 71.3% (83,493 करोड़ रुपये) क्लेम का सेटलमेंट कर दिया गया.
NDTV Profit हिंदीसुदीप्त शर्मा
NDTV Profit हिंदी08:24 PM IST, 02 Jan 2025NDTV Profit हिंदी
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स्वास्थ्य बीमा कंपनियों से अकसर ग्राहक क्लेम सेटल करने में देरी की शिकायत करते रहे हैं. अब लोकल सर्कल्स के हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़े एक सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. सर्वे के मुताबिक बीते 3 साल में इंश्योरेंस क्लेम करने वाले हर 10 में 8 (80%) लोगों का मानना है कि इंश्योरेंस क्लेम सेटल करने में जानबूझकर देरी की जाती है. ताकि पॉलिसीहोल्डर्स इंतजार कर थक जाएं और कम क्लेम में ही सेटलमेंट के लिए मान जाएं.

सर्वे करे मुताबिक 10 में से 6 हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी होल्डर्स को उनके क्लेम सेटलमेंट में देरी के चलते डिस्चार्ज के लिए 6 से 48 घंटे का इंतजार करना पड़ता है. फिर 10 में से 8 पॉलिसी होल्डर्स ये भी चाहते हैं कि IRDAI पारदर्शी वेब बेस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम को क्लेम प्रोसेसिंग के लिए अनिवार्य कर दे. ताकि लोगों को ईमेल और हॉस्पिटल से कॉल पर निर्भर ना रहना पड़े.

IRDAI के मुताबिक FY24 में कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये के हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम किए गए. इनमें से 71.3% (83,493 करोड़ रुपये) क्लेम का सेटलमेंट कर दिया गया. संख्या के हिसाब से देखें तो करीब 3 करोड़ से ज्यादा के सेटलमेंट क्लेम किए गए थे, इनमें से 2.7 करोड़ (82%) क्लेम का सेटलमेंट किया गया. इसके अलावा FY24 में 6,290 करोड़ रुपये के 17.9 लाख पुराने सालों के क्लेम बकाया थे.

बिना वैध कारण बताए 50% लोगों के क्लेम हुए रद्द या हुई कटौती

सर्वे में बीते 3 साल में क्लेम सेटलमेंट कराने वाले लोगों से उनके अनुभव पूछे गए. हर 10 में से 5 (करीब 50%) लोगों का कहना है कि इंश्योरर्स ने बिना वैध कारण दिए उनके क्लेम को खारिज कर दिया या फिर आंशिक भुगतान किया.

अगर इसका और ब्रेकअप करें तो पाएंगे कि 20% लोगों का कहना है कि बिना वैध वजह बताए उनके क्लेम को खारिज कर दिया गया. जबकि 33% का कहना है कि बिना वैध कारण बताए उन्हें आंशिक भुगतान किया गया.

16% का कहना है कि उन्हें आंशिक भुगतान किया गया, लेकिन इसके लिए वैध वजह बताई गई. जबकि 25% क्लेम का पूरा सेटलमेंट किया गया. वहीं 6% लोगों के क्लेम भी पूरी तरह सेटल किए गए लेकिन इन्हें इंश्योरेंस कंपनी के चक्कर काटने पड़े.

डिस्चार्ज होने में कितना वक्त लगा?

लोगों से अगला सवाल पूछा गया कि जब उनके पास इंश्योरेंस था, तो उन्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने में कितना वक्त लगा. दरअसल डिस्चार्ज होने के वक्त इंश्योरर्स को हॉस्पिटल के साथ क्लेम सेटल करना होता है.

21% लोगों ने कहा कि उन्हें डिस्चार्ज होने में 1 से 2 दिन लग गए. मतलब स्वस्थ्य होने के बाद इंश्योरर्स के क्लेम सेटलमेंट में लगने वाले वक्त के चलते उन्हें 24 से 48 घंटे अतिरिक्त हॉस्पिटल में रहना पड़ा.

वहीं 12% लोगों ने कहा कि उन्हें डिस्चार्ज होने में 12 से 24 घंटे लग गए. 14% ने बताया कि उन्हें डिस्चार्ज होने में 9 से 12 घंटे लग गए. 12% लोग ऐसे भी रहे जिन्हें डिस्चार्ज होने में 6 से 9 घंटे लग गए. 21% पॉलिसीहोल्डर्स 3 से 6 घंटे लग गए. 12% लोगों के क्लेम 1 से 3 घंटे में भी सेटल हुए, जबिक 8% लोगों के क्लेम तुरंत सेटल हो गए.

वहीं जब लोगों से पूछा गया कि क्या IRDAI को क्लेम प्रोसेसिंग के लिए 100% वेब बेस़्ड सिस्टम अनिवार्य कर देना चाहिए, तो 92% लोग इसके पक्ष में नजर आए. 83% ने कहा कि ऐसा होना चाहिए. जबकि 9% ने कहा कि ऐसा हो रहा है. वहीं 8% ऐसे भी थे, जो इस पर कोई निश्चित जवाब नहीं दे पाए.

क्या जानबूझकर देरी करते हैं इंश्योरर्स?

लोगों से सर्वे में ये भी पूछा गया कि क्या इंश्योर्रस कंपनियां जानबूझकर क्लेम सेटल करने में देर करती हैं, ताकि पॉलिसीहोल्डर कम क्लेम सेटलमेंट के लिए राजी हो जाए.

सर्वे में शामिल 47% लोगों ने माना कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसा हुआ है. वहीं 34% ने कहा कि उनके साथ ऐसा नहीं हुआ है, लेकिन उनके करीबी लोगों में शामिल किसी के साथ ऐसा हुआ है. 7% लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने माना कि इस तरह की स्थिति आम नहीं है. 12% ने इस संबंध में कोई भी निश्चित जवाब नहीं दिया.

बता दें जून 2024 में ही IRDAI ने हेल्थ इंश्योरर्स कंपनियों को निर्देश दिया था कि कैशलैस क्लेम के मामले में उन्हें तुरंत या एक घंटे के भीतर फैसला करना होगा. मतलब इंश्योरर्स को क्लेम को मान्यता देना होगा या रद्द करना होगा. जबकि इस तरह के मामलों में डिस्चार्ज होने के तीन घंटे के भीतर इनका सेटलमेंट करना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है, तो अतिरिक्त पैसा भी इन्हीं कंपनियों को भरना होगा. हालांकि अब भी लोगों को क्लेम रजिस्टर और सेटल करवाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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