केंद्र सरकार ने मेडिकल जर्नल लैंसेट के उन दावों को खारिज किया है, जिनमें लैंसेट ने भारत के डेटा सिस्टम पर सवाल उठाया है. लैंसेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हेल्थ पर डेटा शेयर करने में भारत सटीकता (Accuracy) और पारदर्शिता (Transparency) नहीं रखता.
देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर लैंसेट ने लिखा है कि भारत में स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच और गुणवत्ता दोनों की दिक्कत है. इसमें जिस एक बड़ी बाधा के बारे में भारतीय अनजान हैं, वो हेल्थ डेटा और डेटा ट्रांसपेरेंसी की कमी से जुड़ा है.
अपनी रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव 2024 को केंद्र में रखते हुए लैंसेट ने लिखा है, 'नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत आर्थिक मोर्चे पर असमान रूप से आगे बढ़ा है और अगले 3 साल में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का माद्दा (Potential) रखता है, लेकिन स्वास्थ्य के मोर्चे पर मोदी सरकार की कहानी अलग है.'
लैंसेट ने कहा है कि स्वास्थ्य नीति, योजना और प्रबंधन के लिए सटीक और अपडेटेड डेटा जरूरी है लेकिन भारत में ऐसे डेटा के कलेक्शन और पब्लिकेशन की राह बाधाओं से भरी है. स्वास्थ्य पर सरकार का बजट काफी कम हो गया है और ये GDP का महज 1.2% के करीब है. ऐसे में हेल्थ को लेकर लोगों की जेब पर बड़ा बोझ है.
लैंसेट ने कहा है, कोविड के चलते 2021 की जनगणना में देरी हुई और 2024 में किया जाने वाला ई-सर्वेक्षण भी पूरा नहीं हुआ. जन्म और मृत्यु पर डेटा को लेकर भी लैंसेट ने सवाल उठाया है. हालांकि भारत ने लैंसेट के दावों को खारिज किया है.
केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि भारत में जन्म और मृत्यु का डेटा कलेक्ट करने का एक मजबूत सिस्टम है. जन्म और मृत्यु अधिनियम, 1969 के तहत नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) के माध्यम से जन्म और मृत्यु, दोनों के आंकड़े रखे जाते हैं. देशभर में करीब 3 लाख रजिस्ट्रेशन यूनिट्स के जरिए रजिस्ट्रार को जन्म और मृत्यु की सूचना दी जाती है.
लैंसेट ने ही कोविड के दौरान देश में 4.8 लाख लोगों की मौत के आंकड़ों पर भी सवाल उठाया था. जर्नल का कहना था कि अमेरिका (12 लाख+), ब्राजील (7 लाख+) समेत दुनियाभर के कई देशों में की तुलना में भारत में मौत का आंकड़ा इतना कम नहीं हो सकता. भारत ने तब भी लैंसेट के आरोपों को खारिज कर दिया था.