डायबिटीज, एक ऐसी बीमारी, जो होती तो है, ब्लड में शुगर के बढ़ने से, लेकिन होने के बाद ये 'जीवन का मिठास' ही खत्म कर देती है. अनुमानित तौर पर 20 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के जीवन से मिठास गायब हो चुकी है.
मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक स्टडी कहती है कि दुनियाभर में 82.8 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज के पेशेंट हैं, जिनमें से करीब 21.2 करोड़ केवल भारत में हैं. ये अनुमानित आंकड़े साल 2022 के लिए हैं. यानी कि अबतक देश में डायबिटीज मरीजों की संख्या काफी बढ़ चुकी होगी.
द लैंसेट ने 14 नंवबर को वर्ल्ड डायबिटीज डे के मौके पर ये स्टडी पब्लिश की है. NCD रिस्क फैक्टर कोलैबोरेशन (NCD-RisC) की ओर से ये स्टडी की गई थी.
द लैंसेट के अनुसार, 82.8 करोड़ का आंकड़ा, साल 1990 के आंकड़े से 4 गुना ज्यादा है. यानी 3 दशक में ये बीमारी काफी तेजी से बढ़ी है.
स्टडी के मुताबिक, भारत के बाद दूसरे नंबर पर चीन है, जहां करीब 14.8 करोड़ डायबिटीज पेशेंट हैं. अमेरिका में 4.2 करोड़, पाकिस्तान में 3.6 करोड़, इंडोनेशिया में 2.5 करोड़, जबकि ब्राजील में 2.2 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं.
निम्न और मध्य आय वाले देशों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, जबकि कुछ उच्च आय वाले देशों जैसे जापान, कनाडा और पश्चिमी यूरोप के कुछ देशों (जैसे फ्रांस, स्पेन और डेनमार्क) में पिछले तीन दशकों में डायबिटीज की दर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है या इसमें मामूली कमी आई है.
लंदन के इंपीरियल कॉलेज के प्रोफेसर माजिद एज्जाती, जो इस स्टडी के लीड ऑथर हैं, उनका कहना है कि ये स्टडी डायबिटीज को लेकर वैश्विक असमानताओं को उजागर करती है.
उन्होंने कहा कि कम और मध्यम आय वाले देशों में डायबिटीज का ट्रीटमेंट रेट स्थिर है, जबकि वहां डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यही चिंता का विषय है, क्योंकि इन देशों में डायबिटीज के मरीज आमतौर पर युवा होते हैं और सही ट्रीटमेंट न मिलने से दिक्कतें बढ़ती चली जाती हैं.
भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से शुगर के मरीज बढ़ रहे हैं, जो कि चिंता का विषय है. स्टडी के अनुसार, 1990 से 2022 के बीच वैश्विक स्तर पर पुरुषों में डायबिटीज की दर 6.8% से बढ़कर 14.3% हो गई है, जबकि महिलाओं में 6.9% से बढ़कर 13.9% हो गई है.
भारत की बात करें तो यहां भी पुरुषों और महिलाओं में डायबिटीज की दर लगभग दोगुनी हो गई है. महिलाओं में ये आंकड़ा 1990 में 11.9% से बढ़कर 2022 में 24% हो गया है, जबकि पुरुषों में 11.3% से बढ़कर 21.4% हो गया है.
रिपोर्ट का अध्ययन करने पर पता चला है कि साल 2021 तक भारत में केवल 20-79 वर्ष की आयु के करीब 7.4 करोड़ लोग डायबिटीज से प्रभावित थे और अगले 20-21 साल में यानी ये संख्या बढ़कर 12.5 करोड़ हो सकती है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डायबिटीज इन डेवलपिंग कंट्रीज में प्रकाशित 2022 की एक स्टडी में पाया गया कि भारत में, डायबिटीज से पीड़ित 12.5% यानी करीब 30 लाख लोगों को डायबिटिक रेटिनोपैथी है. इनमें 4% लोगों के आंखों की रोशनी जाने का भी तत्काल खतरा है.
स्टडी के लेखकों का कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में में डायबिटीज के इलाज की ऊंची लागत भी एक बड़ी बाधा है. इंसुलिन और दवाओं का खर्च इतना है कि ज्यादातर मरीजों को पूरा इलाज नसीब नहीं होता.
मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन से शामिल ऑथर और रिसर्चर रंजीत मोहन अंजना ने कहा कि डायबिटीज के घातक परिणामों को देखते हुए स्वस्थ आहार और व्यायाम के जरिये इसकी रोकथाम करना जरूरी है. दुनिया भर में बेहतर स्वास्थ्य के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी है.
लेखकों का सुझाव है कि ऐसे में डायबिटीज से निपटने के लिए एक वैश्विक रणनीति की जरूरत है. खासकर से उन देशों में जहां हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और रिसोर्सेज की कमी है. इसमें सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने, बेहतर आहार सुनिश्चित करने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने और डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलों को शामिल किया जा सकता है.