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क्लेम सेटलमेंट, ICR और सब-लिमिट; बेहतर हेल्थ इंश्योरेंस पर नितिन कामत की सलाह

किसी भी इंश्योरेंस पॉलिसी को लेने से पहले CSR, ICR, रूम रेंट लिमिट, सब लिमिट, वेलनेस बेनिफिट समेत इन चीजों का रखें खास ध्यान, सुनें जीरोधा फाउंडर नितिन कामत की सलाह
NDTV Profit हिंदीअक्षत मिश्रा
NDTV Profit हिंदी07:44 PM IST, 31 Aug 2024NDTV Profit हिंदी
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महंगाई के इस दौर में स्वास्थ्य सेवाएं भी महंगी हो गई है, जिसकी वजह से बीमारियों का इलाज काफी महंगा हो गया है. लाइफ स्टाइल, तनाव और अन्य कई वजहों से लोग कम उम्र में ही कई तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.

ऐसे में ये जरूरी है कि आपके पास एक अच्छा हेल्थ इंश्योरेंस हो. ये ना केवल आपकी मेहनत की कमाई को अचानक खर्च होने से बचा सकता है, बल्कि आपके प्रियजनों को बेहतर जगह इलाज भी मुहैया कराने में मददगार साबित होता है.

अब ये बात जेरोधा के फाउंडर नितिन कामत भी कह रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर अहम जानकारी शेयर करते हुए बताया है कि एक अच्छी इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए.

इंश्योरेंस कंपनी चुनते समय इन चीजों का रखें ध्यान

बेहतर हो CSR

कामत ने जो कार्ड शेयर किया है, उसमें इंश्योरेंस कंपनी का बीते 3 साल का एवरेज CSR (Claim Settlement Ratio) लिया गया है. मतलब कितने लोगों ने क्लेम किया और उनमें से कितनों का क्लेम पास हुआ.

  • अगर कंपनी का CSR 90% से ज्यादा है, तो बेहतर है.

  • 80% से 90% के बीच CSR वाली कंपनियां भी ठीक हैं.

  • CSR 80% से कम है, तो इंश्योरेंस कंपनी से पॉलिसी नहीं लेनी चाहिए.

हॉस्पिटल नेटवर्क

ज्यादातर हॉस्पिटल्स को कवर करने वाली कंपनियों का इंश्योरेंस लेना बेहतर होता है. इससे ज्यादा बड़े नेटवर्क में आपको इलाज करवाने की सुविधा मिलती है और आसानी से नगदी रहित ट्रांजैक्शंस की तरफ बढ़ा जा सकता है.

  • जिस कंपनी के इंश्योरेंस में 8000 से ज्यादा अस्पताल हों, वो बेहतर है.

  • 5000-8000 के बीच हॉस्पिटल नेटवर्क वाली कंपनी की पॉलिसी भी ठीक है.

  • लेकिन अगर इंश्योरेंस कंपनी का 5000 से कम हॉस्पिटल का नेटवर्क है, तो उससे पॉलिसी नहीं लेनी चाहिए.

अच्छा ICR जरूरी

इंश्योरेंस कंपनी द्वारा 'कुल कलेक्ट किए गए प्रीमियम के अनुपात में जितना पैसा क्लेम के तहत दिया गया' है, उसे कंपनी का ICR कहते हैं. कामत के मुताबिक किसी इंश्योरेंस कंपनी का ICR 55%-75% या उससे ज्यादा है तो उसे आप ले सकते हैं.

ट्रैक रिकॉर्ड

ये ध्यान रखा जाए कि अगर कंपनी का बीते 10 साल या इससे ज्यादा का ट्रैक रिकॉर्ड मौजूद है, तो बेहतर है. वहीं 5 से 10 साल के बीच का ट्रैक रिकॉर्ड उपलब्ध है, तो ये भी ठीक है. लेकिन अगर पॉलिसी का ट्रैक रिकॉर्ड 5 साल से भी कम उपलब्ध है, तो संबंधित कंपनी से पॉलिसी लेने से बचना चाहिए.

ट्रैक रिकॉर्ड का मतलब कंपनी की वर्किंग हिस्ट्री से है, मतलब अतीत में कितना सेटलमेंट किया, सेटलमेंट में कितना अमाउंट दिया, किन चीजों पर सेटलमेंट नहीं दिया और भी ऐसी ही तमाम जानकारी.

इंश्योरेंस पॉलिसी में कैसे फीचर्स होने चाहिए?

किसी भी इंश्योरेंस पॉलिसी में ये फीचर्स जरूर देंखे:

कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस: ये इंश्योरेंस का एक ऐसा तरीका है जिससे बीमाधारक को अस्पताल में भर्ती होने पर मेडिकल बिल का भुगतान नहीं करना पड़ता. इस पॉलिसी के तहत, बीमा कंपनी सीधे अस्पताल के बिलों का भुगतान करती है.

रूम रेंट लिमिट: भर्ती होने की स्थिति में कितने अमाउंट तक हॉस्पिटल रूम का चार्ज इंश्योरेंस में क्लेम किया जा सकता है. अच्छी पॉलिसी वे हैं, जिनमें ये कैपिंग ना हो. या फिर ये जितना ज्यादा होगा, उतना बेहतर है.

सब-लिमिट: कुछ खास बीमारियों में इंश्योरेंस कंपनियां कैपिंग करती हैं. नितिन कामत के मुताबिक बेहतर पॉलिसी वे हैं, जिनमें सब लिमिट ना हो.

फॉलोअप ट्रीटमेंट: फॉलोअप ट्रीटमेंट किसी बीमारी का इलाज खत्म होने के बाद समय-समय पर दी जाने वाली देखभाल है. अच्छी पॉलिसी में आने वाले कुछ महीनों में इसका भुगतान भी किया जाता है.

डे केयर: इंश्योरेंस पॉलिसी में डे केयर उन बीमारियों को लिए होता हैं, जिनमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है. लेकिन 24 घंटे से कम वक्त के लिए. जिन पॉलिसीज में ये व्यवस्था होती है, वे बेहतर हैं.

फ्री एनुअल चेकअप: किसी भी पॉलिसी में फ्री एनुअल चेकअप होना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है.

इसके अलावा वेलनेस प्रोग्राम, रीस्टोरेशन बेनिफिट, लॉयल्टी बेनिफिट वाले फीचर्स भी इंश्योरेंस पॉलिसीज को बेहतर बनाते हैं. इन पर भी नजर रखना जरूरी है.

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