कई अभिभावकों का सपना होता है कि उनके बच्चे विदेश जाकर पढ़ाई करें, लेकिन ये इतना आसान नहीं होता, क्योंकि इसके लिए चाहिए होती है अच्छी खासी रकम और एक सटीक प्लानिंग. यह कोई छोटा वित्तीय लक्ष्य नहीं होता. फंड जुटाना भी खासा मुश्किल होता है क्योंकि कई फैक्टर ऐसे होते हैं जिस वजह से पैसे का हिसाब किताब या अनुमान गड़बड़ा जाता है.
जो रकम विदेशी यूनिवर्सिटी वसूलती है उसमें होने वाला बदलाव हो या फिर करंसी के एक्सचेंज रेट में बदलाव - फंड इकट्ठा करने की पूरी प्रक्रिया पर इसका उल्टा असर पड़ता है.
बच्चे की शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक मुकम्मल योजना होनी चाहिए. इस लक्ष्य की प्रकृति ऐसी होती है कि यह आवश्यक रकम का हिसाब गड़बड़ा सकती है और वास्तविक भुगतान के वक्त तनाव की स्थिति ला देती है. लेकिन, इससे निपटने का रास्ता भी है. इसके लिए कुछ मूलभूत बातों को जानना जरूरी है और यह सुनिश्चित करना भी कि योजना पुख्ता तरीके से बनाई गई हो. समय रहते योजना बनाना, महंगाई को ध्यान में रखना और अपने पास एक बफर टाइम रखना जरूरी है. तभी राह आसान हो सकती है.
विदेशी शिक्षा के लिए आवश्यक रकम आम तौर पर मोटी होती है और हर साल कई लाख रुपये की जरूरत होती है. इसके लिए योजना पर अमल की प्रक्रिया थोड़ा पहले शुरू करें. जितनी जल्दी यह प्रक्रिया शुरू होगी, सहूलियत उतनी ज्यादा होगी. कई तरह के फायदे होंगे. उदाहरण के लिए अगर 15 साल बाद बच्चे की शिक्षा के लिए 50 लाख रुपये की जरूरत है तो हर महीने 10,000 रुपये का निवेश कर 12 प्रतिशत सालाना जोड़ते रहना होगा. तभी लक्ष्य हासिल होगा. अगर इसमें पांच साल की देरी करते हैं तो लक्ष्य पूरा करने के लिए महज 10 साल पास में होते हैं. ऐसी सूरत में दुगुने से ज्यादा यानी 22,000 रुपये प्रति महीना निवेश की जरूरत होती है.
अगर लक्ष्य लंबी अवधि का हो तो धन जुटाते वक्त महंगाई को ध्यान में रखना जरूरी है. यह काम तब और जटिल हो जाता है जब बात विदेशी शिक्षा की आती है क्योंकि यहां रकम जोड़ने में दो अतिरिक्त फैक्टर का ध्यान रखना पड़ता है. एक तरफ शिक्षा महंगी होती चली जाती है जब यूनिवर्सिटी की ओर से कोर्स के नाम पर फीस लगातार बढ़ाई जाने लगती है. दूसरी तरफ रुपये की वैल्यू गिरती रहती है. अतीत के रुझानों को देखते हुए इस गिरावट को ध्यान में रखना जरूरी हो जाता है. इसकी वजह से आवश्यक फंड के लिए ज्यादा पैसों की आवश्यक्ता होती है.
शिक्षा के लिए वित्तीय जरूरत पूरा करने की राह में कई चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं. यह बदलाव इस रूप में भी हो सकता है कि अध्ययन का स्वरूप ही बदल जाए. यहां तक कि कोर्स की समय अवधि भी बढ़ाई जा सकती है. फंड थोड़ा बढ़ाकर रखने से इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है. बफर के तौर पर अतिरिक्त रकम होगी तो चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
(अर्णव पंड्या मनी एडु स्कूल के संस्थापक हैं)