अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट हुई है. कच्चे तेल की कीमतें करीब 5% गिरकर पिछले 9 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं. चीन के बाद अमेरिका के कमजोर डेटा और लीबिया संकट टलने की संभावना के बीच तेल की कीमतों में गिरावट देखी गई.
ब्रेंट क्रूड वायदा करीब 5% की गिरावट के साथ 73.13 डॉलर/बैरल तक फिसल गया, जो दिसंबर के बाद का सबसे निचला स्तर है. ये जुलाई 2024 की शुरुआत से करीब 15% नीचे चला गया है.
कुल मिलाकर तेल की कीमतों ने अब तक इस साल की सारी बढ़त खो दी है, जिसका भारतीय कंपनियों पर दोहरा प्रभाव पड़ सकता है.
आम तौर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने पर इंडियन ऑयल (IOC), भारत पेट्रोलियम (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) जैसी ऑयल मार्केटिंग कंपनियाें (OMCs) को फायदा पहुंचता है.
इन कंपनियों की आय मुख्य रूप से दो सेगमेंट पर निर्भर करती है- रिफाइनिंग और मार्केटिंग.
रिफाइनिंग सेगमेंट में कच्चे तेल को पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन (ATF) जैसे कीमती प्रोडक्ट्स में बदलना शामिल है.
वहीं मार्केटिंग सेगमेंट इन रिफाइंड प्रोडक्ट्स के डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स पर फोकस करता है.
इंडियन ऑयल (Indian Oil), भारत पेट्रोलियम (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) ने पिछले 28 महीनों से पेट्रोल और डीजल के लिए अपनी खुदरा कीमतों को स्थिर रखा है. ऐसे में उनके मार्केटिंग मार्जिन अब तेल की कीमतों और रिफाइनिंग मार्जिन में उतार-चढ़ाव से जुड़े हुए हैं.
तेल की कीमतों में गिरावट और ग्लोबल रिफाइनिंग मार्जिन में सुधार के साथ, ये स्थिति तेल मार्केटिंग कंपनियों के लिए पॉजिटिव है. एमके (Emkay) के अनुसार, इस आधार पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम को सबसे अधिक लाभ होगा.
ब्रोकरेज ने नोट में कहा कि HPCL करीब 60 लाख टन कच्चे तेल को रिफाइन करती है और लगभग 1.25 करोड़ टन की मार्केर्टिंग करती है. यानी इसका रिफाइनिंग-टू-मार्केटिंग रेश्यो करीब 45% है. इसके अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में अगर 2 डॉलर की कमी आती है तो मार्केटिंग EBITDA पर करीब 1,500 करोड़ रुपये का पॉजिटिव असर देखने को मिलता है.
ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) जैसी ऑयल एक्सप्लोरेशन और प्रोडक्शन कंपनियों के लिए, तेल की गिरती कीमतें उनकी आय के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा करती हैं.
नुवामा रिसर्च के अनुसार, ऑयल इंडिया और ONGC वर्तमान में 'No-Win' सिचुएशन में है, जहां उनकी आय काफी हद तक सीमित है. इसके पीछे सरकार का विंडफॉल टैक्स बड़ा कारण है, जो कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल से अधिक होने पर हाई रेट से लगाया जाता है.
नुवामा ने आगे कहा कि अगर कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर उठती हैं, तो इन कंपनियों के लिए सेल्स रेवेन्यू उस कीमत पर सीमित हो जाता है. इसके विपरीत, अगर तेल की कीमतें इस सीमा से नीचे गिरती हैं, तो उनकी आय जोखिम में रहती है क्योंकि बाजार में भी सेलिंग प्राइस भी कम होती है.