IPO लाने वाली कंपनियों के लिए मार्केट रेगुलेटर SEBI ने नियमों को थोड़ा और आसान कर दिया है. SEBI ने नियमों को लेकर एक नोटिफिकशन जारी किया है, जिसमें रेगुलेटर ने कहा है कि ऑफर फॉर सेल (OFS) के साइज में कोई भी बदलाव, जिसकी वजह से उसे नए सिरे से फाइल करने की जरूरत होती है, वो सिर्फ एक ही तरीके से किया जा सकता है- पहला इश्यू साइज (रुपये में), दूसरा- शेयरों की संख्या में.
SEBI के नियमों के मुताबिक IPO की लिस्टिंग के बाद प्रोमोटर्स के कम से कम 20% शेयरों को एक तय अवधि के लिए लॉक किया जाना अनिवार्य होता है. अब SEBI ने कहा कि ऑफर इक्विटी शेयर कैपिटल के बाद 5% से ज्यादा होल्डिंग वाले नॉन-प्रोमोटर शेयरहोल्डर इस कमी में योगदान कर सकते हैं.
SEBI की इस राहत का फायदा नई टेक कंपनियों को होगा, जिनका IPO के बाद शेयरहोल्डिंग अक्सर ही कम हो जाता है. क्योंकि इन कंपनियों में प्रोमोटर्स अक्सर ही कंपनी में शेयर कैपिटल की मेजोरिटी होल्ड नहीं करते हैं.
आंत्रप्रेन्योर्स प्रोमोटेड कंपनियां स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग से पहले अक्सर ही फंडिंग के कई राउंड्स से गुजरती हैं, इस स्थिति में प्रोमोटर्स की होल्डिंग न्यूनतम प्रोमोटर कंट्रीब्यूशन (MPC) से कम रह जाती है, जो कि ऑफर इक्विटी शेयर कैपिटल के बाद 20% होनी चाहिए.
हालांकि प्रोमोटर्स को अब भी इश्यू के बाद कम से कम 10% होल्डिंग रखनी होगी
हालांकि मौजूदा ICDR (Issue of Capital and Disclosure Requirements) नियम कुछ कैटेगरीज में निवेशकों को इस कमी के लिए उनकी ओर से रखे गए इक्विटी शेयरों में योगदान करने की अनुमति देता है, अब SEBI की तरफ से एक और राहत दी गई है.
इसके अलावा, ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस दाखिल करने से पहले एक वर्ष के लिए रखे गए अनिवार्य रूप से कन्वर्टिबल सिक्योरिटीज के कन्वर्जन से मिले इक्विटी शेयरों को MPC जरूरतों को पूरा करने के लिए विचार किया जा सकता है.