साल 2023 से शुरू हुआ IPO का सिलसिला अबतक जारी है. टाटा टेक्नोलॉजीज (Tata Technologies) और IREDA से लेकर नेटवेब टेक्नोलॉजीज तक, सेनको गोल्ड और मोतीसंस ज्वेलर्स तक, बहुत सारे IPO ने निवेशकों को भारी मुनाफा कराया है. इनमें से कुछ IPO ने लिस्टिंग के दिन ही 100% या उससे भी ज्यादा प्रॉफिट दिया है.
मौके का फायदा उठाते हुए कई निवेशकों ने फटाफट प्रॉफिट बुकिंग करके अपने पैसे निकाल भी लिए हैं. लेकिन मुनाफे का मजा लेने के साथ ही साथ ये याद रखना भी जरूरी है कि इस ताबड़तोड़ कमाई पर आपको टैक्स भी देना पड़ सकता है. साथ ही यह जानना भी दिलचस्प होगा कि क्या इस टैक्स देनदारी को कम करने का भी कोई उपाय हो सकता है. आइए जानते हैं कि इनकम टैक्स नियम इस बारे में क्या कहते हैं.
इक्विटी निवेश पर इनकम टैक्स की दर इस बात पर निर्भर होती है कि आप अपने निवेश को कितने समय तक होल्ड करते हैं. अगर इक्विटी में किए गए निवेश को 1 साल या उससे ज्यादा समय तक होल्ड करने के बाद बेचा जाए, तो उससे होने वाले मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) माना जाता है और उस पर 10% की दर से LTCG टैक्स लगता है. इतना ही नहीं, एक वित्त वर्ष के दौरान 1 लाख रुपये तक के LTCG पर कोई टैक्स नहीं लगता.
लेकिन अगर आप अपने इक्विटी निवेश को एक साल से कम समय तक होल्ड करने के बाद बेचते हैं, तो उससे होने वाला मुनाफा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (STCG) माना जाता है, जिस पर 15% की दर से STCG टैक्स लगता है. सालाना 1 लाख रुपये तक के मुनाफे पर जो छूट LTCG के मामले में मिलती है, वो STCG पर नहीं मिलती.
अगर आप IPO में अलॉट हुए शेयर को लिस्टिंग वाले दिन या उसके कुछ ही दिनों बाद, यानी एक साल से पहले बेच देते हैं, तो उससे हुए मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा और आपको उस पर 15% के हिसाब से STCG टैक्स देना होगा. इसके अलावा आपको इस टैक्स पर 2% एजुकेशन सेस और 1% हायर एजुकेशन सेस भी देना होगा.
IPO में मिले शेयर को लिस्टिंग के बाद बेचने से हुए मुनाफे पर लागू कुल टैक्स देनदारी को आप कुछ हद तक कम कर सकते हैं. अगर आपने IPO में शेयर पाने के लिए ब्रोकरेज के जरिए अप्लाई किया था और इसके लिए आपने ब्रोकरेज की फीस चुकाई है, तो इस रकम को आप मुनाफे में से एडजस्ट कर सकते हैं. इसी तरह अगर आपको उसी वित्त वर्ष के दौरान कोई और शेयर या एसेट बेचने में शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस हुआ है, तो उसे भी आप IPO पर हुए STCG में एडजस्ट करके टैक्स का बोझ कुछ घटा सकते हैं.
हालांकि, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (STCG) पर टैक्स की देनदारी को उसी वित्त वर्ष के दौरान हुए किसी शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस के साथ ही एडजस्ट किया जा सकता है. इसे आप किसी लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस से एडजस्ट नहीं कर सकते. लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस को सिर्फ लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) से ही घटाया जा सकता है.
अगर किसी निवेशक की सालाना सालाना टैक्सेबल इनकम यानी कर योग्य आय शेयर बेचने से हुई कमाई को जोड़ने के बाद भी बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट (basic exemption limit) से कम है, तो उन्हें कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा.
इनकम टैक्स के नियमों के तहत यह लिमिट सामान्य नागरिकों के लिए 2.5 लाख रुपये, 60 से 80 साल तक के सीनियर सिटिजन यानी वरिष्ठ नागरिकों के लिए 3 लाख रुपये और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र वाले अति-वरिष्ठ नागरिकों (super senior citizen) के लिए के लिए 5 लाख रुपये है.
अगर आप नई टैक्स रिजीम को चुनते हैं, तो सालाना 7 लाख रुपये तक की टैक्सेबल इनकम वालों को सेक्शन 87A के तहत मिलने वाली टैक्स रिबेट को जोड़ने के बाद कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा. LTCG और STCG टैक्स के नियम नई टैक्स रिजीम में भी लागू हैं. पुरानी टैक्स रिजीम में टैक्स रिबेट पाने के लिए टैक्सेबल इनकम की अधिकतम सीमा 5 लाख रुपये है. सैलरीड लोगों को 50 हजार रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ दोनों ही टैक्स रिजीम में मिलता है.