नॉर्वे के डिप्लोमैट और UN पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर एरिक सोल्हेम ने अदाणी ग्रुप पर अमेरिका की रिपोर्ट पर सवाल उठाया है और इसे अमेरिकी 'अतिक्रमण' बताया है. इस रिपोर्ट के ग्लोबल मीडिया कवरेज पर बोलते हुए, उन्होंने पूछा कि अमेरिका का ये अतिक्रमण (overreach) कब रुकेगा?.
अमेरिकी रिपोर्ट में अदाणी ग्रुप से जुड़े कुछ व्यक्तियों पर भारत में सोलर एनर्जी कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए रिश्वत देने का आरोप लगाया गया था. हालांकि,सोल्हेम ने बताया कि आरोपों में सच में रिश्वत देने या अदाणी ग्रुप के अधिकारियों के शामिल होने के कोई सबूत नहीं हैं. सोल्हेम ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों की ऐसी हरकतें भारत के ग्रीन एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन में रुकावट डाल रही है और देश की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में से एक के लिए रोड़ा बन रही है.
अदाणी ग्रुप भी अमेरिकी आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर चुका है. एक बयान में ग्रुप ने साफ किया है कि उसके किसी भी डायरेक्टर या लिस्टेड फर्म पर गलत काम का आरोप नहीं लगाया गया है. इसमें कहा गया है कि ये रिपोर्ट वादा किए गए या चर्चा की गई रिश्वत के दावों पर आधारित है, जिसका कोई सबूत नहीं है.
सोल्हेम ने एक X पोस्ट में लिखा है कि अमेरिकी अतिक्रमण कब रुकेगा? पिछला हफ्ता अमेरिकी मीडिया एक अमेरिकी अभियोजक की ओर से अदाणी ग्रुप के खिलाफ अभियोग की कहानियों से भरा पड़ा था. अब समय आ गया है कि दुनिया ये पूछे कि अमेरिकी अतिक्रमण कब रुकेगा. आइए एक सेकेंड के लिए जरा दूसरे नजरिए से देखते हैं और मान लें कि एक भारतीय अदालत ने कथित तौर पर अमेरिका में किए गए अपराधों के लिए अमेरिकी बिजनेस अधिकारियों पर आरोप लगाया है. क्या ये अमेरिका को स्वीकार्य होगा? क्या अमेरिकी मीडिया को ये उचित लगेगा?.
वो आगे लिखते हैं 'अब ये साफ हो चुका है कि आरोप अदाणी के टॉप एग्जिक्यूटिव्स गौतम और सागर अदाणी के खिलाफ नहीं हैं. न ही इस बात का सबूत है कि अदाणी के अधिकारियों की ओर से भारत सरकार के अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी. आरोप पूरी तरह से उन दावों पर आधारित है कि रिश्वत का वादा किया गया था या चर्चा की गई थी.'
नॉर्वे के पूर्व पर्यावरण मंत्री और संयुक्त राष्ट्र के अंडर सेक्रेटरी सोल्हेम ने तर्क दिया कि 'अमेरिकी अतिक्रमण' के वास्तविक जीवन के परिणाम हैं जो लोगों के जीवन पर असर डालते हैं. ये कहते हुए कि रिपोर्ट अदाणी ग्रुप को सोलर और विंड प्लांट्स के निर्माण के बजाय अदालतों में संसाधनों को बर्बाद करने के लिए मजबूर करती है.
उन्होंने जोर देकर कहा कि ये अमेरिकी अतिक्रमण को रोकने का वक्त है!
इसके पहले वरिष्ठ वकील और पूर्व सांसद महेश जेठमलानी ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया और कहा कि इसमें कोई दम नहीं है. जेठमलानी ने कहा कि आरोप राजनीति से प्रेरित थे, उन्होंने अमेरिका में 'डेमोक्रेटिक डीप स्टेट' पर भारत को अस्थिर करने के लिए अपनी न्यायपालिका को हथियार बनाने का आरोप लगाया. जेठमलानी ने कहा कि आरोप में भारत में रिश्वतखोरी का कोई सबूत नहीं है, न ही इसमें अदाणी के किसी टॉप अधिकारी को शामिल किया गया है. ये राजनीतिक शोर के अलावा और कुछ नहीं है.