साल 2025 की शुरुआत इससे बुरी नहीं हो सकती, जनवरी में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स ने भारतीय शेयर बाजार में 78,000 करोड़ रुपये की बिकवाली की है. विदेशी निवेशकों की घबराहट का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जनवरी के 23 ट्रेडिंग सेशन में में 22 सेशन में FIIs ने केवल बिकवाली की है, जो कि फरवरी में भी जारी है. सिर्फ 4 फरवरी को छोड़ दें जब FIIs ने 809 करोड़ रुपये की खरीदारी की थी, तो उसके बाद FPIs ने लगातार भारतीय शेयर बाजार से शेयर बेचे हैं और अबतक 15,800 करोड़ रुपये का माल वो निकाल चुके हैं.
JM फाइनेंशियल की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय बाजार में FIIs की कुल हिस्सेदारी जनवरी में घटकर 16% हो गई है, जो कि दिसंबर 2024 में 16.1% हुआ करती थी, जबकि जनवरी 2015 में ये 20.2% थी, यानी बीते 10 साल में FIIs की ओनरशिप करीब 4% कम हुई है. FPIs ने Q4 2024 में भारतीय बाजारों से 12 बिलियन डॉलर निकाल लिए थे, यानी करीब 1.49 लाख करोड़ रुपये, जिसकी वजह से FPIs की टॉप NSE-500 लिस्टेड कंपनियों में हिस्सेदारी घटकर 18.8% पर आ गई, जो कि 12 साल में सबसे कम है.
जिस तरह से फरवरी में FPIs के पैर भारतीय शेयर बाजार से उखड़ रहे हैं, उसे देखकर हालात सुधरने के आसार कम नजर आते हैं. FPIs ने साल 2025 में अबतक करीब 1 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली कर ली है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) के आंकड़ों के मुताबिक फरवरी में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 11 फरवरी तक 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेच दिए हैं. JM फाइनेंशियल की रिपोर्ट के मुताबिक - अक्टूबर 2024, जब विदेशी निवेशकों की बिकवाली की आंधी चलनी शुरू हुई, जो अबतक चल रही है, 1.7 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली हो चुकी है.
अक्टूबर में शुरू हुई बिकवाली फरवरी में भी जारी है, इतना लंबे वक्त तक FPIs की घबराहट की कोई एक वजह नहीं हो सकती है. इसको जरा एक एक करके समझते हैं.
1- डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है. रुपया 88 के स्तर के करीब पहुंच चुका है. अक्टूबर में रुपया 84 के आस-पास घूम रहा था, लेकिन अब ये उस स्तर से और भी कमजोर हो चुका है. अब रुपया कमजोर क्यों है, इसको भी जरा समझ लीजिए, क्योंकि इसके पीछे भी FIIs हैं. जब विदेशी निवेशक शेयर बेचते हैं तो उन्हें रकम रुपये में मिलती है, लेकिन जब उन्हें यही पैसा बाहर अपने देश में भेजना होता है, तो उन्हें डॉलर चाहिए. ऐसे में वो रुपये को डॉलर में कन्वर्ट करते हैं. इसके लिए वो रुपया बेचकर डॉलर खरीदते हैं. इससे मार्केट में रुपया सरप्लस होने लगता है, डॉलर की डिमांड बढ़ जाती है. डॉलर की डिमांड बढ़ती है तो वो मजबूत होता है और रुपया कमजोर होने लगता है.
भारतीय बाजारों का वैल्युएशन काफी ज्यादा है, यानी दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के मुकाबले भारतीय बाजार ज्यादा महंगे हैं. इसलिए ज्यादा रिटर्न का चाह में विदेश पोर्टफोलियो निवेशक भारत से पैसा निकालकर चीन जैसे बाजारों में जा रहे हैं. साल 2022 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में जमकर निवेश किया था, क्योंकि उस समय वैल्युएशन काफी आकर्षक थे. ये सिलसिला सितंबर 2024 तक चला. लेकिन इसके बाद भारतीय बाजार महंगे हो गए, विदेशी निवेशकों को दूसरे बाजारों में आकर्षक रिटर्न दिखने लगा और उन्होंने दूसरे बाजारों में पैसा डालना शुरू कर दिया.
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के आने के बाद टैरिफ को लेकर कई ऐलान किए गए हैं, जिसका असर दुनिया भर के बिजनेसेज पर पड़ना तय है, भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा. विदेशी निवेशकों की ये भी एक चिंता है, जिसकी वजह से वो अपना पैसा निकालकर वापस अमेरिका लेकर जा रहे हैं.
अमेरिका के बेहतर आर्थिक आंकड़ों से भी निवेशकों का सेंटीमेंट सुधरा है. अमेरिका में बेरोजगारी दर 4% पर आ गई है, जो कि अनुमान से बेहतर है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व का फोकस अब ग्रोथ को बढ़ाने और महंगाई को कम करने पर है, हालांकि इससे ब्याज दरों में जल्दी कटौती की उम्मीद नहीं है, लेकिन ये निवेशकों के लिए एक संदेश है कि अमेरिका की ग्रोथ सही दिशा में है. जबकि दूसरी तरफ, भारत की GDP ग्रोथ का अनुमान कम हुआ है. RBI ने अपनी ताजा मॉनिटरी पॉलिसी में FY26 के लिए भारत का GDP ग्रोथ अनुमान 6.7% रखा है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में GDP ग्रोथ का अनुमान 6.3-6.8% रखा गया है.