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Explainer: जेपी मॉर्गन इंडेक्स में शामिल होंगे भारतीय बॉन्ड, वित्तीय घाटा, CAD, रुपये और बॉन्ड मार्केट पर क्या होगा असर?

भारत सरकार ने अपनी सिक्योरिटीज को ग्लोबल इंडेक्स में शामिल कराने पर विचार-विमर्श तो कई साल पहले, 2013 में ही शुरू कर दिया था, लेकिन घरेलू डेट मार्केट में विदेशी निवेश पर लागू कई तरह की पाबंदियों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी11:39 AM IST, 25 May 2024NDTV Profit हिंदी
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जेपी मॉर्गन 28 जून 2024 से अपने गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स-इमर्जिंग मार्केट्स (GBI-EM) में भारत सरकार के बॉन्ड्स को शामिल करेगा. दुनिया भर में बड़े पैमाने पर ट्रैक किए जाने वाले इस बॉन्ड इंडेक्स में भारत को पहली बार शामिल किया जा रहा है. ये भारतीय बॉन्ड मार्केट, रुपये के साथ-साथ पूरी अर्थव्यवस्था के लिए कई मायनों में एक महत्वपूर्ण घटना होगी.

इसका असर देश के बॉन्ड मार्केट के साथ ही साथ भारत सरकार के फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटे, करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) और रुपये की वैल्यू पर भी पड़ेगा. इन तमाम पहलुओं की चर्चा हम आगे करेंगे, लेकिन पहले जानते हैं कि जेपी मॉर्गन ने यह फैसला किस वजह से किया और इसकी इतनी चर्चा क्यों है?

भारत को ग्लोबल इंडेक्स में क्यों मिल रही है जगह?

भारत सरकार ने अपनी सिक्योरिटीज को ग्लोबल इंडेक्स में शामिल कराने पर विचार-विमर्श तो कई साल पहले, 2013 में ही शुरू कर दिया था, लेकिन घरेलू डेट मार्केट में विदेशी निवेश पर लागू कई तरह की पाबंदियों की वजह से बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी. इसके बाद अप्रैल 2020 में जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने फुल्ली एक्सेसिबल रूट (FAR) के तहत कुछ सिक्योरिटीज को विदेशी निवेश से जुड़ी सभी पाबंदियों से मुक्त कर दिया, तो उन्हें ग्लोबल इंडेक्स में शामिल करने का रास्ता साफ हो गया.

जेपी मॉर्गन ने पिछले साल सितंबर में जब अपने इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में भारत को जगह देने के फैसले का ऐलान किया, तब भारत सरकार के 23 बॉन्ड (IGBs) इंडेक्स में शामिल होने के लिए योग्य पाए गए. इन सभी बॉन्ड्स की नोशनल वैल्यू करीब 330 अरब अमेरिकी डॉलर है. उस वक्त करीब 73% बेंचमार्क इनवेस्टर्स ने भारत को इस इंडेक्स में शामिल किए जाने का समर्थन किया था.

भारत में कितनी तेजी से आएंगे विदेशी फंड्स

जेपी मॉर्गन ने कहा है कि भारतीय बॉन्ड्स को उसके गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स-इमर्जिंग मार्केट्स (GBI-EM) में कुल मिलाकर 10% वेटेज दिया जाएगा, लेकिन ऐसा एक बार में नहीं होगा. ये प्रक्रिया जून में शुरू होगी और इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड्स का वेटेज हर महीने 1-1% करके बढ़ाया जाएगा.

इसका मतलब ये हुआ कि अगले 10 महीने यानी मार्च 2025 तक इस इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड का वेटेज 10% हो जाएगा. जानकारों का मानना है कि इन दस महीनों के दौरान जेपी मॉर्गन इंडेक्स में शामिल किए जाने के कारण भारतीय बॉन्ड्स में 24 अरब डॉलर से लेकर 30 अरब डॉलर तक का विदेशी निवेश देखने को मिल सकता है. यह रकम भारतीय डेट मार्केट में जेपी मॉर्गन के ऐलान से पहले होने वाले विदेशी निवेश की तुलना में कई गुना ज्यादा है.

डेट मार्केट और बॉन्ड यील्ड पर क्या होगा असर

जेपी मॉर्गन इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड्स के शामिल होने से देश के बॉन्ड मार्केट में काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं. इंडेक्स एलिजिबल इंडियन बॉन्ड्स में विदेशी निवेश में तेजी तो अभी से दिखाई देने लगी है. इंडेक्स में शामिल होने के बाद यह डिमांड और तेजी से बढ़ेगी. इस बढ़ती मांग के कारण भारतीय बॉन्ड मार्केट में पहले से ज्यादा विस्तार और गहराई देखने को मिलेगी, जिससे लिक्विडिटी और एफिशिएंसी भी बढ़ेगी.

डेट मार्केट में विदेशी फंड्स के बढ़ते इंफ्लो यानी प्रवाह का असर घरेलू बाजार में बॉन्ड यील्ड पर भी पड़ेगा. अब तक बैंक, इंश्योरेंस कंपनियां और म्यूचुअल फंड्स ही भारत सरकार के बॉन्ड्स के सबसे बड़े निवेशक रहे हैं. लेकिन विदेशी फंड्स के रूप में निवेश का एक नया स्रोत खुल जाने से बॉन्ड यील्ड कम होंगी. कई जानकारों को उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के दौरान भारत की 10 साल की बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड 7% या उससे भी नीचे जा सकती है.

फिस्कल डेफिसिट पर क्या होगा असर

बॉन्ड यील्ड में कमी आने से भारत सरकार के लिए कर्ज की लागत घटेगी और फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटे पर दबाव कम होगा. अंतरिम बजट के मुताबिक 31 मार्च 2024 को खत्म वित्त वर्ष के दौरान सरकार का राजकोषीय घाटा 5.8% के आसपास रहने की उम्मीद है, जो पिछले साल बजट में प्रस्तावित 5.9% की सीमा से कुछ कम होने के बावजूद काफी अधिक है.

कुछ ताजा अनुमानों के मुताबिक घाटे के इस स्तर पर भी वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत सरकार का फिस्कल डेफिसिट 17 लाख करोड़ के आसपास रहने के आसार हैं. ऐसे में कर्ज की लागत में मिलने वाली कोई भी राहत सरकार के लिए काफी अच्छी खबर मानी जा सकती है.

करंट अकाउंट डेफिसिट पर क्या होगा असर?

घरेलू डेट मार्केट में विदेशी फंड्स का इनफ्लो बढ़ने की वजह से भारत के लिए अपने करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) को मैनेज करना भी आसान हो जाएगा. मोटे तौर पर समझें तो देश को करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) का सामना तब करना पड़ता है, जब विदेशों से इंपोर्ट की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की वैल्यू देश से बाहर एक्सपोर्ट की जाने वाली गुड्स और सर्विसेज की वैल्यू से ज्यादा हो जाती है. (इसके अलावा इसमें नेट फॉरेन इनवेस्टमेंट इनकम को भी शामिल किया जाता है). भारतीय बॉन्डस में फॉरेन फंड्स का फ्लो बढ़ने की वजह से कर्ज की उपलब्धता बढ़ेगी और बॉन्ड यील्ड घटेगी, जिससे CAD को फाइनेंस करना आसान हो जाएगा.

रुपया कमजोर होगा या मजबूत?

जेपी मॉर्गन इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड्स को शामिल किए जाने का असर रुपये की सेहत पर भी पड़ सकता है. रुपये की वैल्यू पर विदेशी निवेशकों के सेंटिमेंट और कैपिटल फ्लो का काफी प्रभाव पड़ता है. जेपी मॉर्गन इंडेक्स में शामिल किए जाने से ग्लोबल इनवेस्टर्स की भारतीय बॉन्ड्स में दिलचस्पी बढ़ेगी. भारतीय रूपी बॉन्ड्स की डिमांड बढ़ने से रुपये की डिमांड भी बढ़ेगी, जिससे उसमें ऊपर की तरफ दबाव बढ़ेगा.

इससे दूसरी मुद्राओं के मुकाबले रुपये में मजबूती आने की संभावना रहेगी. रुपये के मजबूत होने की वजह से इंपोर्ट की लागत घटेगी, भारत की परचेजिंग पावर बढ़ेगी और इंपोर्ट से प्रभावित होने वाली वस्तुओं और सेवाओं में इन्फ्लेशनरी प्रेशर यानी कीमतों में वृद्धि का दबाव कम होगा.

संभावनाओं के साथ चुनौतियां भी रहेंगी

भारतीय बॉन्ड्स के ग्लोबल इंडेक्स में शामिल होने के कई फायदे हैं, तो इससे जुड़ी कुछ चुनौतियां भी हैं. मिसाल के तौर पर विदेशी फंड्स का फ्लो बढ़ने से भारतीय डेट और करेंसी मार्केट पर अंतरराष्ट्रीय बाजार की उथल-पुथल का ज्यादा असर पड़ने के आसार बने रहेंगे. इससे बॉन्ड यील्ड के साथ ही साथ और रुपये की कीमतों में भी पहले की तुलना में ज्यादा उतार-चढ़ाव आने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. रुपये के मजबूत होने पर भारतीय एक्सपोर्ट्स के महंगे होने और उनकी डिमांड पर निगेटिव असर पड़ने का रिस्क भी रहेगा.

इसके अलावा ग्लोबल मैक्रो-इकनॉमिक परिस्थितियों या इनवेस्टर सेंटिमेंट में बदलाव के कारण अचानक कैपिटल आउटफ्लो का सामना भी करना पड़ सकता है. कुल मिलाकर, घरेलू अर्थव्यवस्था पर ग्लोबल फैक्टर्स का असर बढ़ने की वजह से भारत सरकार और रिजर्व बैंक को पहले की तुलना में ज्यादा सक्रियता के साथ बाजार में दखल देने की जरूरत पड़ सकती है.

लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद कुल मिलाकर जेपी मॉर्गन के इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड्स का शामिल होना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए न सिर्फ एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती आर्थिक हैसियत का संकेत भी माना जा सकता है.

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