जापानी करेंसी येन के मजबूत होने से येन कैरी ट्रेड में निवेशक अपनी पोजीशन को लिक्विडेट करने पर मजबूर हो रहे हैं. ऐसा बैंक ऑफ जापान द्वारा पिछले हफ्ते ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद किया गया है. इसका सीधा असर भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों पर होने की संभावना है.
जापान में कर्ज पर जो शून्य ब्याज दर चलती रही है, उसका भारत सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है. दोनों एशियाई शक्तियों के बीच दोस्ताना संबंध का फायदा बीते 10 साल में भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग में मिला है.
इसने भारतीय कंपनियों को भी रोड-हाईवे, पावर सेक्टर फाइनेंसिंग और स्टील में अपने कैपेक्स के लिए सस्ते फंड जुटाने को प्रेरित किया.
निवेशकों ने सस्ते येन कर्जों का इस्तेमाल भारतीय स्टॉक मार्केट ट्रेड के साथ-साथ ग्लोबल इक्विटी ट्रेड को फाइनेंस करने में किया है.
जापानी करेंसी का भारत के कर्ज पर सीधा असर होगा. RBI डेटा के मुताबिक भारत का एक्सटर्नल डेट मार्च 2015 के बाद 39.5% बढ़कर 663.8 बिलियन डॉलर पहुंच गया है. इसमें से आधा डेट अमेरिकी डॉलर में है, वहीं जापानीज येन वाले कर्ज मार्च 2024 तक 5.8% थे.
RBI डेटा के आधार पर किए गए NDTV Profit के कैलकुलेशन के मुताबिक, भारत का येन में लिया गया कर्ज 2015 में 19 बिलियन डॉलर था, जो मार्च 2024 के अंत में बढ़कर 38.5 बिलियन डॉलर हो गया.
येन कैरी ट्रेड का प्रभाव भारतीय कंपनियों द्वारा लिए गए कर्ज पर भी महसूस हो रहा है. जापानीज सेंट्रल बैंक की नीति में आए बदलाव और उसके बाद हुई कड़ाई से येन, भारतीय करेंसी के मुकाबले 10% मजबूत हो गया है.
आगे येन कैरी ट्रेड से उन भारतीय कंपनियों के कर्ज महंगे होंगे, जिन्होंने बीते 10 साल में लॉन्ग टर्म येन डिनॉमिनेटेड लोन लिए हैं, जिनके ऊपर लगने वाला ब्याज लगभग शून्य था.
भारत, जापानीज ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंस (ODA) लोन का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है, जिसके तहत दिल्ली मेट्रो से लेकर पहली बुलेट ट्रेन जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं, जहां ब्याज दर 0.1% से 1.8% तक थी. इन कर्जों को इस आधार पर दिया गया था कि भारत, प्रोजेक्ट्स के लिए जापान से टेक्नोलॉजी और मेटल इंपोर्ट करेगा.
येन में उछाल से इंपोर्ट लागत में इजाफा होगा और ट्रेड बैलेंस आगे और बिगड़ेगा. ध्यान रहे भारत जापान को एक्सपोर्ट करने से ज्यादा वहां से इंपोर्ट करता है.
NTPC, REC, JSW स्टील, PFC और HUDCO जैसी कई कंपनियों ने पिछले एक साल में 2,600 करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए हैं. इसके साथ-साथ रेलवे कैपेक्स भी प्रभावित होगा, क्योंकि कैपेक्स की लागत भी बढ़ने की संभावना है.