भारतीय स्टील कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी जा रही है, जिसका मुख्य कारण चीन, जर्मनी और भारत से मिले पॉजिटिव नीतिगत संकेत हैं. लेकिन इस तेजी को बनाए रखना नीतियों के क्रियान्वयन (Policy Execution) पर निर्भर करेगा, ऐसा कहना है JP मॉर्गन का.
ब्रोकरेज हाउस के अनुसार, भारतीय स्टील शेयरों में अभी जो तेजी दिख रही है, वह चीन, यूरोप और भारत में स्टील की बढ़ती मांग और नीतिगत फैसलों पर निर्भर है.
JP मॉर्गन का मानना है कि भारत और यूरोप में स्टील की बढ़ती मांग भारतीय स्टील कंपनियों के लिए सकारात्मक संकेत है, लेकिन नीतियों को लागू करने की टाइमिंग और प्रभाव इस तेजी को टिकाऊ बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होंगे.
चीन की उत्पादन कटौती योजना– चीन ने स्टील उत्पादन में कटौती की योजना बनाई है, लेकिन इसका पैमाना और लागू करने की समय-सीमा स्पष्ट नहीं है.
जर्मनी का 500 बिलियन यूरो का इंफ्रास्ट्रक्चर फंड– ये फंड अगले 10 सालों में लागू किया जाएगा, जिससे स्टील सेक्टर को मिलने वाला फायदा तुरंत नहीं दिखेगा.
भारत की सेफगार्ड ड्यूटी जांच– इस प्रक्रिया को पूरा होने में 6 से 9 महीने तक का समय लग सकता है.
अमेरिका के संभावित टैरिफ– अमेरिका द्वारा स्टील पर नए टैरिफ लगाने की आशंका भी बाजार में अनिश्चितता बढ़ा रही है.
JP मॉर्गन का स्टील सेक्टर को लेकर दृष्टिकोण सकारात्मक (Positive Bias) है. ये निवेशकों को गिरावट पर खरीदारी (Accumulate on Dips) की सलाह देता है.
जीवन साइंटिफिक टेक्नोलॉजी (Jeevan Scientific Technology Ltd.) और टाटा स्टील (Tata Steel Ltd.) पर 'Overweight' रेटिंग
SAIL (Steel Authority of India Ltd. ) पर 'Neutral' रेटिंग (यानी, संभलकर निवेश करने की सलाह).
हालांकि, JP मॉर्गन ने ये भी कहा कि लंबी अवधि में इस तेजी को बनाए रखना तभी संभव होगा, जब नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए. निवेशकों को संभावित लाभ और बाजार में मौजूद अनिश्चितताओं के बीच संतुलन बनाना होगा.
JP मॉर्गन के एशिया बेसिक मटेरियल्स विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपने स्टील सेक्टर में बड़े बदलावों की बजाय धीरे-धीरे सुधार की नीति अपनाएगा.
उत्पादन में कटौती की योजना तो है, लेकिन इसका दायरा और प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है.
चीन के रियल एस्टेट सेक्टर में हल्की गिरावट बनी रहेगी, जिससे स्टील की मांग प्रभावित हो सकती है.
टियर-1 शहरों में 2025 तक स्थिरता आने की उम्मीद, लेकिन टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्टील की मांग सुधारने में 6 से 12 महीने लग सकते हैं.
यूरोप में हॉट-रोल्ड स्टील कॉइल की कीमतें हर हफ्ते 4% बढ़ रही हैं, जिसका कारण जर्मनी का 500 अरब यूरो का इंफ्रास्ट्रक्चर फंड है.
ये फंड रक्षा, परिवहन, ऊर्जा ग्रिड, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग पर खर्च होगा, जिससे स्टील की मांग बढ़ेगी.
JP मॉर्गन के अनुसार, यूरोप में स्टील की कीमतों और लाभप्रदता में 15% की बढ़ोतरी देखी गई है.
टाटा स्टील की यूरोपीय ब्रांच 2026 तक EBITDA ब्रेकईवन (प्रॉफिट-लॉस बैलेंस) हासिल कर सकती है.
JP मॉर्गन का मानना है कि सरकारी नीतियों और सुधारों को सही तरीके से लागू किया जाता है तो भारतीय स्टील सेक्टर में लंबी अवधि के लिए मजबूती बनी रह सकती है.