कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज (Kotak Institutional Equities) के मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव प्रसाद ने शेयर बाजार के लगातार चढ़ने के बीच एक मेमो जारी कर चिंता जताई हैं. उनका मानना है कि ये खोखली तेजी भी हो सकती है. व्यंग्य से भरपूर मेमो में प्रसाद ने मौजूदा मार्केट डायनैमिक्स को जानवरों के उदाहरण से समझाने की कोशिश की है. उनका कहना है कि अब जंगल में बियर और बुल्स के अलावा कई दूसरे जानवर भी सक्रिय हैं.
प्रसाद ने कुछ निवेशकों को मेंढक करार दिया है. प्रसाद के मुताबिक, 'ये मेंढकों के मोटे होने का वक्त है. उन्हें एक ऐसा तालाब मिल गया है, जो खुद को भरता रहता है. हालांकि बीते कुछ वक्त में तालाब का तापमान बढ़ा हुआ है. जिसके चलते तालाब में बुलबुले दिखाई दे रहे हैं. लेकिन मेंढकों को फर्क नहीं पड़ रहा है और उन्होंने अपने शरीर को तालाब के बढ़े हुए तापमान से एडजस्ट कर लिया है. उन्हें यकीन है कि तालाब ऑटोमैटिकली खुद को ठंडा कर लेगा.'
प्रसाद आगे लिखते हैं, 'हमारे वित्तीय तालाब में रहने वाले मेंढकों के लिए ये उत्सव का वक्त है.' यहां उनका मतलब ऐसे लोगों और एंटिटीज से है, जिनके लिए वित्तीय बाजार में अच्छी स्थिति बनी हुई है. लेकिन वे इसके जोखिमों को नहीं समझ रहे हैं.
प्रसाद ने 'पिग्स' ऐसे निवेशकों के लिए कहा है, जिन्हें मौजूदा स्थिति से फायदा हो रहा है और वे पानी में लोट रहे हैं. इनका अच्छा वक्त चल रहा है, वे खुश हैं कि तालाब का पानी लगातार नए स्तरों पर पहुंच रहा है. लेकिन वे जंगल के नियम को नजरंदाज कर रहे हैं.'
प्रसाद कहते हैं, 'इन लोगों का मुनाफा पाने में बहुत विश्वास है, लेकिन ये बाजार की अस्थिरता को नजरंदाज कर रहे हैं, क्योंकि ये लोग सिर्फ गेन्स पर फोकस हैं, इन्हें लगता है कि स्थिति खराब होने से पहले ये फायदा ले लेंगे.'
प्रसाद ने अपने सांकेतिक मेमो में वल्चर्स का जिक्र भी किया है. उन्होंने कहा कि कुछ वल्चर्स इस जंगल में इस उम्मीद में वापस आए हैं कि उन्हें बड़ी दावत मिलेगी. लेकिन उन्हें अब तक नाउम्मीदी ही मिली है.'
वे कहते हैं, 'वल्चर्स करीब दो साल पहले दूसरे जंगलों की तरफ चले गए थे. लेकिन वे जंगल हल्के-फुल्के भोजन के लिए मुफीद थे. इसके चलते कुछ लोग वापस पुराने जंगल की तरफ आए हैं.'
लेकिन प्रसाद ने सबसे तीखी आलोचना वानरों के लिए बचाकर रखी. उन्होंने ये उपाधि उन कमेंटटेटर्स और एनालिस्ट्स को दी है, जो गैरजरूरी बातचीत करते हैं और बढ़ा-चढ़ाकर अनुमान लगाते हैं, जिनमें कुछ ठोस नहीं होता.
प्रसाद कहते हैं, 'जंगल की कोई भी व्याख्या वानरों की भूमिका पर चर्चा किए बिना अधूरी है. ये चिरपरिचित अंदा में ऊंचे पेड़ों पर चढ़े रहते हैं और बमुश्किल ही नीचे आते हैं और ज्यादा पक चुके फलों को समय-समय पर नीचे दूसरे जानवरों के लिए डालते रहते हैं.'
इसे मेमो में मार्केट ऑब्जरवर्स की बाजार में जारी यूफोरिया से जुड़ी चिंताओं को हाईलाइट किया गया है. रिकॉर्ड हाई के बावजूद मेमो आगे मौजूद खाई की तरफ इशारा करता है.
इस मेमो की सोशल मीडिया जगत में आलोचना भी हो रही है. जाने-माने इन्वेस्टर साफिर ने X पर लिखा, 'इस तरह का वाहियात मेमो पोस्ट करने बजाए संजीव प्रसाद और कोटक को ये बताना चाहिए कि उनके व्यूज इतने गलत कैसे साबित हुए, जबकि अब वे पूरे शहर को दोष देते फिर रहे हैं.'