मार्केट रेगुलेटर SEBI ने अपनी 208वीं बोर्ड बैठक में कई बड़े फैसले किए हैं, इसमें SME IPO के लिए रेगुलेशन, मर्चेंट बैंकर रेगुलेशन, इनसाइडर ट्रेडिंग को लेकर नियम शामिल हैं. इसके अलावा कई क्षेत्रों में रिफॉर्म को लेकर प्रस्तावों को भी मंजूरी दी गई है. हम यहां पर आपको उन सभी फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं.
SEBI ने SMEs के IPO प्रोसेस को मजबूत करने के लिए एक सख्त रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को मंजूरी दी है. SEBI ने कहा कि IPO लॉन्च करने की योजना बना रहे SME को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) दाखिल करते समय पिछले तीन वित्त वर्षों में से दो में कम से कम 1 करोड़ रुपये का ऑपरेटिंग प्रॉफिट दिखाना होगा. इसके अलावा SME IPO में शेयरधारकों के OFS को कुल इश्यू साइज के 20% पर सीमित किया जाएगा, साथ ही बेचने वाले शेयरधारकों को उनकी 50% से अधिक हिस्सेदारी बेचने से प्रतिबंधित किया जाएगा.
SEBI ने मर्चेंट बैंकर्स के लिए कई नियम सख्त कर दिए हैं. संशोधित नियम वैल्युएशन सर्विसेज और दूसरे ऑपरेशनल क्षेत्रों पर प्रतिबंध लगाते हैं.नए नियमों के तहत, बैंकों और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को छोड़कर, मर्चेंट बैंकर्स को अब अपनी गतिविधियों को SEBI की ओर से तय अनुमतियों तक ही सीमित करना होगा.
नॉन-परमिटेड गतिविधियों को दो साल के भीतर अलग-अलग कानूनी संस्थाओं में विभाजित किया जाना चाहिए. इन संस्थाओं को एक अलग ब्रैंड नाम के तहत काम करना होगा और SEBI की आचार संहिता का पालन करना होगा. इसके अलावा, मर्चेंट बैंकर को हर समय अपने कुल नेटवर्थ का कम से कम 25% लिक्विड नेटवर्थ बनाए रखना होगा.
नियम उन वैल्युएशन गतिविधियों पर भी लगाम लगाते हैं जो मर्चेंट बैंकर कर सकते हैं. हालांकि मर्चेंट बैंकर किसी भी मौजूदा वैल्युएशन के काम को करना जारी रख सकते हैं, उन्हें अब अपने मर्चेंट बैंकर रजिस्ट्रेशन के तहत नई मूल्यांकन गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी. भविष्य में ऐसी गतिविधियां करने के लिए, मर्चेंट बैंकर को नौ महीने की अवधि के भीतर रेगुलेटर से एक अलग रजिस्ट्रेशन हासिल करने की जरूरत होगी.
SEBI ने रेगुलेटेड को वेरिफाइड रिस्क-रिटर्न मेट्रिक्स का इस्तेमाल करते हुए निवेशकों को अपनी सर्विसेज बेचने में मदद करने के लिए 'Past Risk and Return Verification Agency' को मान्यता देने को मंजूरी दे दी है. इस नए फ्रेमवर्क के तहत एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (CRA) एजेंसी के रूप में काम करेगी, एक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज इसके लिए डेटा सेंटर के रूप में काम करेगा. इस CRA प्लस वेरिफिकेशन एजेंसी का पहला काम SEBI से आथराइज्ड निवेश सलाहकारों, रिसर्च एनालिस्ट्स, एल्गोरिथम ट्रेडिंग संस्थाओं के लिए ऐसी सर्विसेज ऑफर करने के लिए रिस्क रिटर्न मेट्रिक्स को वेरिफाई करना होगा.
SEBI ने इनसाइडर ट्रेडिंग रेगुलेशन, 2015 के तहत अनपब्लिश्ड प्राइस सेंसिटिव इंफॉर्मेशन (UPSI) की परिभाषा में बदलाव को मंजूरी दे दी है. ये बदलाव बाजार में रेगुलेटरी क्लैरिटी को बढ़ाने और कंप्लायंस को व्यवस्थित करने के लिए किए गए हैं. बदली गई परिभाषा में अब 27 मैटेरियल इंवेट्स में से 17 को UPSI की व्याख्या सूची में शामिल किया गया है, जो पहले शामिल नहीं थे. SEBI ने ये बदलाव इसलिए किया है क्योंकि रेगुलेटर के अध्ययन से पता चला है कि कंपनियां अक्सर कुछ कॉरपोरट जानकारियों और डेवलपमेंट्स UPSI के रूप में क्लासिफाई नहीं करती हैं.