ADVERTISEMENT

F&O में ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन का बदलेगा तरीका, SEBI ने दिए नए प्रस्ताव

ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन के तरीके में इस बदलाव के पीछे F&O में शेयरों के भाव को कैश मार्केट रेट से जोड़ने की वो मुहिम है जिसकी बात बाजार से जुड़े लोग काफी वक्त से करते आ रहे थे.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी12:14 PM IST, 25 Feb 2025NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी

F&O ट्रेडर्स के लिए SEBI ने कुछ अहम बदलावों का प्रस्ताव दिया है. मार्केट रेगुलेटर ने एक कंसल्टेशन पेपर जारी कर कुछ प्रस्ताव रखे हैं और इन पर शेयर बाजार से जुड़े लोगों की सलाह भी मांगी है. इन प्रस्तावों में जो सबसे अहम हैं उनमें ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन के तरीके में बदलाव, मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट (MWPL) का रिव्यू और बैन पीरियड में शेयरों में पोजीशन लेने को लेकर हुए बदलाव शामिल हैं. SEBI ने ये बदलाव इसलिए सुझाए हैं ताकि वायदा बाजार में ट्रेडर्स के रिस्क को कम किया जा सके और साथ ही वायदा बाजार की कीमतों को कैश मार्केट की कीमतों से लिंक किया जा सके. चलिए अब एक-एक कर के इन तीनों अहम बदलावों को समझ लेते हैं.

ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन का नया फॉर्मूला

SEBI ने F&O मार्केट में ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन के तरीके में बदलाव करने का सुझाव दिया है. SEBI ने इसके लिए एक नए 'फ्यूचर इक्विवैलेंट या डेल्टा आधारित' फॉर्मूला इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है. अभी किसी भी ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन के लिए नोशनल वैल्यू बेस्ड तरीके का इस्तेमाल किया जाता है यानी अगर किसी स्टॉक डेरिवेटिव का ओपन इंटरेस्ट (OI) निकालना है तो फ्यूचर्स और ऑप्शंस में उसके मौजूदा OI को जोड़ दिया जाता है. लेकिन मार्केट रेगुलेटर का कहना है कि ये स्टॉक में रिस्क की सही तस्वीर नहीं बताता है इसलिए हमने इसकी जगह पर फ्यूचर इक्विवैलेंट तरीका इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है. नए तरीके में किसी स्टॉक का OI निकालने के लिए उसके ऑप्शंस पोजीशंस के फ्यूचर इक्विवैलेंट को फ्यूचर्स के ओपन इंटरेस्ट से एग्रीगेट किया जाएगा ताकि उस स्टॉक की सही स्थिति पता चल सके और रिस्क का सही अंदाजा लगाया जा सके.

आर्टिफिशियल बैन का रिस्क घटेगा

OI के इस नए कैल्कुलेशन से किसी शेयर में आर्टिफिशियल बैन लगाने की घटनाओं में भी कमी आएगी. दरअसल होता ये है कि मौजूदा समय में अगर किसी शेयर का OI, उसके मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट का 95% हो जाए तो शेयर को बैन में डाल दिया जाता है यानी अब उसमें नए सौदे नहीं डाले जा सकते हैं. कई बार ऑपरेटर्स इसका फायदा उठाकर किसी एक शेयर में एक साइड पर इतनी पोजीशन बना देते हैं कि OI 95% से ज्यादा हो जाता है और शेयर बैन में चला जाता है. OI कैलकुलेशन के नए तरीके से एग्रीगेट OI को 95% तक ले जाना मुश्किल होगा और आर्टिफिशियल बैन लगवाने जैसी घटनाओं में कमी आएगी.

SEBI की ओर से जारी सुझावों के मुताबिक, जुलाई से सितंबर 2024 तक बाजार डेटा के बैक-टेस्टिंग से पता चला है कि इस बदलाव से बैन पीरियड में एंट्री करने वाले शेयरों में 90% से अधिक की कमी आ सकती है, ये 366 से घटकर केवल 27 रह सकते हैं.

मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट के लिए प्रस्ताव 

SEBI ने मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट या MWPL को लेकर भी कुछ प्रस्ताव दिए हैं, जो ये तय करता है कि किसी स्टॉक में कितनी ट्रेडिंग हो सकती है. वर्तमान में, ये स्टॉक के फ्री-फ्लोट मार्केट कैप के 20% पर निर्धारित है. मार्केट रेगुलेटर एक नया फॉर्मूला दे रहा है, जहां MWPL फ्री-फ्लोट मार्केट कैप का 15% या कैश मार्केट में एवरेज डेली डिलिवरी वैल्यू (ADDV) से 60 गुना में से जो कम होगा उसे ही माना जाएगा. MWPL के मौजूदा फॉर्मूले को अगर देखा जाए तो ये कैश मार्केट को F&O प्राइसेज से लिंक नहीं करता है. अगर इसे आसान तरीके से समझते हैं. ये संभव है किसी शेयर में कैश मार्केट डिलीवरी का वॉल्यूम सामान्य दिनों की तरह ही है लेकिन उसमें OI तुलनात्मक रूप से काफी ज्यादा है, ऐसे में शेयर के प्राइस मैनिपुलेशन का खतरा रहता है. SEBI के सुझाए नए तरीके से कैश मार्केट की कीमतों से वायदा बाजार को बेहतर तरीके से लिंक किया जा सकेगा.

बैन पीरियड में पोजीशन को लेकर सुझाव

मौजूदा नियमों के मुताबिक अगर किसी शेयर के लिए बैन पीरियड शुरू हो जाता है, तो उस स्टॉक के मौजूदा F&O कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए नई पोजीशन नहीं खोली जा सकती हैं. कोई ट्रेडर पहले से चालू पोजीशन से सिर्फ बाहर निकल सकता है. SEBI के नए प्रस्तावों के मुताबिक ट्रेडर्स को पोजीशन काटने (स्कावयर ऑफ) की जगह ऑफसेट करने का ऑप्शन दिया जाएगा ताकि उनके ओवरऑल रिस्क को कम किया जा सके.

चलिए इसे भी उदाहरण से समझ लेते हैं. मान लीजिए कि किसी एक ट्रेडर ने XYZ शेयर में तेजी की पोजीशन या CALL खरीदे हैं, ट्रेडर ने अपनी पोजीशन होल्ड कर के रखी है लेकिन तभी शेयर बैन में चला जाता है. अब पुराने नियमों के मुताबिक वो सिर्फ अपना सौदा काट सकता है यानी पोजीशन स्क्वायर ऑफ ही कर सकता है लेकिन नए प्रस्ताव के मुताबिक अब उसे अपनी पोजीशन पर रिस्क कम करने के लिए विपरीत सौदे लेने का ऑप्शन मिलेगा. इसका मतलब ये है कि वो ट्रेडर शेयर के बैन में जाने के बाद भी अपनी तेजी की पोजीशन के सामने मंदी की पोजीशन यानी PUT खरीद सकेगा या CALL बेच सकेगा. इससे ट्रेडर का रिस्क कम हो जाएगा यानी हेजिंग हो जाएगी.

SEBI के कंसल्टेशन पेपर में कहा गया है कि इन बदलावों का असर छोटे निवेशकों पर नहीं होगा और जो ट्रेडर्स हैं उनका ट्रेडिंग का अनुभव ज्यादा आसान और सरल हो जाएगा..

NDTV Profit हिंदी
फॉलो करें
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT