New Rules for FPIs in SEBI Consultation Paper: मार्केट रेगुलेटर SEBI ने भारत में 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के AUM वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के लिए अतिरिक्त डिस्क्लोजर नियमों का फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए लोगों से उनकी राय मांगी है. इसके लिए मार्केट रेगुलेटर ने एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया है.
इस कंसल्टेशन पेपर के अनुसार, विदेशी निवेशक, जिनके पास अपने निवेश का एक बड़ा हिस्सा एक ही भारतीय कंपनी या समूह में केंद्रित है, उन्हें अतिरिक्त खुलासा (Disclosure) करना होगा. साथ ही विदेशी निवेशकों को भी अब जोखिम (Risk) कैटगरी में बांटा जाएगा.
जिस तरह लोकल फंडिंग के लिए हाई रिस्क, मीडियम रिस्क और लो रिस्क जैसी कैटेगरी होती हैं, ठीक वैसे ही FPIs के लिए भी रिस्क बेस्ड कैटेगरी होगी.
कम जोखिम (Low Risk): सॉवरेन फंड और सेंट्रल बैंक फंड जैसी सरकारी संस्थाएं पात्र होंगी.
मध्यम जोखिम (Moderate Risk): विविध निवेशक बेस के साथ पेंशन या पब्लिक रिटेल फंड
उच्च जोखिम (High Risk): अन्य सारे विदेशी निवेश (FPIs)
SEBI ने कहा कि FPIs रूट के दुरुपयोग और मौजूदा नियमों के उल्लंघन को रोकने के लिए रिस्क के आधार पर कैटेगरी में बांटना जरूरी है. SEBI ने हाई रिस्क कैटगरी के लिए अतिरिक्त जानकारी और खुलासे (Disclosure) का प्रस्ताव दिया है. यदि कोई FPI फंडिंग की सीमा पार करता है और हाई रिस्क कैटगरी में आता है तो उसे स्वामित्व, आर्थिक हित और नियंत्रण समेत तमाम अतिरिक्त डिस्क्लोजर देने होंगे.
SEBI ने प्रस्तावित सीमा में, सिंगल कॉर्पोरेट ग्रुप में संपत्ति का 50% और मौजूदा हाई रिस्क वाले FPI आएंगे, जिनकी भारतीय बाजार में कुल मिलाकर 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की हिस्सेदारी है.
एक ग्रुप में AUM का 50% से ज्यादा निवेश होने या 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा इन्वेस्टमेंट वाले विदेशी निवेशकों को ज्यादा डिस्क्लोजर देने होंगे. यानी जितना ज्यादा निवेश, SEBI के पास उतनी ज्यादा जानकारी देनी जरूरी होगी.
SEBI ने ये कंसल्टेशन पेपर इसलिए जारी किया है ताकि निवेश पर रिस्क यानी जोखिमों को सीमित किया जा सके. इसलिए इस प्रस्ताव में विदेशी निवेशकों के लिए अतिरिक्त ट्रांसपैरेंसी बढ़ाने की बात कही गई है.
ये प्रस्ताव लागू होता है तो किसी कंपनी में किए गए विदेशी निवेश के पीछे कौन है, उनमें किन व्यक्तियों या संस्थाओं का निवेश है, उस पर नियंत्रण किसका है, इन तमाम बिंदुओं पर ज्यादा नजर रखी जा सकेगी.
फिलहाल FPI को उन्हीं 'लाभार्थी मालिकों' के बारे में जानकारी का खुलासा करना अनिवार्य है, जब 'मनी-लॉन्ड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट' के तहत सीमा से अधिक निवेश हो. कंपनियों और ट्रस्ट के लिए ये सीमा 10% है, जबकि पार्टनरशिप के लिए 15% है. ऐसे में ज्यादातर जानकारी का अक्सर खुलासा नहीं किया जाता है, क्योंकि FPIs शायद ही कभी इस सीमा को पार करते हैं. नियमों में इसी ढील का गलत फायदा उठाने की आशंका बनी रहती है.
SEBI ने ये भी आशंका जताई कि प्रेस नोट 3 को दरकिनार करने के लिए FPI रूट का इस्तेमाल किया जा रहा था. बता दें कि प्रेस नोट 3 के अनुसार, भारत के साथ सीमा साझा करने वाले देशों की संस्थाएं केवल सरकारी अप्रूवल के माध्यम से ही भारत में निवेश कर सकती हैं.
SEBI ने कहा है कि तमाम आशंकाओं को रोकने के लिए के कैटगराइजेशन और एक्सट्रा डिस्क्लोजर के नियम लाना जरूरी था. फिलहाल SEBI ने अपने प्रस्ताव पर 20 जून तक सुझाव और टिप्पणियां मांगी हैं.